शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का वार्षिक शिखर सम्मेलन 3 और 4 जुलाई 2024 को कजाखस्तान द्वारा आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का मुख्य विषय ‘मल्टीलेटरल डायलॉग को मजबूत करना—सतत शांति और समृद्धि की ओर प्रयास’ था। इस लेख में हम इस शिखर सम्मेलन के प्रमुख पहलुओं का गंभीर विश्लेषण करेंगे, विशेष रूप से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति और भारत की कूटनीतिक रणनीतियों पर ध्यान देंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने 2017 में भारत के SCO में शामिल होने के बाद से प्रत्येक शिखर सम्मेलन में भाग लिया था, इस बार इस सम्मेलन में उपस्थित नहीं थे। इसका मुख्य कारण 18वीं लोकसभा के पहले सत्र का प्रारंभ और चीन के साथ सीमा विवाद की अनसुलझी स्थिति थी। पीएम मोदी की रूस यात्रा के दौरान मास्को में रूसी नेताओं के साथ बैठक का कार्यक्रम भी बना हुआ है, जिससे इस शिखर सम्मेलन में उनकी अनुपस्थिति और महत्वपूर्ण हो जाती है।
ईरान और बेलारूस की सदस्यता
इस शिखर सम्मेलन में ईरान ने पूर्ण सदस्य के रूप में भाग लिया, हालांकि उसके राष्ट्रपति की असामयिक मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद ईरान के कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर ने भाग लिया। बेलारूस, जो यूरोप में रूस का महत्वपूर्ण सहयोगी है, उसको भी पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई। इससे SCO की संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव आया है, क्योंकि अब यह संगठन केवल मध्य एशिया और चीन-रूस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारत, पाकिस्तान, ईरान और बेलारूस को शामिल करते हुए एक व्यापक संगठन बन गया है।
चीन और रूस का प्रभाव
SCO का प्रारंभिक उद्देश्य मध्य एशिया के साथ चीन और रूस का सहयोग था, लेकिन अब यह 10 देशों का संगठन बन गया है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इससे SCO की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो सकती है। चीन का मानना है कि उसने अपने मध्य एशियाई पड़ोसियों को बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के माध्यम से अपने प्रभाव में शामिल कर लिया है। रूस अब पहले की तरह शक्ति नहीं है और चीन का मानना है कि वह मध्य एशिया और पाकिस्तान में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
भारत की कूटनीति
भारत के विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा दिए गए प्रधानमंत्री मोदी के भाषण ने यह स्पष्ट किया कि भारत SCO में अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर रहा है। भारत ने आतंकवाद विरोधी, आपूर्ति श्रृंखला, देशों की संप्रभुता का सम्मान, और अपने पिछले SCO अध्यक्षता और G20 कार्यक्रमों से अपनी प्राथमिकताओं को उभारा। भारत की प्राथमिकताएं ‘SECURE’ SCO के तहत हैं, जिसमें सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, कनेक्टिविटी, एकता, संप्रभुता का सम्मान, और पर्यावरण संरक्षण शामिल हैं।
आतंकवाद और संप्रभुता का मुद्दा
भारत ने SCO को चीन का पिछलग्गू बनने से बचाने के लिए आतंकवाद पर अपने विचार स्पष्ट किए हैं। चीन के प्रयासों के बावजूद, SCO के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) को अपनी विशिष्ट समझ के तहत निर्देशित करने के प्रयासों का विरोध किया है। हालांकि चीन और पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया, लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण का उद्देश्य स्पष्ट था: सीमा पार आतंकवाद और अन्य सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का अनादर SCO की एकजुटता के लिए अनुकूल नहीं है।
नए सदस्य और संवाद भागीदार
SCO में अभी भी अफगानिस्तान और मंगोलिया पर्यवेक्षक हैं। 14 देशों—अज़रबैजान, आर्मेनिया, बहरीन, कंबोडिया, मिस्र, कुवैत, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, तुर्की, और UAE—संवाद भागीदार के रूप में शामिल हैं। चीन BRICS में कुछ ASEAN देशों की सदस्यता का समर्थन कर रहा है, इसलिए यह देखना होगा कि क्या वह SCO में भी अपने समर्थकों को बढ़ावा देगा।
भारत की रणनीतिक परियोजनाएं
भारत ने चाबहार पोर्ट और उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (NSTC) के महत्व को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया है, जो ईरान, मध्य एशिया और रूस को भारत के साथ जोड़ता है। यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का एक विकल्प है, जिसे चीन पूरा करने में संघर्ष कर रहा है। भारत की साझेदारी अधिक खुली और स्वागत योग्य है।
SCO घोषणाओं में भारत का योगदान
हालांकि SCO घोषणाओं का मसौदा तैयार करते समय भारत को अक्सर अकेला पाया गया है, इस बार भारत ने अपनी प्राथमिकताओं को शामिल करने में सफलता पाई है। इसमें G20 के विषय जैसे वन अर्थ, वन फैमिली, और वन फ्यूचर, डिजिटल सार्वजनिक ढांचा, वित्तीय समावेशन, स्टार्टअप फोरम, और पर्यावरण के लिए जीवन (LiFE) पहल शामिल हैं। इन प्रयासों के माध्यम से भारत ने SCO में अपनी भूमिका को और मजबूत किया है।
चुनौतियां और आगे का मार्ग
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती चीन का आगामी SCO अध्यक्षता और 2025 में होने वाले शिखर सम्मेलन का आयोजन होगा। पाकिस्तान अक्टूबर 2024 में सरकार प्रमुखों की परिषद की मेजबानी करेगा। ये दोनों अवसर भारत के लिए कठिनाइयों के साथ-साथ संभावनाएं भी लाएंगे। अगर चीन और पाकिस्तान भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण में सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें पीएम मोदी की भागीदारी के लिए अनुकूल माहौल बनाना होगा। यदि नहीं, तो भारत को उपराष्ट्रपति या किसी मंत्री को भेजना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत SCO में रहकर इसे प्रभावी और प्रासंगिक बनाना चाहता है, लेकिन अन्य सदस्यों को भी उसी दृष्टिकोण को अपनाना होगा। भारत की कूटनीति, आतंकवाद विरोधी प्रयास, और SCO घोषणाओं में अपने विचारों को शामिल करने के प्रयास इस शिखर सम्मेलन में प्रमुख थे। SCO के भविष्य के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि सभी सदस्य देश एकजुट होकर संगठन को मजबूत करें।
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