दिल्ली दंगा: उमर खालिद ने प्रभावशाली लोगों के माध्यम से गढ़ा झूठा नैरेटिव

कड़कड़डूमा कोर्ट में दिल्ली पुलिस की ओर से बताया गया कि आरोपी उमर खालिद ने प्रभावशाली लोगों के माध्यम से झूठी कहानी फैलाई।

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कड़कड़डूमा कोर्ट में बुधवार को दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद की जमानत को लेकर सुनवाई हुई। इसमें दिल्ली पुलिस की ओर से बताया गया कि आरोपी उमर खालिद ने प्रभावशाली लोगों के माध्यम से मीडिया और सोशल मीडिया पर झूठा नैरेटिव गढ़ा। उसने अपने पक्ष में झूठी कहानी फैलाई।

उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसके मोबाइल फोन के डाटा से कई जानकारी मिली है। उसकी चैट से कई राज खुले हैं। वह कुछ राजनेताओं, अभिनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं  के संपर्क में था। 

विशेष लोक अभियोजक द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि कई लोगों ने जमानत की सुनवाई को प्रभावित करने के लिए एक्स (पहले ट्विटर) का सहारा लिया। उन्होंने एक्स पर तीस्ता सीतलवाड, एमनेस्टी इंडिया, आकार पटेल, राज कौशिक, स्वाति चतुर्वेदी, आरजू अहमद और अन्य की पोस्ट का हवाला दिया।

उमर खालिद के वकिल की भी सुनी गई दलीलें

विशेष न्यायाधीश ने उमर खालिद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस की खंडन दलीलें भी सुनीं। दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने मामले को आगे की बहस के लिए 24 अप्रैल को सुबह 10 बजे सूचीबद्ध किया।

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गढ़ा गया झूठा नैरेटिव

सुनवाई के दौरान विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) ने उमर की जमानत अर्जी के व्हाट्सएप चैट का हवाला दिया। व्हाट्सएप चैट से यह भी पता चला है कि उसे जमानत की सुनवाई को स्पष्ट रूप से प्रभावित करने के लिए झूठा नैरेटिव गढ़ा। एसपीपी अमित प्रसाद ने तीस्ता सटेलवाड, आकार पटेल, कौशिक राज, स्वाति चतुर्वेदी, आरजू अहमद और अन्य द्वारा ट्विटर पर पोस्ट का भी उल्लेख किया।

एसपीपी ने अदालत में कुछ ट्वीट पढ़े। एक ट्वीट में लिखा था, “राम रहीम की पैरोल मंजूर, उमर खालिद की जमानत SC में 14 बार स्थगित हुई। #फ्रीउमरखालिद”। एक अन्य ट्वीट में कहा गया, “उमर खालिद ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली। यह न्याय का मजाक है।” एमनेस्टी इंडिया ने भी ट्वीट किया, जिसमें लिखा था, “एससी ने उनकी जमानत पर सुनवाई 14 बार स्थगित की है। #freeUmarKhalid का इस्तेमाल किया गया था।

उमर के वकिल दिया ये तर्क

इस पर उमर के वकिल त्रिदीप पेस ने तर्क दिया कि केवल आरोपी व्यक्तियों से मिलना आतंकवाद का संकेत नहीं देती हैं। उन्होंने कहा कि अगर उमर खालिद के पिता इंटरव्यू देते हैं इसका मतलब ये नहीं कि उसे जमानत नहीं दी जा सकती है। पेस ने कहा कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि आतंकी गतिविधि को अंजाम दिया गया। उमर खालिद के खिलाफ यूएपीए की धारा-15 नहीं लगाई जा सकती है। पेस ने अभियोजन पक्ष की इस दलील को खारिज कर दिया कि उमर खालिद ने गुप्त बैठकें की। 

उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष ये कह रहा है कि उमर खालिद, ताहिर हुसैन और खालिद सैफी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के दफ्तर में मिले। अभियोजन के इस कथन का आधार केवल गवाह का बयान और सीडीआर है। उन्होंने पूछा कि क्या जमानत नहीं देने के लिए सीडीआर पर भरोसा किया जा सकता है। सीडीआर के मुताबिक भी सभी आरोपित दिए गए समय और तिथि पर एक साथ नहीं थे।

हाईकोर्ट पहलें ही खारिज कर चुकी है याचिका

9 अप्रैल को दिल्ली पुलिस की ओर से दलीलें पूरी कर ली गई थी। सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा था कि उमर की जमानत याचिका दिल्ली हाई कोर्ट खारिज कर चुका है। उन्होंने कहा था कि हाई कोर्ट ने सेशंस कोर्ट के जमानत खारिज करने के फैसले पर पूरी सहमति जताई थी। 

उन्होंने कहा था कि जमानत पर विचार करते समय सभी तथ्यों पर विचार किया जाना चाहिए। अमित प्रसाद ने कहा था कि उमर खालिद की ओर से जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान ये नहीं कहा जा सकता है कि जांच में कई गड़बड़ियां हैं। ये आरोप मुक्त करने की याचिका नहीं है।

इसलिए किया गया था गिरफ्तार

गौरतलब है कि उमर खालिद ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली थी और कहा था कि अब वह ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर करेगा। उमर खालिद को 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे कथित बड़ी साजिश के मामले में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वो जेल में है। 

हाईकोर्ट ने क्या कहा था?

इससे पहले 18 अक्टूबर 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा दिसंबर 2019 और फरवरी 2020 के बीच हुई बैठकों का नतीजा थी जिनमें उमर खालिद भी शामिल हुआ था। 

हाई कोर्ट ने कहा था कि उमर खालिद का नाम साजिश की शुरुआत से लेकर दंगा होने तक आता रहा। उमर खालिद व्हाट्सऐप ग्रुप डीपीएसजी और मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जेएनयू का सदस्य था। उमर खालिद ने कई बैठकों में हिस्सा लिया। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर चार्जशीट पर भरोसा किया जाए तो ये साजिश की ओर साफ-साफ इशारा कर रहे हैं।

निश्चित रूप से थी एक आतंकी कार्रवाई 

हाई कोर्ट ने कहा था कि विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र में होने वाले आम राजनीतिक प्रदर्शन की तरह नहीं था बल्कि ये एक खतरनाक था जिसके गंभीर परिणाम हुए। पुलिसकर्मियों पर, महिला प्रदर्शनकारियों पर हमला किया गया जिससे इलाके में दंगा फैला जो कि निश्चित रूप से एक आतंकी कार्रवाई थी।

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