भारत का विपक्ष और उसके समूह के पत्रकार और बुद्धिजीवी अक्सर ‘मणिपुर जल रहा है’ रटते रहते हैं और केंद्र सरकार पर नाकामी के आरोप लगाते रहते हैं। हालाँकि, बात जब समस्या के कारणों पर आती है तब वो चुप्पी साध लेते हैं। वो ये भूल जाते हैं कि मैतेई समाज को ST (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा दिए जाने के हाईकोर्ट के आदेश के बाद कुकी समूह के लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था जो बाद में हिंसा में बदल गया। जहाँ मैतेई समाज के लोग स्थानीय संस्कृति में रचे-बसे हैं और अधिकतर हिन्दू हैं, कुकी वर्ग में अधिकतर ईसाई हैं।
मणिपुर का जिक्र हम इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि वहाँ फिर से हिंसा शुरू हो गई है। दूसरा कारण ये है कि अमेरिकी मीडिया संस्थान ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में ‘ग्लोबल ओपिनियन’ लिखने वाले भारत की इस्लामी कट्टरपंथी पत्रकार राना अय्यूब मणिपुर जा रही हैं। पत्रकारिता की आड़ में ये समूह अब तक जिस प्रकार का प्रपंच फैलाता आया है, स्पष्ट है कि व कम से कम मणिपुर के असली पीड़ितों की पीड़ा को दिखाने तो नहीं जा रही हैं। राना अय्यूब ने आज तक WaPo (वाशिंगटन पोस्ट) में एक भी ऐसा लेख नहीं लिखा है जो भारत को सकारात्मक रूप से पेश करता हो।
अगस्त 2024 में प्रकाशित उनके ताज़ा लेख में उन्होंने पाकिस्तान की तुलना भारत से करते हुए लिखा था कि दोनों जगह लिंचिंग की घटनाएँ हो रही हैं। ‘हेट क्राइम’ का जिक्र करने के दौरान उन्होंने ये नहीं बताया कि पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या आज़ादी से समय 21% से अब सीधा 2% पर कैसे आ गई और भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या 22 करोड़ के भी पार कैसे पहुँच गई। पाकिस्तान में कितने मंदिर बचे हैं और भारत में कितने मस्जिद हैं? इसी तरह उन्होंने लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की सीटें घटने को मुस्लिमों के लिए अच्छी खबर बताया था। उससे पिछले लेख में उन्होंने भारत पर पत्रकारों पर अत्याचार का नैरेटिव फैलाया था। ये अलग बात है कि अमेरिका में ‘इंडिया टुडे’ के पत्रकार रोहित शर्मा को कॉन्ग्रेस समर्थकों ने पीटा तो राना अय्यूब के मुँह से चूँ शब्द भी नहीं निकला।
राना अय्यूब ऐसे समय में मणिपुर जा रही हैं, जब वो एक संवेदनशील राज्य बना हुआ है और केंद्र व राज्य सरकारें मिल कर हिंसा को रोकने और हालात सामान्य बनाने के सारे प्रयास कर रही हैं। ऐसे समय में जब बांग्लादेश में सत्ता-परिवर्तन के पीछे अमेरिका का हाथ होने की चर्चाएँ हैं, अमेरिकी राजनयिकों ने हाल ही में हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी और जम्मू कश्मीर के उमर अब्दुल्लाह से मुलाकात की है – अमेरिकी मीडिया संस्थान से ताल्लुक रखने वाली एक कट्टरपंथी इस्लामी पत्रकार का मणिपुर दौरे पर जाना शक तो पैदा करता ही है।
राना अय्यूब और विवादों का काफी पुराना नाता रहा है। मार्च 2022 में उन्हें मुंबई एयरपोर्ट पर विदेश जाने से रोक दिया गया था। कारण – उन पर चंदाखोरी के आरोप लगे थे। जाँच एजेंसी ED ने भी बताया था कि उन्होंने कोरोना पीड़ितों के नाम पर 2.70 करोड़ रुपए का चंदा बटोर लिया और फिर उसे अपने लिए इस्तेमाल में लाया। यानी, चंदे के पैसे खुद के ऐशोआराम पर खर्च किए। उन्होंने फिक्स्ड डिपॉजिट तक अपने लिए खुलवा लिया इन पैसों से। आज वही राना अय्यूब अपना ‘थर्मामीटर’ लेकर मणिपुर में डेमोक्रेसी इंडेक्स मापने जा रही हैं। आगे क्या होगा, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए बहुत दिमाग खपाने की आवश्यकता नहीं है।
वहाँ जाकर राना अय्यूब दिखाएँगी कि कैसे हिन्दू अत्याचार कर रहे हैं और ईसाई पीड़ित हैं। इसके बाद ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में उनका लेख आएगा, जिसमें बताया जाएगा कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो चुका है। फिर इस गिरोह के साथी राना अय्यूब द्वारा लाए गए उस नैरेटिव को फैलाएँगे। इनकी अंतिम मंशा यही है – भारत की अधिक से अधिक बदनामी। गुजरात के गृह मंत्री रहे हरेन पंड्या की संदिग्ध मौत पर भी राना अय्यूब ने झूठ फैलाया था। इसी तरह उन्होंने गुजरात में हुए दंगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए जी-जान लगा दिया था। वो अक्सर मुस्लिम लड़कियों के लिए बुर्के-हिजाब की पैरवी करती रहती हैं, यहाँ तक कि शैक्षणिक संस्थानों में भी यूनिफॉर्म को धता बता कर। ये अलग बात है कि वो खुद विदेशी से आधुनिक कपड़ों में तस्वीरें डालती हैं।
राना अय्यूब फ़िलहाल असम में ये दिखाने में जुटी हैं कि वहाँ कोई बांग्लादेशी घुसपैठिया नहीं है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है कि मणिपुर में लोकतंत्र का अर्थ कुछ और है, ये एक ऐसी स्टोरी है जिसपर त्वरित रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है। हाल ही में खबर आई कि म्यांमार से 900 आतंकी मणिपुर में घुसाए जाने की साजिश है, जिसके बाद ख़ुफ़िया एजेंसियों के कान खड़े हो गए थे। ऐसे समय में राना अय्यूब वहाँ क्यों जा रही हैं? खुद मणिपुर के सिक्योरिटी एडवाइजर कुलदीप सिंह ने ये जानकारी दी थी।
हो सकता है राना अय्यूब की स्टोरी आने के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधियों या राजनयिकों से कोई प्रपंची पत्रकार इस पर सवाल भी पूछ दे। वैसे भी भारत का एक खास समूह यहाँ विदेशी हस्तक्षेप के लिए लालायित रहता है। अब देखना है कि हिंसा पीड़ित राज्य से क्या-क्या प्रपंच चलाया जाता है। रूसी मीडिया संस्थान ‘स्पुतनिक मीडिया’ ने भी ध्यान दिलाया है कि राना अय्यूब के मणिपुर दौरे पर लोग सवाल उठा रहे हैं।
मणिपुर में विदेशी हस्तक्षेप की बातें हवा-हवाई नहीं है। खुद मुख्यमंत्री N बीरेन सिंह कई बार दोहरा चुके हैं कि राज्य की स्थिति को बिगाड़ने में विदेशी हाथ है। ‘कुकी नेशनल आर्मी’ के म्यांमार कैडर के एक सदस्य की गिरफ्तारी के बाद इस तथ्य की पुष्टि भी हो जाती है। ‘असम राइफल्स’ ने ये गिरफ़्तारी की थी। ये भी सबूत मिले कि सीमा पार से मणिपुर में हिंसा के लिए हथियारों की सप्लाई की जा रही थी।