प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट पर घटते जीत के अंतर ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थकों को चौंका दिया है। 2014 और 2019 में बड़ी जीत हासिल करने वाले मोदी का इस बार जीत का अंतर केवल 1.5 लाख वोट पर सिमट गया है, जो भाजपा के लिए एक चिंताजनक संकेत है।
2014 में, मोदी ने लगभग 3.7 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। 2019 में यह अंतर बढ़कर 4.8 लाख वोट हो गया था। लेकिन इस बार, यह अंतर केवल 1.5 लाख वोटों तक सीमित रह गया है। यह कमी केवल अंतर में ही नहीं, बल्कि कुल मतदाताओं की संख्या में भी देखी गई है। 2019 में, मोदी को 10.6 लाख में से 6.75 लाख वोट मिले थे, जबकि इस बार 11.3 लाख मतदाताओं में से केवल 6.13 लाख वोट मिले, जिससे उनका वोट शेयर 63.62 प्रतिशत से घटकर 54.24 प्रतिशत हो गया है।
भाजपा के काशी क्षेत्र के अध्यक्ष दिलीप सिंह पटेल ने कहा है कि वे इस कम अंतर के कारणों की समीक्षा के लिए बैठकें आयोजित करेंगे। दूसरी ओर, इंडी एलायंस के उम्मीदवार अजय राय ने इसे अपनी “नैतिक जीत” करार दिया है।
अजय राय ने कहा, “हर कोई उनके (मोदी) लिए प्रचार कर रहा था और इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी तीन घंटे तक पिछड़ रहे थे। 1.5 लाख वोटों के अंतर से जीतने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। काशी के लोगों ने दिखा दिया कि उनका समर्थन उनके भाई (मुझसे) के साथ है।”
उनके चुनाव प्रबंधन टीम के संयोजक सुरेंद्र नारायण सिंह औधे का मानना है कि यह सफलता भाजपा विरोधी वोटों के विभाजन को रोककर हासिल की गई है। उन्होंने कहा कि 2014 में ये वोट चार उम्मीदवारों (आप, कांग्रेस, सपा और बसपा) के बीच बंट गए थे और 2019 में दो (कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन) के बीच। लेकिन इस बार सभी गैर-भाजपा वोट इंडी एलायंस उम्मीदवार को मिले।
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा और सपा नेता डिंपल यादव ने अजय राय के लिए संयुक्त रोड शो किया था, जिसने बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित किया। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भूमिहार, यादव और मुस्लिम मतदाताओं ने एकजुट होकर इंडी एलायंस उम्मीदवार को वोट दिया, जिससे प्रधानमंत्री मोदी की जीत का अंतर कम हो गया।
यह परिणाम भाजपा के लिए एक चेतावनी का संकेत है कि उनके प्रमुख नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आ रही है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें स्थानीय मुद्दों पर ध्यान न देना, जनता में असंतोष और विपक्ष का मजबूत गठबंधन शामिल है।
इसके साथ ही, यह भी स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष अगर संगठित होकर चुनाव लड़ता है तो वह भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है। इंडी एलायंस ने दिखा दिया कि अगर विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़े तो भाजपा के गढ़ को भी हिला सकता है।
भाजपा को अब अपने चुनावी रणनीति में बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्हें स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने के साथ-साथ मतदाताओं के बीच अपनी पैठ मजबूत करनी होगी। इसके अलावा, उन्हें अपने संगठनात्मक ढांचे को भी मजबूत करना होगा ताकि वे विपक्ष की चुनौती का सामना कर सकें।
आगामी चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन चुनौतियों से कैसे निपटती है और अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिए क्या कदम उठाती है। वहीं, विपक्ष के लिए यह परिणाम उत्साहवर्धक है और उन्हें आगामी चुनावों के लिए एक मजबूत रणनीति बनाने में मदद करेगा। कुल मिलाकर, वाराणसी का यह चुनाव परिणाम भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है और आने वाले समय में इसके व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
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