कन्नड़ विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, पुरुषोत्तम बिलीमले, वर्तमान में आलोचना के घेरे में हैं। हाल ही में फेसबुक पर किए गए उनके एक पोस्ट के कारण वे विवादों में घिरे हुए हैं। इस पोस्ट में उन्होंने सुझाव दिया था कि उर्दू-माध्यम स्कूलों और मदरसों में कन्नड़ भाषा की शिक्षा के मामले को फिलहाल टाल दिया जाए, क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय इसका विरोध कर रहा है।
आरक्षण विधेयक और उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब कर्नाटक में निजी क्षेत्र में कन्नड़ स्थानीयों के लिए आरक्षण का प्रस्तावित विधेयक चर्चा में है। उद्योग जगत के नेताओं की कड़ी आलोचना के बाद कांग्रेस सरकार ने इस विधेयक को फिलहाल स्थगित कर दिया है। बिलीमले, जो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के समर्थक माने जाते हैं, इस मामले पर अपने विरोधाभासी बयानों के कारण चर्चा में हैं। एक दिन पहले ही उन्होंने एक अन्य पोस्ट में इस विधेयक को चर्चा के लिए लाने के लिए कर्नाटक सरकार की सराहना की थी।
पूर्व विवादित बयान
बिलीमले ने इससे पहले भी कई विवादित बयान दिए हैं। इस वर्ष मंगलुरु में एक सभा में उन्होंने कहा था कि ईसाई मिशनरियों ने राज्य के तटीय क्षेत्र में विकास और प्रगति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अलावा, ‘द न्यूज़मिनट’ में प्रकाशित एक लेख में, उन्होंने कम्बाला दौड़ से पहले कोरागाओं को मैदान में दौड़ाने की प्रथा को ‘सामंती’ और ‘जातिवादी’ करार दिया था। उनके अनुसार, बंट जाति के सामंती लोग कोरागाओं को अपने भैंसों से भी हीन समझते थे।
कन्नड़ भाषा की शिक्षा पर योजना
16 जुलाई को बिलीमले ने घोषणा की कि कन्नड़ विकास प्राधिकरण ने राज्य भर के मदरसों में कन्नड़ भाषा की शिक्षा लागू करने की योजना बनाई है। प्रारंभ में इस पहल को बेंगलुरु, विजयपुरा, रायचूर और कलबुर्गी के चुनिंदा मदरसों में दो दिन प्रति सप्ताह लागू करने का प्रस्ताव था। उन्होंने कहा, “मुख्य उद्देश्य भाषा की खाई को पाटना है, और इस पहल के लिए अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से भी मांग की गई है।”
विरोध और समर्थन
बिलीमले के इस बयान के बाद से ही उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय का एक वर्ग इस निर्णय का विरोध कर रहा है, जबकि कुछ इसे स्वागत योग्य कदम मान रहे हैं। कन्नड़ भाषा के प्रसार के प्रति उनके इस प्रयास की सराहना भी की जा रही है, लेकिन इसका तरीका और समय कई सवाल खड़े करता है।
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