ईवीएम अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर कल एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय आया। इस निर्णय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जो कहा गया उस पर गौर किया जाना चाहिए और उस मंशा को समझा जाना चाहिए, जो ऐसी हर याचिका के पीछे होती है, जिसमें देश की संवैधानिक संस्थाओं से देश का विश्वास उठने की बात हो।
यह याचिका एसोसिएशन फॉर डेमेक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) तथा कुछ और संस्थाओं की ओर से दाखिल की गई थी। जिसमें तीन मांगे थीं। पहली मांग थी कि या तो बैलेट पेपर पर वापस लौटा जाए या फिर जो पर्ची निकलती है, उसे मतदाता के हाथ में दिया जाए और जिससे वह उठाकर उसे बैलेट बॉक्स में गिनने के लिए डाले और या फिर सौ प्रतिशत वीवी पैट पर्चियों का मिलान किया जाए।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले में दो सहमति वाले निर्णय सुनाए और सर्वोच्च न्यायालय ने कल इन याचिकाओं पर निर्णय देते हुए ये सभी मांगे खारिज कर दीं। किसी भी देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होता है कि जब उसकी संवैधानिक संस्थाओं पर इस प्रकार तब अविश्वास व्यक्त किया जाए, जब उस संस्था का सबसे महत्वपूर्ण कार्य प्रक्रिया में हो।
अर्थात चुनाव आयोग जब इन दिनों भारत में लोकसभा चुनाव पूरी निष्पक्षता के साथ आयोजित करवा रहा है तो वहीं भारत में उसे चुनाव आयोग को सर्वोच्च न्यायालय में अपनी प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर तर्क रखने पड़ रहे हैं।
इससे पहले भी तमाम याचिकाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय से खारिज हो चुकी हैं, परंतु इन याचिकाओं और इस निर्णय में सबसे महत्वपूर्ण था इसका समय। जब देश चुनावों से होकर गुजर रहा है और साथ ही देशवासी उसे प्रक्रिया के माध्यम से अपनी सरकार चुन रहे हैं, जिस प्रक्रिया पर कुछ एनजीओ ही नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी दल कांग्रेस के नेता भी बार-बार अविश्वास व्यक्त कर रहे हैं।
ऐसे में यह निर्णय हालांकि उन सभी नेताओं और भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्न उठाने वाले गिरोहों का असली चेहरा अवश्य दिखाता है, परंतु इसके साथ ही आवश्यकता इस बात की भी है कि क्या ऐसे नेताओं के लिए कोई सजा नहीं होनी चाहिए जो बार-बार जनता के बीच जाकर एक संवैधानिक संस्था की निष्पक्ष प्रक्रिया के विषय मे जनता के मन मे भ्रम पैदा कर रहे हैं? क्या उनके लिए न्यूनतम सजा का मापदंड नहीं होना चाहिए, जो संवैधानिक संस्थाओं को कठघरे में खड़ा करके भारत को अस्थिर करना चाहते हैं?
बैलेट पेपर्स का आतंक अभी तक याद है
जहां तक बैलेट पेपर्स से चुनाव कराने की बात है तो यह माननीय न्यायालय का भी कथन बहस के दौरान आया था कि बैलेट पेपर्स का जमाना सभी को याद है। पिछले दिनों एक बार फिर से वह तस्वीर बहुत वायरल हुई थी, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी तथा वर्तमान मे कॉग्रेस नेता सोनिया गांधी फिल्म अभिनेता का वोट डलवा रहे हैं।
इसके साथ ही बैलेट पेपर लूट लिए जाने के न जाने कितने किस्से हुआ करते थे। ईवीएम के विषय में बात करते हुए चुनाव आयोग ने यह भी कहा था कि ईवीएम के कारण ही कई पार्टियां आज अस्तित्व में हैं, क्योंकि बैलेट के जमाने में वे चुनाव का सोच भी नहीं सकती थीं।
न्यायालय ने अपने निर्णय में विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा इसी विषय पर दायर की गई एवं निरस्त की गई याचिकाओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि यदि वे चाहते तो इन्हीं याचिकाओं तथा निर्णय का हवाला देते हुए यह भी याचिका निरस्त कर सकते थे। उसके बाद अपने निर्णय में उन्होंने चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम में सिंबल लोडिंग से लेकर मतगणना तक की तमाम प्रक्रियाओं को समझाया है।
परंतु इससे एक प्रश्न फिर उत्पन्न होता है कि क्या जो गिरोह यह मानते हुए भी कि ईवीएम में गलती नहीं हो सकती है, बार-बार किसी न किसी न्यायालय में याचिका दायर कर रहा है और हार नहीं मान रहा है, वह इस निर्णय को मानेगा? यह अभी समय पर निर्भर करता है।
