नई दिल्ली। बैंक से लोन लेने वाले आम जनता के लिए जल्द बड़ी खुशखबरी आ सकती है। ब्याज दरों में कमी का चक्र अब शुरू हो गया है। इसलिए उनके लोन की किश्तें भी कम हो सकती हैं। इससे तंगी का सामना कर रहे मध्यमवर्गीय परिवारों के हाथ में खुलकर खर्च करने के लिए पैसा मिल जाएगा। साथ ही यह बढ़ा हुआ खर्च उत्पादों की मांग निर्मित करने में सहायक बनेगा। दरअसल भारतीय लोन धारकों को यह खुशी अमेरिका में यूएस फेड दर के कम करने के अच्छे प्रभावों के वजह से मिलने वाली है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जर्मी पोवेल ने 19 सितम्बर, 2024 को यूएस फेड दर में 50 बेसिस प्वाइंट की कमी करने की घोषणा करते हुए यूएस फेड दर को 5.5 % से घटाकर कर 5% कर दिया है। प्रमुख अर्थशास्त्रियों के अनुसार अमेरिका में ब्याज दरों को कम करने का जो सिलसिला शुरू हुआ है। उसका लाभ भारत के अलावा अन्य विकसित देशों की आम जनता को भी जल्द मिलने वाला है।
अमेरिका में ब्याज दरें घटीं, तो भारत को फायदा कैसे ?
4 साल पहले विश्व में फैली कोवि महामारी के बाद से मुद्रास्फीति की दर में पिछले 4 दशकों में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज हुई थी और मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रण में लाने के उद्देश्य से विकसित एवं अन्य कई देश ब्याज दरों को लगातार बढ़ा रहे थे, ताकि उत्पादों की मांग बाजार में कम हो और उत्पादों की आपूर्ति मांग के अनुरूप हो जाए। कोविड की मार के बाद यूएस फेड दर 0 % से बढ़कर 5.50 % तक पहुंच गई थी परंतु अब यूएस फेड दर को कम करने की घोषणा की गई है।
अब समझते हैं कि अमेरिका में फेड दर की कमी से भारत के लोगों को लाभ कैसे होगा। और यहां बैंकों की किश्त कैसे कम होगी तथा ब्याज दरों में कैसे कमी आएगी?
दरअसल आज विश्व के कई देश, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र, आपस में इतने अधिक जुड़ चुके हैं कि किसी एक देश के आर्थिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन अन्य देशों के आर्थिक क्षेत्र को भी प्रभावित करते हैं। इसलिए जब भी अमेरिका द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की जाती है तो अन्य देशों में अमेरिकी संस्थानों एवं उसके नागरिकों द्वारा दूसरे देशों में किया गया निवेश इन देशों से निकलकर अमेरिका में वापिस आने लगता है। क्योंकि तब ऐसे हालात में अमेरिकी वित्तीय संस्थानों एवं अमेरिकी सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले बांड पर उन्हें आकर्षक ब्याज दर मिलने लगती है।
इसके उलट जब भी अमेरिका द्वारा यूएस फेड दर में कमी की घोषणा की जाती है तो अन्य विकासशील देशों में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों एवं नागरिकों का निवेश बढ़ने लगता है, क्योंकि तब इन निवेशकों को दूसरे बाजारों में अमेरिका की तुलना में अच्छा रिटर्न मिल रहा होता है। इस विशेष कारण के चलते कई देश तो अमेरिकी फेड रिजर्व के निर्णय को ध्यान में रखते हुए ही अपने देश में भी ब्याज दरों को कम अथवा अधिक करते हैं। ताकि उनके देश में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों एवं नागरिकों द्वारा किया जा रहा निवेश बहुत अधिक प्रभावित नहीं हो ।
चूंकि अब यूएस फेड दर में 50 बेसिस प्वाइंट की कमी की गई है अतः अन्य कई देश भी ब्याज दरों में कमी की घोषणा कर सकते हैं। इसलिए इसे पूरे विश्व में ही ब्याज दरों को कम करने के चक्र के प्रारम्भ के रूप में देखा जा रहा है। वैसे इसकी शुरुआत यूरोपीयन देशों एवं ब्रिटेन द्वारा पूर्व में की जा चुकी है तथा किंतु अब विकासशील देश भी ब्याज दरों में कमी की घोषणा शीघ्र ही कर सकते हैं।
भारत में जल्द घट सकती हैं ब्याज दरें
बात करें भारत कि तो यहां भी पिछले कुछ समय से मुद्रा स्फीति की दर लगातार नियंत्रण में बनी हुई है। मगर आरबीआई अमेरिकी फेड दर में कमी से पहले ही यदि ब्याज दरों में कमी की घोषणा करता तो भारत में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों के संस्थानों द्वारा अमेरिकी डॉलर में किये गए निवेश के भारत से निकलने की सम्भावना बढ़ जाती।
