पुण्यतिथि विशेष : राम मंदिर के लिये मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लात मारने से लेकर नकल अध्यादेश लाने तक, पद्म विभूषण कल्याण सिंह को आज ऐसे याद कर रहा है देश.

धर्म के लिये सत्ता त्याग देने के उदाहरण बिरले ही मिलते हैं, तारीख थी 6 दिसंबर और साल था 1992, कुछ कारसेवक अयोध्या में स्थित विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़े और उन्होंने देखते ही देखते उसे जमींदोज कर दिया। उस समय कारसेवकों पर गोली ना चलवाने वाले यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू कल्याण सिंह की देश आज तीसरी पुण्यतिथि मना रहा है। कारसेवक विवादित ढांचे को तोड़ रहे थे और बाबू जी लखनऊ में अपने सरकारी आवास पर गुनगुनी धूप सेंक रहे थे, इतना ही नहीं जब पूरे देश में ये चर्चा का विषय बन गया, अयोध्या में बाबरी विध्वंस की चर्चा जंगल में आग की तरह फैल गई, तब आगे बढ़कर कल्याण सिंह नें पूरी ज़िम्मेदारी ली और उसी रोज मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि जानकार बताते हैं कि उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी ने कल्याण सिंह को इस्तीफा देने के मना किया था, लेकिन उन्होंनें किसी की बात नहीं मानी। उस वक्त कल्याण सिंह करोड़ों रामभक्तों के बीच इस फैसले से बेहद लोकप्रिय हो गये थे।

लोग रामभक्त के रूप में उन्हें याद करते हैं, लेकिन उनका दूसरा चेहता बेहतर प्रशासक का भी है। यूपी का मुख्यमंत्री रहते हुये वो नकल अध्यादेश लाए थे। इस फैसले से शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय नकल माफियाओं की कमर टूट गई थी। इस कानून का उद्देश्य प्रदेश के स्कूल और विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में सामूहिक नकल की प्रथा को रोकना था। यह गैर-जमानती था और इसके तहत पुलिस को जांच करने के लिए परीक्षा परिसर में जाने की इजाजत भी थी। हालांकि, 1993 में नकल अध्यादेश को रद्द कर दिया गया लेकिनआज भी उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए याद किया जाता है।

कल्याण सिंह, जिन्हें लोग प्यार से बाबूजी बुलाते थे, वो दो बार बीजेपी से मुख्यमंत्री रहे, सक्रिय राजनीति से दूर होने पर जब केंद्र में मोदी सरकार आई तब राजस्थान और हिमाचल के राज्यपाल भी रहे, लेकिन एक वक्त बीच में ऐसा भी आया जब उनका बीजेपी से मोहभंग भी हुआ था। आपसी मतभेदों के कारण उन्होंनें बीजेपी से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी बना ली थी, कुछ दिन अपने धुर विरोधी मुलायम सिंह के साथ भी रहे, लेकिन अंततः फिर से बीजेपी में शामिल हो गये थे।

रामभक्तों का पक्ष लेने की उन्हें कीमत भी चुकानी पड़ी थी, मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद कई जांचों का, न्यायलय में मुकदमों का भी सामना करना पड़ा। सितंबर 2019 में उन पर विवादित ढांचे को ध्वस्त करने की आपराधिक साजिश के लिए मुकदमा चलाया गया। उन्हें 2020 में केंद्रीय जांच ब्यूरो की एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया था और इसके कुछ ही महीनों के बाद 21 अगस्त 2021 को लखनऊ में उनका निधन हो गया। मरणोपरांत 2022 में कल्याण सिंह को देश के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

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