मालदीव में रविवार को हुए संसदीय चुनावों में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी की भारी जीत को कूटनीतिक हलकों में दिलचस्पी से देखा जा रहा है। समझा जाता है कि इस जीत के बाद राष्ट्रपति मुइज्जू भारत से दोस्ती की पारंपरिक नीति छोड़कर चीन से करीबी बढ़ाने की राह पर और तेजी से आगे बढ़ेंगे।
भारत विरोधी रुख
इसके संकेत तभी से मिलने लगे थे, जब पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मुइज्जू ने भारत विरोधी रुख अख्तियार करते हुए भारतीय सेना को मालदीव से निकालना मुख्य मुद्दा बना लिया था। राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद उन्होंने इस दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए। हालांकि भारतीय सैनिकों की वहां सांकेतिक उपस्थिति ही है। ये सैनिक उस टोही विमान की देखरेख करते हैं, जो नई दिल्ली ने मालदीव के विशाल तटीय क्षेत्रों की निगरानी के लिए उसे तोहफे में दिया है।
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अप्रिय विवाद
राष्ट्रपति मुइज्जू के स्पष्ट भारत विरोधी रुख के चलते रिश्तों में आ रहा तनाव उस समय अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के दौरान मालदीव के कुछ मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर कुछ भद्दी टिप्पणियां कर दीं। इसके बाद सोशल मीडिया पर ऐसा अप्रिय विवाद शुरू हुआ, जिससे #बॉयकॉट मालदीव ट्रेंड करने लगा।
हालांकि मालदीव सरकार ने उन मंत्रियों के खिलाफ तुरंत एक्शन लिया, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि उस अभियान के बाद भारत से मालदीव जाने वालों की संख्या में इस कदर गिरावट आई कि जो भारत वहां विदेशी सैलानियों का सबसे बड़ा स्रोत हुआ करता था, वह छठे नंबर पर आ गया।
सामरिक लिहाज से अहम
निश्चित रूप से यह घटनाक्रम भारत और मालदीव के रिश्तों के लिए अच्छा नहीं है। भारत के लिए चिंता की बात इसलिए भी है कि मालदीव हिंद महासागर का ऐसा द्वीपीय राष्ट्र है जो सामरिक लिहाज से खासा है। वहां भारत विरोधी भावनाओं पर आधारित राजनीति का प्रभाव बढ़ना भारतीय हितों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
भारत के लिए दोहरी मार
वहीं, कई लोग इस परिणाम को भारत के लिए दोहरी मार के रूप में देख रहे हैं। क्योंकि इस चुनाव परिणाम ने मोहम्मद मुइज्जू को विपक्ष की निगरानी से मुक्त कर दिया है, जो अपने इंडिया आउट अभियान के दम पर सत्ता में आए थे। इसके अलावा उनकी सरकार आइलैंड देश की इंडिया फर्स्ट पॉलिसी से दूर जा रही है और उसका झुकाव चीन की ओर हो रहा है।
माना जा रहा है कि राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू प्रशासन इन परिणामों को अपनी विदेश नीति के समर्थन के रूप में देखेगा। विशेषकर मालदीव से भारतीय सैनिकों को निष्कासित करने के निर्णय के मामले में।
चीन ने जताई खुशी
राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को मिली इस सफलता पर चीन की सरकार खुश है। चीन के विदेश मंत्री ने सबसे पहले मुइज्जू को इस बंपर जीत पर बधाई दी है। चीन ने कहा कि वह मालदीव के लोगों की पसंद का सम्मान करता है। चीन ने यह भी ऐलान किया कि वह मालदीव की सरकार के साथ रणनीतिक भागीदारी को मजबूत करने का इच्छुक है। चीन ने कहा कि वह मालदीव के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के विस्तार का इच्छुक है तथा रणनीतिक भागीदारी को और मजबूत करना चाहता है।
बदलनी होगी नीति
वहीं, विशेषज्ञों ने भारत को मालदीव को लेकर नीति में बदलाव की नसीहत दी है। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा, “मालदीव के संसदीय चुनावों में मुइज्जू की बंपर जीत दिखाती है कि भारत विरोधी और चीन समर्थक भावना को वहां की जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त है।
भारत को अपने दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है।” मुइज्जू ने स्वयं लोगों से मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मतदान करने और एक सरकार समर्थक मजलिस सुनिश्चित करने का आग्रह किया था जो उनके विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।
दीर्घकालिक हित
जाहिर है, मुइज्जू सरकार के मौजूदा रुख को भू-राजनीति से जुड़ी वास्तविकताओं के मद्देनजर मालदीव के दीर्घकालिक हितों के लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता। उम्मीद की जाए कि जल्दी ही उसे इसका अहसास होगा और उसके रुख में अपेक्षित बदलाव आएगा।
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