देश में अहमदिया के अधिकारों को लेकर पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से लगातार विरोध जारी है और धार्मिक कट्टरपंथियों और सुप्रीम कोर्ट के बीच तनाव बना हुआ है । फ़ैसले के बाद से तीन बार बदलाव किया गया है। विगत सोमवार को प्रदर्श के दौरान फ़ैसले को पूर्ण रूप से वापस लेने की मांग की गई। पाकिस्तान में दुनिया की सबसे बड़ी अहमदिया आबादी है। यह देश का एकमात्र ऐसा समुदाय है जिसे मतदान के अधिकार से वंचित रखा गया है और जिसे मुस्लिम के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
मुबारक सानी का मामला क्या है?
विवाद की शुरुआत 6 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले से हुई, जब पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मुबारक अहमद सानी को रिहा करने का आदेश दिया, जो अहमदिया समुदाय से हैं और जिन्हें पिछले साल तफ़सीर-ए-सगीर बांटने के लिए गिरफ़्तार किया गया था, जो तफ़सीर-ए-कबीर का एक छोटा संस्करण है। हालांकि, सानी ने तर्क दिया कि उन्होंने कानून लागू होने से पहले 2019 में पाठ वितरित किया था। पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश काजी फैज़ ईसा ने इस सिद्धांत का हवाला देते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया। शुरू में इस पर किसी का ध्यान नहीं गया, पर बाद में समाज में काफी बढ़ा चढ़ा कर इसका प्रचार किया गया। इसके बाद से पूरे देश में माहौल खराब हो गया। (सीजेपी) के इस फैसले पर पूरे पाकिस्तान में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कानूनी विशेषज्ञों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता की दिशा में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम बताया, खासकर अहमदिया समुदाय के लिए, जो देश में शायद ही कभी कानूनी मामले में अभी तक जीत पाए हैं।
हालांकि, अहमदिया समुदाय ने इस फैसले को सीमित माना, क्योंकि इसने धार्मिक ग्रंथों को वितरित करने के उनके अधिकार की पुष्टि नहीं की। दूसरी ओर, कट्टरपंथी सुन्नी समूहों ने नाराजगी जताते हुए चीफ जस्टिस ईसा पर अहमदिया समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगाया। विगत 23 फरवरी को, हजारों पाकिस्तानियों ने चीफ जस्टिस ईसा के खिलाफ इस फैसले के विरोध में प्रदर्शन किया, जिसे उन्होंने ईशनिंदा से संबंधित माना। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस ईसा के फैसले का बचाव करते हुए एक बयान जारी किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि उनका ये फैसला पाकिस्तान के इस्लामी संविधान का उल्लंघन नहीं करता है।
बढ़ते विवाद के बीच पंजाब सरकार ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की। कई धार्मिक दलों ने भी याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने उनके अधिकार को संवैधानिक और इस्लामी कानून के तर्कों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुनवाई तक सीमित कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस्लामिक विचारधारा परिषद (सीआईआई) सहित 10 धार्मिक संस्थानों को भी नोटिस जारी कर इस्लामी न्यायशास्त्र पर उनका मार्गदर्शन मांगा।
22 अगस्त को याचिका पर होगी सुनवाई
अब, पंजाब सरकार ने एक बार फिर न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है, जिसमें तर्क दिया गया है कि ये गलत धारणाओं पर आधारित थे। न्यायालय 22 अगस्त को ‘तत्काल’ आधार पर याचिका पर सुनवाई करने वाला है।
पाकिस्तान में अहमदिया उत्पीड़न
पाकिस्तान में करीब 50 लाख अहमदिया मुस्लिम रहते हैं, लेकिन उन्हें काफ़ी उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें गैर-अहमदिया मस्जिदों में पूजा करने, इस्लामी अभिवादन का उपयोग करने, सार्वजनिक रूप से कुरान पढ़ने और धार्मिक सामग्री का उत्पादन या प्रसार करने से कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है। इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर जेल हो सकती है। अहमदियों को पाकिस्तान में वोटिंग का भी अधिकार नहीं है। वो न तो खुलेआम कुरान का पाठ कर सकते हैं, और न ही आम मुस्लिमों के लिए बनाई गई मस्जिदों में नमाज पढ़ना तो दूर, अंदर घुस नहीं सकते हैं। यही नहीं वो किसी भी रूप में इस्लाम के प्रतीकों का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
इस्लाम की सभी बुनियादी शिक्षाओं को मानने के बावजूद अहमदियों को पासपोर्ट जैसे सरकारी दस्तावेजों के लिए खुद को गैरमुस्लिम ही लिखना पड़ता है। अहमदियों के खिलाफ बनाए गए इन कानूनों की वजह से पूरे पाकिस्तान में इस समाज का काफी दमन हुआ है और वो अपने ही देश में दोयम दर्जे का जीवन जीने को मजबूर हैं। ईशनिंदा के नाम पर बनाए गए इस कानून की आड़ में अक्सर इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा उन्हें निशाना बनाए जाने की खबरें भी सामने आती रहती हैं। और ताजी घटना भी कट्टरपंथियों की अहमदियों के प्रति इसी सोच की एक बानगी है।
विश्व नाथ झा।