भाजपा के लिए क्यों ‘करो या मरो’ जैसा है हरियाणा सहित 4 राज्यों का चुनाव?

हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता बची तो इज्जत बचेगी नहीं तो लोकसभा चुनाव के बाद से कमजोर होने का संदेश और मजबूत होगा

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जम्मू-कश्मीर में अगर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी नतीजों को 370 पर जनता के रेफरेंडम के तोर पर पेश कर सकेगी नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के लिए हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी लड़ाई ‘करो या मरो’ जैसी है। अगर हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता बचाने में सफल रहती है तो पार्टी 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्पन्न उस धारणा को तोड़ देगी, जिसमें बहुमत से चूक जाने को जनता के बीच पकड़ ढीली होने का संदेश लोगों के बीच चला गया। अगर भाजपा बोनस के रूप में झारखंड जीतने में सफल रहती है और जम्मू-कश्मीर में भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो पार्टी को लोकसभा चुनाव के बाद खोए आत्मविश्वास को दोबारा हासिल करने का यह सुनहरा अवसर होगा।

बड़े-बड़े महारथियों को राज्यों में लगाने की वजह

भाजपा के लिए हरियाणा और झारखंड जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव कितने महत्वपूर्ण हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री जैसे महारथियों को चुनाव प्रभारी के मोर्चे पर लगा रखा है। मिसाल के तौर पर झारखंड को ले, जहां असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे दो दिग्गज चेहरों को पार्टी ने चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी दी है। इसी तरह हरियाणा में त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद बिप्लब देब और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान चुनाव प्रबंधन देख रहे हैं। महाराष्ट्र में भी भाजपा के प्रमुख चुनाव रणनीतिकारों में शुमार भूपेंद्र यादव और चुनावी डेटा के मास्टर माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव चुनावी रणनीति बनाने में जुटे हैं।

हरियाणा में हार हुई तो विपक्ष के हाथ केंद्र की गर्दन तक पहुंचेंगे

दिल्ली और पंजाब दोनों में केजरीवाल की सरकार है। बीच में हरियाणा में पिछले 10 साल से भाजपा की सरकार है। किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा में भाजपा की सरकार होने के कारण ही दिल्ली को बंधक बनाने निकले उपद्रवियों को सीमा पर ही रोकने में सफलता मिली थी। अगर इस बार भाजपा हरियाणा हारती है तो केंद्रशासित प्रदेश से लेकर हरियाणा और पंजाब तक विपक्ष की सरकारें रहेंगी। जिससे जब मन करेगा, तब विपक्ष पोषित आंदोलनकारी दिल्ली पहुंचकर केंद्र को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर सकते हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों में जीतने से पार्टी यह देश भर में संदेश दे सकेगी कि लोकसभा चुनाव में भले ही बहुमत नहीं मिला, लेकिन जनता में पार्टी की पकड़ अभी कमजोर नहीं हुई है। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र में सत्ता के लिए 145 सीट चाहिए।

तो वहीं झारखंड में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन को अगर भाजपा सत्ता से बाहर करने में सफल रही तो यह देश में इंडी गठबंधन के लिए बड़ा झटका होगा। लेकिन, यहां भाजपा लगातार दूसरी बार हारी तो माना जाएगा कि आदिवासी बहुल्य राज्य में भाजपा ने पुरानी गलतियों से सबक नहीं लिया। 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 42 सीटें किसी दल को चाहिए।

क्यों अहम है जम्मू-कश्मीर का चुनाव ?

अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर में चुनाव हो रहे हैं। अगर भाजपा यहां सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती है तो पार्टी इसे 370 हटाने के निर्णय को जनता की मुहर के रूप में पेश कर सकेगी। अगर भाजपा को यहां सफलता नहीं मिलती है तो विपक्ष इसे 370 के खिलाफ जनादेश के रूप में पेश करेगा। यह भाजपा के कोर एजेंडे और वोटर्स के लिए असहज करने वाली स्थिति होगी। 90 सदस्यीय जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 46 सीटें जीतना जरूरी है। भाजपा की कोशिश जम्मू की अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करना है।

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