भारत में आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कमी की संभावना इसलिए भी बढ़ी हुई हैं क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा यह भी कहा गया है कि वर्ष 2024 में यूएस फेड दर में 25 आधार बिंदुओं की दो बार और कमी की घोषणा की जा सकती है तथा वर्ष 2025 में 100 आधार बिंदुओं की कमी की जा सकती है। इससे यूएस फेड दर घटकर 3.50 % तक नीचे आ सकती है।
यूएस फेड दर में 50 बेसिस प्वाइंट्स की कमी की घोषणा के साथ ही 10 वर्षों के लिए जारी अमेरिकी बांड की यील्ड घटकर 3.73 % के स्तर पर आ गई है एवं डॉलर इंडेक्स भी 100.37 के निचले स्तर पर आ गया है । अब अमेरिकी डॉलर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबाव बढ़ेगा जिससे अमेरिकी डॉलर का अवमूल्यन हो सकता है। जिससे अमेरिकी बाजारों से पूंजी निकलकर अधिक मुनाफे की तलाश में अन्य इमर्जिंग देशों के शेयर बाजार में जाएगी ।
इसका सबसे अधिक लाभ भारत को होने की संभावना है। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रहीं आर्थिक सुधार की नीतियों के वजह से भारत पूर्व में ही msci emerging market index (IMI) में चीन से आगे निकल कर प्रथम स्थान पर आ गया है।
इसलिए संभावना ज्यादा है कि आने वाले दिनों में भारतीय बाजारों में निवेश और बढ़ेगा और इसकी झलक भी बाजार में आई बंपर तेजी के साथ दिखने लगी है। क्योंकि विश्व के वित्तीय संस्थान, सोवरेन फंड, पेंशन फंड एवं अन्य निवेशक MSCI के इंडेक्स पर अधिक विश्वास करते हैं एवं अपने निवेश भी इस इंडेक्स में शामिल शेयरों में करते हैं। दूसरे, अब इस बात की संभावना बहुत बढ़ गई है कि भारतीय रिजर्व बैंक भी रेपो दर में कमी की घोषणा शीघ्र ही करे क्योंकि अब अमेरिका में अधिक ब्याज दरों का दौर समाप्त हो रहा है।
अमेरिका में बढ़ी हुई ब्याज दरों का विपरीत प्रभाव न केवल भारतीय रुपए पर हो रहा था बल्कि अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों से भारत में अमेरिकी डॉलर में होने वाले विदेशी निवेश पर भी दबाव बना हुआ था । अब अमेरिका में यूएस फेड दर के कम करने से भारतीय रुपए पर दबाव एवं भारत से विदेशी निवेश के बाहर जाने का डर भी कम हो जाएगा। साथ ही, यदि भारत में भी ब्याज दरों को कम करने का दौर शुरू होता है तो इससे भारतीय उद्योग जगत को फायदा होगा और उनकी लाभ कमाने की क्षमता में वृद्धि होगी,जो विदेशी निवेश को भारत में आकर्षित करने में सहायक होगी।
100,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार करेगा विदेशी मुद्रा भंडार!
भारतीय बाजार में विदेशी निवेश के लिए विद्यमान परिस्थितियों का अंदाजा इससे ही लगता है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पहले से ही अपने उच्चत्तम स्तर 68,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है। अब बदली हुई परिस्थितियों में भारत का शेयर बाजार यदि और अधिक विदेशी निवेश की राशि भारत में आकर्षित करने में सफल रहता है तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 100,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर सकने की क्षमता रखता है। तीसरे, भारत में ब्याज दरों के कम होने से उद्योग जगत द्वारा भारत में उत्पादित वस्तुओं की लागत भी कम हो सकती हैं और भारत में निर्मित उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे, इससे भारतीय उत्पादों के निर्यात में वृद्धि होने की सम्भावना बन सकेगी। चैथे, अमेरिकी बाजार में ब्याज दरों के कम होने से विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लाभप्रदता में वृद्धि के चलते इन कम्पनियों द्वारा नवाचार के लिए रीसर्च पर खर्च में बढ़ौतरी की जा सकती है, जिसका सीधा सीधा लाभ भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाली कम्पनियों को होने जा रहा है।