अदानी के इस कदम से क्या भारत बनेगा विश्व का अग्रणी जहाज निर्माता?

गौतम अदानी के शिपबिल्डिंग क्षेत्र में प्रवेश करते ही अब भारत का शिपबिल्डिंग राष्ट्र बनने का सपना पुरा होने की उम्मीदें और बढ़ गई हैं।

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भारत का 2030 तक शीर्ष 10 शिपबिल्डिंग राष्ट्र बनने और 2047 तक शीर्ष 5 में शामिल होने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य अब और भी मजबूत हो गया है, जब गौतम अदाणी ने मुंद्रा पोर्ट पर शिपबिल्डिंग क्षेत्र में प्रवेश किया। यह कदम ‘मैरिटाइम इंडिया विजन (MIV) 2030’ और ‘मैरिटाइम अमृत काल विजन 2047’ के उद्देश्यों के साथ मेल खाता है, जिसका उद्देश्य भारत को एक मजबूत समुद्री क्षेत्र के साथ वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना है।

मैरिटाइम इंडिया विजन 2030: आत्मनिर्भरता की ओर कदम

‘MIV 2030’ भारत के समुद्री क्षेत्र को बदलने की एक व्यापक योजना है, जो केवल बंदरगाह अवसंरचना को बढ़ाने तक सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक शिपबिल्डिंग बाजार में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त करने पर भी केंद्रित है, जहां वर्तमान में भारत पिछड़ रहा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय शिपयार्ड की वार्षिक उत्पादन क्षमता को 0.072 मिलियन ग्रॉस टन (GT) से बढ़ाकर 2030 तक 0.33 मिलियन GT और 2047 तक 11.31 मिलियन GT प्रति वर्ष करने की आवश्यकता है, जो कि KPMG के अनुसार है।

शिपबिल्डिंग उद्योग का सामरिक और आर्थिक महत्व

भारत का शिपबिल्डिंग उद्योग न केवल सामरिक बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उच्च विकास संभावनाओं के साथ, यह उद्योग अनेक रोजगार अवसर उत्पन्न कर सकता है और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इस क्षेत्र के अप्रत्यक्ष लाभ, जैसे स्टील, इंजीनियरिंग उपकरण और बंदरगाह अवसंरचना जैसे उद्योगों तक फैलते हैं, जो इसके महत्व को और बढ़ाते हैं।

वैश्विक संदर्भ: अवसर और चुनौतियां

वैश्विक रूप से, शिपबिल्डिंग उद्योग पर दक्षिण कोरिया, चीन और जापान का दबदबा है, जो मिलकर 90 प्रतिशत से अधिक बाजार हिस्सेदारी रखते हैं। इसके विपरीत, भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.05 प्रतिशत है, जबकि भारतीय स्वामित्व वाले और ध्वजांकित जहाज केवल 5 प्रतिशत विदेशी माल की जरूरतों को पूरा करते हैं। यह स्पष्ट अंतर भारत की शिपबिल्डिंग क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक संगठित प्रयास की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अदानी का प्रवेश: संभावित बदलाव

मुंद्रा पोर्ट पर शिपबिल्डिंग में अदाणी का प्रवेश, 45,000 करोड़ रुपये के विस्तार योजना का हिस्सा है, जिसे हाल ही में पर्यावरण और तटीय विनियमन क्षेत्र मंजूरी मिली है। यह रणनीतिक स्थान, अदाणी की स्थापित उपस्थिति के साथ, एक महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। नई प्रविष्टियों को लंबी भूमि अधिग्रहण और मंजूरी प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है, जबकि अदाणी मौजूदा अवसंरचना और अनुमोदनों का लाभ उठाकर तेजी से शिपबिल्डिंग बाजार में प्रवेश कर सकता है।

प्रतिस्पर्धा में सुधार के लिए आवश्यक कदम

मुंद्रा पोर्ट की विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थिति वित्तीय और कर संबंधी चुनौतियों को कम करती है, जिससे स्थापित वैश्विक शिपयार्डों के साथ प्रतिस्पर्धा करना आसान हो जाएगा। यह रणनीतिक प्रवेश ‘मैरिटाइम इंडिया विजन 2030’ के साथ मेल खाता है और भारत की शिपबिल्डिंग क्षमता और प्रतिष्ठा को बढ़ाने की उम्मीद है। अदानी की पहल, अर्थव्यवस्था के पैमाने और मुंद्रा पोर्ट के रणनीतिक लाभों का लाभ उठाकर, लागत को कम कर सकती है और भारतीय शिपयार्ड की प्रतिस्पर्धा में सुधार कर सकती है।

इसके अतिरिक्त, प्रतिस्पर्धा में सुधार के लिए भारत को कौशल विकास, अनुसंधान एवं विकास (R&D) में अधिक निवेश और समर्थनकारी विनियमों की आवश्यकता है, जैसा कि जापान और दक्षिण कोरिया ने अपनाया है।

निष्कर्ष

अदाणी का मुंद्रा पोर्ट में प्रवेश भारत को शीर्ष शिपबिल्डिंग राष्ट्रों की श्रेणी में पहुंचाने की क्षमता रखता है, ‘मैरिटाइम इंडिया विजन 2030’ को साकार करने और एक समृद्ध समुद्री भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत के लिए यह समय है कि वह इस अवसर का लाभ उठाए और वैश्विक शिपबिल्डिंग बाजार में अपनी पहचान बनाए।

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