आप सोचिये कि आपका बच्चा सरकारी स्कूल में सुबह पूजा करके जाये और वहां उसे तिलक लगाकर जाने की वजह से डांटा जाये, और उसके मुस्लिम सहपाठी को जालीदार टोपी पहन कर आने के लिए प्रोत्साहित किया जाये, और ये व्यवहार कोई और नहीं बल्कि बच्चों के गुरूजी यानि अध्यापक करें तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी?
कुछ ऐसा ही हाल इस समय बिजनौर के बनेड़ा इलाके के उच्च माध्यमिक विद्यालय के बच्चों और अभिभावकों का है। दरअसल वहां पढ़ने वाले हिंदू छात्रों नें अपनी मुस्लिम अध्यापिका पर ये आरोप लगाया है कि उनको तिलक लगाकर स्कूल आने की अनुमति नहीं है, ऐसा करने पर उनका तिलक मिटा दिया जाता है, जबकि मुस्लिम छात्रों को टोपी पहनकर आने के लिए कहा जाता है। वहीं उनको जबरदस्ती जुमे की नमाज पढ़ाने मस्जिद ले जाया जाता है, जबकि स्कूल के समय में किसी धार्मिक आयोजन या धार्मिक स्थल पर जाने की अनुमति नहीं है। इस आरोप के बाद स्थानीय लोग और अभिभावकों में स्कूल स्टाफ को लेकर रोष है, हिंदू छात्रों और हिंदूवादी संगठनों की शिकायत पर प्रशासन भी हैरान रह गया, आनन फानन में बीएसए ने पूरे मामले की जांच अपने अधीनस्थ अधिकारी एबीएसए को सौंप दी है, और जांच पूरी होने के बाद एक्शन लेने की बात कही है। फिलहाल के लिये मुस्लिम समुदाय की अध्यापिका को ऐसा ना करने और फॉर्मल कपड़ों में स्कूल आने की हिदायत दी गई है। इतना ही नहीं इस मामले पर जिलाधिकारी भी नज़र बनाये हुये हैं।
क्या हैं सरकारी स्कूल में विद्यार्थियों के लिये नियम :
यूपी सरकार ने 2017 में स्कूल के बच्चों के लिए नया ड्रेस कोड जारी किया था, जिसमें नीली पैंट और सफेद शर्ट की जगह सफेद रंग की पैंट और गुलाबी रंग की शर्ट होगी, वहीं लड़कियों के लिये गुलाबी शर्ट और ब्राउन रंग की सलवार होगी, छोटी बच्चियों के लिये ब्राउन रंग की स्कर्ट को नये ड्रेस कोड में शामिल किया गया था। इसके अलावा किसी तरह की टोपी पहनने की ना तो अनुमति है ना ड्रेस कोड है। फिर किस नियम के तहत मुस्लिम महिला टीचर ने टोपी लगाकर आने का आदेश दिया?
राज्य सरकार की कर्मचारी होते हुए भी सरकार के फैसलों से ऊपर हो गईं मैडम?
सरकारी नियमों के बीच धार्मिक रीति-रिवाज को तवज्जो क्यों? अध्यापक होकर भी धर्म के आधर पर अपने छात्रों से भेदभाव क्यों? योगीराज में इतनी हिम्मत कैसे आई? आखिर इन तुगलकी फैसलों को किसकी शह पर लिया जा रहा है? क्या स्कूल के प्रधानाचार्य भी इसमें शामिल हैं? इन सभी सवालों के जवाब प्रशासन को पूछने चाहिये, सिर्फ इस स्कूल के बच्चों के अभिभावक ही नहीं, बल्कि भारतवासी भी इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं। क्योंकि सवाल सिर्फ इस एकतरफा फरमान का नहीं, सिस्टम के अंदर पनप रही अलगाववादी सोच का भी है।
-अनुज शुक्ला