बंगाल में भाजपा की हार का क्या रहा कारण?

बंगाल में BJP की छवि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। TMC ने BJP को एक बाहरी पार्टी के रूप में चित्रित किया है, जिससे BJP को नुकसान हुआ है।

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बंगाल में चुनावी राजनीति का यह वर्ष न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के मंच पर भी बेहद महत्वपूर्ण रहा। इस साल राज्य में राजनेतिक तौर पर इतना कुछ बीता है कि उससे लगने लगा था की शायद बंगाल एक बार फिर परिवर्तन की राह पर बढ़ चला है। 

ऐसा इसलिए कि जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और अर्धसैनिक बलों ने उत्तरी 24 परगना के संदेशखाली गांव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता शेख शाहजहान के घर छापा मारा, तो घटना के बाद के घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति को हिला कर रख दिया। 

उस समय शेख शाहजहान तो भागने में सफल रहा, लेकिन 55 दिन बाद उच्च न्यायालय के दबाव में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। इस छापे के बाद संदेशखाली की महिलाओं ने झाड़ू और लाठियों के साथ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया, और मीडिया के सामने शेख शाहजहान द्वारा किए गए अत्याचारों की कहानियां साझा कीं।

न्यायपालिका और प्रशासन की तीखी आलोचना

राज्य सरकार को संदेशखाली की घटना से उबरने का मौका भी नहीं मिला था कि न्यायपालिका ने प्रशासन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को उजागर करना शुरू कर दिया। टीएमसी के कई मंत्री और नेता पहले ही जेल में थे, और एक प्रमुख सांसद को गंभीर कदाचार के आरोपों पर निष्कासित कर दिया गया। 

22 अप्रैल को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 25,000 से अधिक शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द कर दी। इसके एक महीने बाद, अदालत ने 2010 के बाद जारी सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाणपत्रों को अवैध घोषित कर दिया।

भाजपा की चुनावी चुनौतियां और प्रदर्शन

बीजेपी को राज्य में इतना कुछ हो जाने के बाद उम्मीद थी की शायद इसका फायदा भाजपा को लोकसभा चुनावों के परिणामों में देखने को मिलेगा, लगा भी ऐसा ही था की शायद बंगाल की जनता अब परिवर्तन की राह पर चलना चहाती है, लेकिन भाजपा की उम्मीदें और सपने 4 जून के फैसले के बाद धराशायी हो गए। 

चुनाव परिणामों का प्रारंभिक विश्लेषण यह दर्शाता है कि भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षाओं की तुलना में निराशाजनक रहा, लेकिन यह 2019 के प्रदर्शन से बहुत अलग नहीं था। पार्टी का वोट शेयर 2021 की तुलना में मामूली वृद्धि दिखा रहा था, लेकिन यह आशा और विकास की तुलना में स्थिरता को ही दर्शाता था।

संगठनात्मक और रणनीतिक कमजोरियां

भाजपा के प्रदर्शन में सुधार के लिए संगठनात्मक, नीति और संचार तथा छवि से संबंधित मुद्दों को सुलझाना आवश्यक है। बूथ स्तर पर पार्टी की संगठनात्मक कमजोरियों, नेतृत्व की कमी, और कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय की कमी ने पार्टी को कमजोर किया। 

चुनावों के पहले, दौरान, और बाद में लगातार हिंसा और संगठनात्मक विफलताओं ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया। शीर्ष नेतृत्व के बीच तालमेल की कमी और पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करना भी समस्याओं में शामिल था, और यह केवल बंगाल में नहीं भारत के कई राज्यों में देखने को मिला, जहां भाजपा ने अपने कोर वोटरों को ही प्राथमिकता नहीं दी, जिसका पार्टी खामियाजा भी चुकाना पड़ा है।

टीएमसी की प्रभावी रणनीति और भाजपा की विफलता

वहीं, दूसरी ओर टीएमसी ने केंद्रीय जांच एजेंसियों और न्यायपालिका पर जवाबी हमलों के माध्यम से अपनी सरकार के चारों ओर सभी नकारात्मक कारकों को उलट दिया, जबकि भाजपा इस अत्यधिक अनुकूल माहौल का लाभ उठाने में विफल रही। 

टीएमसी ने मतदाताओं को व्यक्तिगत संदेश भेजने के लिए अपनी संगठनात्मक ताकत और तकनीक का कुशलता से उपयोग किया। वहीं, भाजपा ने मतदाताओं से सीधे बातचीत करने या उनकी चिंताओं को समझने का बहुत कम प्रयास किया।

सांस्कृतिक और छवि संबंधी चुनौतियां

बंगाल में भाजपा की छवि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। टीएमसी ने भाजपा को एक बाहरी पार्टी के रूप में चित्रित किया है, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान हुआ है। बंगाल भाजपा नेताओं की नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं पर अत्यधिक निर्भरता ने भी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा, पार्टी की बंगाल के जटिल इतिहास और संस्कृति की समझ की कमी और नेतृत्व की नकल की शैली ने भी पार्टी की छवि को प्रभावित किया है।

निष्कर्ष

भाजपा का 2024 का प्रदर्शन उतना विनाशकारी नहीं था जितना हो सकता था, लेकिन पार्टी की संभावनाएं 2026 के राज्य चुनावों के लिए इन मौलिक चुनौतियों को संबोधित करने और खोई हुई जमीन को पुनः प्राप्त करने की क्षमता पर निर्भर करती हैं। पार्टी को अपने संगठनात्मक, नीति और संचार, और छवि से संबंधित मुद्दों को सुलझाने की जरूरत है। 

इसके अलावा, पार्टी को बंगाल के इतिहास, संस्कृति और राजनीति की गहरी समझ विकसित करनी होगी ताकि वह राज्य के मतदाताओं के साथ अधिक जुड़ सकें और उनकी समस्याओं का समाधान कर सकें। तभी भाजपा बंगाल की राजनीति में स्थायी प्रभाव डाल सकेगी।

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