क्योंकि संदेह का कोई इलाज नहीं होता है और यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा कि मात्र संदेह के आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता है। इस निर्णय में माननीय न्यायालय ने कहा कि ऐसे 26 मामले ये थे जिनमें यह कहा गया कि किसी को वोट देने के लिए बटन दबाया तो मत दूसरे को चला गया। परंतु एक भी मामला ऐसा नहीं था, जिसमें ऐसी विसंगति पाई गई हो।
संवैधानिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाने वालों की मंशा पर माननीय न्यायालय ने उठाए सवाल
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रेफॉर्म्स द्वारा दायर याचिका संख्या (सी) संख्या 434/2023 पर निर्णय सुनाते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता जे ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसे लेकर प्रशांत भूषण, जो भारत की हर लगभग हर संवैधानिक संस्था पर लगातार प्रश्न उठाते रहते हैं से लेकर लिबरल लॉबी असहज हैं।
माननीय न्यायालय ने बिन्दु संख्या 5 पर कहा है कि “हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि भारत की उपलब्धियों एवं कार्यों को लेकर एक बड़ा वर्ग नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता है। यह उपलब्धियां उसके नागरिकों के अथक श्रम और समर्पण के माध्यम से प्राप्त की गई हैं।
ऐसा लगता है कि एक संयुक्त प्रयास किया जा रहा है कि जिससे इस महान राष्ट्र को हर संभावित मोर्चे पर अविश्वसनीय ठहराया जा सके, उसकी ख्याति को नष्ट किया जा सके और उसे निर्बल बनाया जा सके। ऐसे हर प्रयास को पूरी तरह से पराजित करना चाहिए। किसी भी संवैधानिक न्यायालय को ऐसे प्रयास को सफल नहीं होने देना चाहिए।
मुझे तो ऐसी याचिकाओं को दायर करने वालों की मंशा पर संदेह होता है कि आखिर वे लोग क्यों पुरानी बैलेट व्यवस्था वापस लाना चाहते हैं। “इसके उपरांत उन्होनें कहा कि अब बैलेट व्यवस्था में वापस जाने का कोई प्रश्न नहीं उठता है। “प्रशांत भूषण ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि माननीय न्यायालय ने ये टिप्पणियां की हैं।
यह निर्णय उन शक्तियों के मुंह पर बहुत जोरदार तमाचे की तरह है, जो भारत को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। वह जनता के मन में संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास उत्पन्न करने का प्रयास किया जा रहा है, वह खतरनाक है। यह अर्बन नक्सल समूहों की चाल है कि जब जनता उनकी असलियत समझने लगे और यह जानने लगे कि उनका असली इरादा क्या है तो वे जनता के मन में उन्हीं संस्थाओं के प्रति अविश्वास भर दें, जिन पर वह विश्वास करती है।
यह प्रश्न तो उठना ही चाहिए कि आखिर वे कौन सी शक्तियां हैं, जो भारत की उपलब्धियों को अनदेखा करके देश को अस्थिर करने की दिशा में कार्य कर रही हैं? न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता के इन दो निर्णयों में बहुत कुछ कहा गया है। परंतु कुल मिलाकर यही है कि बैलेट पेपर्स, जिसका आतंक भारत देख चुका है और कैसे बूथों को लूटा जाता था, और कैसे बैलेट पेपर्स नष्ट किए जाते थे, वह अब वापस नहीं आएंगे और वीवी पैट की 100 प्रतिशत गणना नहीं होगी।
वहीं जांच को लेकर माननीय न्यायालय ने यह कहा है कि यदि दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले किसी उम्मीदवार को अपने मतों को लेकर संदेह है वह निर्णय घोषित होने के 7 दिनों के भीतर शिकायत कर सकता है और उसके बाद ईवीएम बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर्स शिकायत की जांच करेंगे।
किसी भी लोकसभा में शामिल विधानसभा की कुल ईवीएम में से 5 प्रतिशत ईवीएम की जांच हो सकेगी और इन्हें भी या तो वह उम्मीदवार या फिर उसके प्रतिनिधि चुनेंगे। इस जांच का सारा खर्च उम्मीदवार को ही उठाना होगा, यदि यह साबित होता है कि छेड़छाड़ की गई है तो उम्मीदवार को सारा खर्च लौटा दिया जाएगा।
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