सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ याचिका को सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया। दरअसल, वकील मैथ्यूज जे नेदुमपारा ने कॉलेजियम प्रणाली खत्म करने की मांग करने वाली याचिका दायर की थी, जिस पर अदालत ने विचार करने से इनकार कर दिया।
रजिस्ट्री ने खारिज किया
वकील मैथ्यू नेदुमपारा ने अदालत से कहा कि कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने की मांग करने वाली उनकी रिट याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। वकील ने कहा, ‘मैंने कई बार इसका जिक्र किया है। रजिस्ट्री ने इसे खारिज कर दिया है और मेरी याचिका को सूचीबद्ध नहीं किया गया।’
अनुच्छेद 32 की याचिका विचार योग्य नहीं
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले को सुना। वहीं सीजेआई ने कहा, ‘रजिस्ट्रार का कहना है कि संविधान पीठ द्वारा किसी बात पर फैसला सुनाए जाने के बाद अनुच्छेद 32 की याचिका विचार योग्य नहीं है। रजिस्ट्रार के आदेश के खिलाफ अन्य उपाय हैं।’
वहीं, वकील ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका चैंबर में खारिज कर दी गई। कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करना होगा। इस पर सीजेआई ने कहा कि मुझे खेद है।
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 17 अक्टूबर, 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम और 99वें संवैधानिक संशोधन को रद्द कर दिया था, जिसमें उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में राजनेताओं और नागरिक समाज को अंतिम राय देने की मांग की गई थी। यह माना गया था कि स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की मूल संरचना का हिस्सा थी।
फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली याचिका भी खारिज कर दी गई। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने कॉलेजियम प्रणाली को हटाने के लिए एनजेएसी विधेयक पारित किया था, जहां न्यायाधीशों के एक समूह ने फैसला किया था कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश कौन होंगे।
क्या है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी)?
एनजेएसी को न्यायिक नियुक्तियां करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और सीजेआई, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा नामित दो अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे। हालांकि अक्तूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
क्या है कॉलेजियम प्रणाली ?
सुप्रीम कोर्ट यानि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से बनाई गई यह एक प्रणाली है, जिसके अंतर्गत न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण किया जाता है। यह कॉलेजियम प्रणाली भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में क्रमशः न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। हालांकि यह प्रणाली संसद के किसी अधिनियम या फिर संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित नहीं है।
कैसे विकसित हुई यह प्रणाली?
प्रथम न्यायाधीश मामला: इस मामले के तहत न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरण पर मुख्य न्यायाधीश के सुझाव की प्रधानता को उचित कारणों के साथ अस्वीकार किया जा सकता था। ऐसा किए जाने पर आगामी 12 सालों के लिए न्यायपालिका के ऊपर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित हुई।
द्वितीय न्यायाधीश मामला: इस प्रणाली के शुरू होने के साथ सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि इसके अंतर्गत परामर्श का अर्थ सहमति होगा। यही नहीं इसमें सर्वोच्च न्यायालय के 2 वरिष्ठ न्यायाधीशों का परामर्श लिया जाएगा।
तृतीय न्यायाधीश मामला: इसके कुछ समय बाद राष्ट्रपति के द्वारा प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पेश किया गया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कॉलेजियम प्रणाली को 5 सदस्यों के रूप में माना गया। इनमें सीबीआई और चार वरिष्ठ जजों शामिल होंगे।
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