कोविशील्ड टीके से कुछ रेयर लोगों को दुष्प्रभाव की खबर चर्चा में है। लोग पूरे दिन इंटरनेट मीडिया पर तरह-तरह के पोस्ट करते रहे। इस बीच डॉक्टर्स का कहना है कि कोई भी दवा या टीका सौ फीसद सुरक्षित नहीं होता। थोड़ा दुष्प्रभाव हर दवा का होता है। उस दवा व टीके से कितने लोगों की जान बची यह अहम बात है। इसलिए लोगों को टीके को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है।
एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने कहा कि जब कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ तब इस बीमारी से बचाव का कोई विकल्प नहीं था। देश में कोरोना से मृत्यु दर करीब डेढ़ प्रतिशत थी। कई देशों में बुजुर्गों की आबादी अधिक होने से मृत्यु दर तीन प्रतिशत थी।
टीके से 80-85 प्रतिशत मौतें हुई कम
देश में हर दस लाख मरीजों में से करीब 15 हजार मरीजों की मौत हुई। टीका 80-85 प्रतिशत मौतों को कम करने में मददगार था। इसलिए प्रति दस लाख की आबादी में 12,000-13,000 मरीजों की जान बची। इसलिए विज्ञान में फायदा व जोखिम की तुलना की जाती है।
टीका तैयार करने में नहीं था पर्याप्त समय
सफदरजंग अस्पताल के प्रिवेंटिव कम्युनिटी मेडिसन के निदेशक प्रोफसर डॉ. जुगल किशोर ने कहा कि कोविशील्ड टीके को लेकर इतना हंगामा यहां क्यों हो रहा है। यह वैक्सीन वर्ष 2020 में तब बननी शुरू हुई, जब पूरी दुनिया में आपदा थी। इसलिए टीका तैयार करने में जितना समय लगता है वह हमारे पास नहीं था। इसलिए इमरजेंसी स्तर पर ट्रायल कर इस्तेमाल हुआ।
देश में 200 करोड़ डोज लगीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इसे प्रमाणित किया। दुनिया भर में करोड़ों लोगों ने यह टीका लिया। देश में 200 करोड़ डोज टीका लगा। जिसमें कोविशील्ड (Covishield) के अलावा कोवैक्सिन (Covaxin) की डोज भी शामिल है। यदि 100-150 लोगों को गंभीर दुष्प्रभाव हुआ भी हो यह सोचना होगा कि कितनी बड़ी आबादी को फायदा हुआ।
सर्विकल कैंस के टीकाकरण में भी हुई देरी
उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं से टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावित होते हैं। वर्षों पहले एचपीवी टीके के ट्रायल में कर्नाटक में एक-दो महिलाओं की मौत हो गई थी। इसके बाद इस टीके का ट्रायल प्रभावित हुआ और देश सर्विकल कैंसर के टीकाकरण में दस वर्ष पीछे चला गया। सर्विकल कैंसर से हर वर्ष सवा लाख महिलाएं पीड़ित होती हैं और करीब 70 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है।
यदि टीकाकरण होता तो कितनी महिलाओं की जान बचती। इसलिए अधूरी जानकारी और अफवाहों से बजा जाना चाहिए। दिल्ली मेडिकल काउंसिल के चेयरमैन डा. अरुण गुप्ता ने कहा कि हर दवा व टीके का कुछ रेयर साइड इफेक्ट होता है। पैरासिटामोल का भी कुछ साइट इफेक्ट होता है। यदि नुकसान से फायदा अधिक हो तो उसका इस्तेमाल किया जाता है।
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