दिल्ली में केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति के निर्माण पर क्यों हो रहा विवाद?

केदारनाथ मंदिर एक बार फिर से चर्चा में है। इस बार विवाद दिल्ली में बनाए जा रहे इस प्राचीन मंदिर की प्रतिकृति को लेकर उभरा है।

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उत्तराखंड के हिमालय में स्थित भगवान शिव के पवित्र धाम, केदारनाथ मंदिर, एक बार फिर से चर्चा में है। इस बार विवाद दिल्ली में बनाए जा रहे इस प्राचीन मंदिर की प्रतिकृति को लेकर उभरा है। जहां राष्ट्रीय राजधानी में मंदिर का निर्माण हो रहा है, वहीं उत्तराखंड में इसका विरोध हो रहा है। आइए, इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत नज़र डालते हैं।

केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति का निर्माण

दिल्ली के हिरणकी, बुराड़ी में तीन एकड़ भूमि पर केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति का निर्माण श्री केदारनाथ धाम ट्रस्ट, बुराड़ी द्वारा किया जा रहा है। ट्रस्ट के अनुसार, यह निर्माण इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उत्तराखंड स्थित मूल केदारनाथ धाम कठोर मौसम के कारण वर्ष में छह महीने के लिए बंद रहता है। ट्रस्ट ने दावा किया है कि यह प्रतिकृति समान वास्तुकला और सामग्री का उपयोग करके बनाई जाएगी।

ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष सुरिंदर रौतेला इस भूमि के स्वामी हैं और वे लगभग 12 करोड़ रुपये की लागत से इस निर्माण का खर्च भी उठाएंगे। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 10 जुलाई को मंदिर के शिलान्यास समारोह में भाग लिया। ट्रस्ट के प्रशासनिक प्रमुख जितेंद्र सुलारा के अनुसार, यह निर्माण 2026 के अंत तक पूरा हो जाएगा।

मूल केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के उच्च हिमालय में स्थित है और यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर चार पवित्र हिंदू धामों में से एक है, जिनमें बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल हैं।

विरोध की लहर

केदारनाथ के साधु-संत और पुरोहित, साथ ही उत्तराखंड के कई धार्मिक नेता और नागरिक इस परियोजना का कड़ा विरोध कर रहे हैं। उन्होंने 12 से 15 जुलाई तक तीन दिवसीय विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई। देवभूमि रक्षा अभियान के अध्यक्ष स्वामी दर्शन भारती ने इसे एक षड्यंत्र के तहत किया गया कार्य बताया और सनातन धर्म के अनुयायियों से इस परियोजना को रोकने की अपील की।

स्वामी दर्शन भारती ने कहा, “बाबा केदार के नाम का दुरुपयोग करना पाप है। मैं सभी सनातनियों से जागने और इस षड्यंत्र को विफल करने की अपील करता हूं।”

राजनीतिक विवाद

राज्य के विपक्षी दल कांग्रेस ने मुख्यमंत्री धामी और सत्तारूढ़ भाजपा पर प्राचीन मंदिर की पवित्रता को कमजोर करने का आरोप लगाया। बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने कहा, “राज्य सरकार का दिल्ली में मंदिर निर्माण से कोई संबंध नहीं है। इसे केदारनाथ ट्रस्ट नामक संगठन द्वारा किया जा रहा है। राज्य सरकार ने इसके निर्माण में कोई वित्तीय सहायता नहीं दी है। मुख्यमंत्री ने धार्मिक समारोह के निमंत्रण पर शिलान्यास समारोह में भाग लिया।”

हालांकि, बीकेटीसी ने दिल्ली में ट्रस्ट के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। अजय ने कहा, “हमें केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों के नाम पर ट्रस्ट बनाने और मंदिर, अस्पताल, आश्रम आदि बनाने के लिए धन जुटाने वाले व्यक्तियों और संगठनों की शिकायतें मिली हैं। कुछ तो ऑनलाइन प्रार्थना के बहाने ऐप का उपयोग करके धन जुटा रहे हैं। हम सभी कानूनी कार्रवाई करेंगे।”

