राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा पूरे भारतवर्ष की, हर भारतीय की शान है, आजाद भारत के 77वें स्वतंत्रता दिवस से पहले मोदी सरकार 13 से 15 अगस्त तक तिरंगा यात्रा का आयोजन कर रही है, इसके साथ ही लगातार तीसरी साल ‘हर घर तिरंगा’ अभियान पूरे देश में चलाया जा रहा है। हर हाथ में, हर घर में तिरंगा शान से लहरा रहा है, लेकिन क्या आप अपने राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास जानते हैं? क्या आप जानते हैं कि इसे कितने चरणों में बनाया गया? इसके पीछे क्या सोच थी? कितने इसमें बदलाव हुये आजादी से पहले? किसने इसे अंतिम रूप दिया? आइये जानते हैं भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का स्वर्णिम इतिहास।
पहला चरण : सबसे पहले 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश के अपने राष्ट्रीय ध्वज की पेशकश की थी, जिसमें बापू ने दो रंग के झंडे को राष्ट्रीय ध्वज बनाने की बात कही थी, दो रंगों में लाल रंग हिंदुओं और हरा रंग मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करता था, बीच में गांधी जी का चरखा था, जो इस बात का प्रमाण था कि भारत का ये झंडा भारत में बने कपड़े से बना है, इस झंडे को मछलीपट्टनम के रहने वाले पिंगली वैंकैया नें बनाया था।
दूसरा चरण : इसके बाद स्वतंत्रता आंदोलन के अंतर्गत खिलाफत आंदोलन में तीन रंगों के स्वराज झंडे का प्रयोग किया गया। खिलाफत आंदोलन में मोतीलाल नेहरू ने इस झंडे को थामा और बाद में कांग्रेस ने 1931 में स्वराज झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज की स्वीकृति दी, जिसमें ऊपर केसरिया बीच में सफेद और नीचे हरा रंग था, साथ ही बीच में नीले रंग से चरखा बना हुआ था।
तीसरा चरण : तीसरे चरण में भारत का नया तिरंगा यानी तिरंगे का वर्तमान रूप सामने आया। देश के आजाद होने के बाद संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 22 जुलाई 1947 में वर्तमान तिरंगे झंडे को राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया, जिसमें तीन रंग थे. ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग। सफेद रंग की पट्टी में नीले रंग का अशोक चक्र बना था, जिसमें चौबीस तीलियां थीं जो धर्म और कानून का प्रतिनिधित्व करती थीं। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का वही स्वरूप आज भी मौजूद है।
जब तिरंगा बनाया गया तो उससे जुड़े हुये कुछ नियम भी बनाये गये, क्योंकि सवाल राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान का था।
स्वराज झंडे पर आधारित तिरंगे झंडे के सम्मान और मर्यादा के नियम-कानून फ्लैग कोड ऑफ इंडिया द्वारा बनाए गए। इसके तहत निर्धारित हुआ कि झंडे का प्रयोग केवल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर ही किया जाएगा।
इसके बाद 2002 में राजनेता नवीन जिंदल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई, जिसके पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को निर्देश दिए कि अन्य दिनों में भी झंडे का प्रयोग नियंत्रित रूप में हो सकता है। इसके बाद 2005 में जो सुधार हुआ, उसके अंतर्गत कुछ परिधानों में भी तिरंगे झंडे का प्रयोग किया जा सकता है।
भारतीय ध्वज संहिता के प्रावधान के अनुरूप स्वतंत्रता दिवस पर केवल कागज के बने राष्ट्रीय ध्वज का प्रयोग सबको करना चाहिए, प्लास्टिक से बने झंडों का उपयोग नहीं करना चाहिए और समारोह संपन्न होने के बाद इन्हें न तो विकृत करना चाहिए और न ही जमीन पर फेंका जाना चाहिए। झंडों को नष्ट करना आवश्यक हो तो, वो भी उनकी मर्यादा और नियम के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।