15 अगस्त 2021, जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। उस वक्त कुछ तालिबान हितैषियों ने नैरेटिव सेट करने की कोशिश की थी कि ये तालिबान 2.0 है, यानी बदला हुआ तालिबान। वो तालिबान जो अल्पसंख्यकों को लेकर, महिलाओं को लेकर कहीं ज्यादा उदार होगा। लेकिन तालिबान के बीते 3 साल के शासन में ये नैरेटिव धुएं में उड़ चुके हैं, बल्कि हर बीतते दिन के साथ तालिबान का एक नया कट्टर चेहरा सामने आता है।
महिलाओं को लेकर तालिबान का ताजा फरमान इसकी सबसे जिंदा मिसाल है। तालिबान को महिला विरोधी होने का तमगा पहले से ही मिला हुआ है। उसे किसी से सर्टिफिकेट प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। पर लोगों को उम्मीद थी कि समय के साथ तालिबानियों में भी महिलाओं के प्रति सोच में कुछ बदलाव आएगा। पर अपने तीन वर्ष के कार्यकाल पूरे होने से पहले ही उन्होंने महिला विरोधी आचरण दिखाना शुरू कर दिया था। मगर अब उससे भी एक कदम आगे बढ़कर यह कानून लागू कर दिया है कि महिलाएं अब सार्वजनिक स्थानों पर न ही अपनी आवाज सुनाएं और न ही अपनी शक्ल दिखाएं। बताया जा रहा है कि इस कानून से नैतिकता में और बढ़ोतरी होगी। इस कानून को बुधवार को तब लागू किया गया जब उनके सर्वोच्च नेता अखुन्दजाद से सहमति मिल गई।
शरिया कानून के तहत पहला घोषित फतवा
आपको बता दें कि 2021 में सत्ता संभालने के बाद तालिबान ने अच्छाइयों के प्रचार और गुनाहों से बचाव के लिए अलग मंत्रालय बना दिया। इसी मिनिस्ट्री ने बुधवार को यह कानून लागू किया। 35 आर्टिकल डॉक्यूमेंट कट्टर शरिया कानून के कड़े क्रियान्वयन के अंतर्गत पहला घोषित फतवा है। यह सभी व्यक्तिगत आजादी और मजहबी प्रथाओं को प्रतिबंधित करता है। और साथ ही जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। चाहे वह परिवहन हो, संगीत हो, दाढ़ी बनाना हो और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं का व्यवहार या उनका प्रदर्शन ।
महिलाओं का सार्वजनिक जीवन अमूमन खत्म
महिलाओं का अफगानिस्तान में सार्वजनिक जीवन अमूमन खत्म जैसा है। घरों में ही वह बंद रहती हैं। कक्षा पांच से आगे की पढ़ाई पर प्रतिबंध है। उन्हें घर के पुरुष सदस्यों के अलावा किसी के साथ बाहर जाने की इजाजत भी नहीं है, और अब यह फतवा आया है कि एक औरत की आवाज बहुत निजी होती है और किसी को भी सार्वजनिक स्थानों पर गाने, कविता करने या जोर से पढ़ने की आवाज नहीं सुनाई देनी चाहिए। औरतों को उन आदमियों की तरफ देखने की भी इजाजत नहीं है, जिनके साथ उनका खून का रिश्ता नहीं है या फिर शादी नहीं है।
औरतों को सिर से लेकर पैर तक ढके होना अनिवार्य
इस कानून के तहत औरतों को अपने सिर से लेकर पैर तक पूरा ढकना अनिवार्य है। जिससे कि और लोगों के दिल में ऐसा कोई जज्बात पैदा न हो पाएं। ये बहुत हैरान करने वाली बात है कि जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली थी तब भारत के कई इस्लामिस्ट फेमिनिस्ट महिलाएं इसलिए तालिबान शासकों के समर्थन में उठ खड़ी हुई थीं।
औरतों के साथ स्थिति और भयावह
मगर समय के साथ तालिबान के शासन में वहां की औरतों के साथ और भयावह स्थिति हो गई । उनसे धीरे-धीरे सारे अधिकार छीन लिए गए। उनकी पढ़ाई बंद कर दी गई, उनसे बाहर निकलने के अधिकार छीन लिए गए, उनसे उनकी मर्जी के वस्त्र पहनने के अधिकार तक छीन लिए गए। उनके ब्यूटी पार्लर बंद करा दिए दिए गए। इसके साथ ही मुसाफिर और चालक दोनों को इबादत के समय का पालन करना है और आदमियों के लिए दाढ़ी रखनी भी आवश्यक है। अभी हाल ही में तालिबान ने अपने सुरक्षा दस्ते में से कई आदमियों को इसलिए नौकरी से निकाल दिया क्योंकि वे दाढ़ी नहीं बढ़ा रहे थे। ‘अच्छाई मंत्रालय’ में योजना और कानून के डायरेक्टर मोहिबुल्ला मोखिलस ने कहा था कि 281 ऐसे अधिकारियों को पहचाना गया है और फिर नौकरी से निकाल दिया गया जिन्होंने अपनी दाढ़ी कटवाई थी। ऐसा विगत 12 महीनों के दौरान किया गया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि 450 मिलिट्री मुजाहिदीनों के बालों के स्टाइल को शरिया कानून के हिसाब से किया गया है, और जिन्होंने बालों के स्टाइल को रखने के लिए कानून का पालन नहीं किया उन्हें शरिया अदालतों में भेज दिया गया।
आदमियों के लिए दाढ़ी रखना जरूरी
अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार में आदमियों के लिए दाढ़ी रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि उनके अनुसार यह दाढ़ी ही है जो आदमियों को औरतों से अलग करती है। टेलीग्राफ से बातचीत करते हुए तालिबान के पूर्व सुरक्षा दलों ने कहा कि उन्हें दाढ़ी बनाने पर काम से बाहर कर दिया गया। दाढ़ी नियमों के अनुसार नहीं थी। टेलीग्राफ के अनुसार वाद्ययंत्रों को खोज-खोजकर तोड़ा जा रहा है। हेरात में एक पूर्व गिटार शिक्षक जलिल अहमद ने बताया कि उनके घर में घुसकर उन्हें पीटा और उनके कई संगीत उपकरण तोड़ डाले। ये सभी इस्लामी कानूनों के नाम पर हो रहा है और इनका उल्लंघन करने वालों को सजा दी जा रही है।
विश्व नाथ झा।