धार्मिक आपत्तियां

विरोध करने वालों की चिंताएं बहुमुखी हैं। पुरोहित मानते हैं कि पवित्र ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति बनाना धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन है। वे कहते हैं कि मूल मंदिरों का हिंदू विश्वास में एक अनूठा स्थान है और उनकी प्रतिकृति बनाना स्थापित परंपराओं के खिलाफ है। वे तर्क देते हैं कि केदारनाथ धाम से दिल्ली तक एक पत्थर लाना मंदिर से जुड़ी पवित्र परंपरा को बाधित करता है। उन्होंने घोषित किया है कि केदारनाथ धाम एक ही है और हमेशा रहेगा, और इसे किसी अन्य मंदिर से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।

केदारनाथ के पुरोहित संघ से जुड़े उमेश पोस्ती ने पीटीआई को बताया, “दिल्ली में केदारनाथ धाम के नाम पर मंदिर का निर्माण करना उस पवित्र हिमालयी मंदिर की पवित्रता का अनादर करना है, जिसे पीढ़ियों से हिंदू श्रद्धालु पूजते आए हैं।”

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने केदारनाथ में एक सोने के घोटाले का आरोप लगाया और कहा कि दिल्ली में भी ऐसा ही होगा। उन्होंने एएनआई को बताया, “केदारनाथ का कोई प्रतीकात्मक रूप नहीं हो सकता। शिव पुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम और स्थान सहित वर्णन किया गया है।

जब केदारनाथ का पता हिमालय में है, तो यह दिल्ली में कैसे हो सकता है? इसके पीछे राजनीतिक कारण हैं। राजनीतिक लोग हमारे धार्मिक स्थानों में प्रवेश कर रहे हैं। केदारनाथ में 228 किलोग्राम सोना गायब है। इसकी जांच अभी तक शुरू नहीं हुई है। अब वे कह रहे हैं कि दिल्ली में केदारनाथ बनाएंगे; यह नहीं हो सकता।”

अयोध्या राम मंदिर के मुख्य पुरोहित आचार्य सत्येंद्र दास ने पीटीआई को बताया, “केदारनाथ जी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तराखंड में है और इसकी सर्वोच्च शक्ति है। 12 ज्योतिर्लिंगों की शक्तियों की तुलना नहीं की जा सकती, इसलिए लोग वहां आशीर्वाद लेने जाते हैं।”

प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ

इन आपत्तियों के जवाब में, सुलारा ने तर्क दिया, “भारत भर में कई वैष्णो देवी मंदिर हैं। मुंबई में एक बद्रीनाथ मंदिर है। इंदौर में भी एक केदारनाथ मंदिर है। हम यहां एक क्यों नहीं बना सकते?” उन्होंने कहा, “सनातन धर्म के खिलाफ मंदिर बनाना नहीं है। लेकिन इसे केदारनाथ के मूल मंदिर के साथ तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि हमारे पास ज्योतिर्लिंग नहीं है। यह सिर्फ एक और शिव मंदिर है।”

रौतेला ने भी विवाद को लेकर कहा, “यह कुछ नया नहीं है और हम इस विवाद को समझ नहीं पा रहे हैं,” जबकि उन्होंने भ्रम से बचने के लिए “धाम” शब्द को हटाने पर भी विचार किया।

निष्कर्ष

केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति का निर्माण एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा बन गया है। धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का सम्मान करते हुए इस तरह की परियोजनाओं को सावधानीपूर्वक और समुदाय की भावना को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। वर्तमान विवाद धार्मिक मान्यताओं, परंपराओं और आस्था के गहरे स्तंभों को छूता है, जिन्हें संतुलित दृष्टिकोण और संवेदनशीलता के साथ संभालने की आवश्यकता है।

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