लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक बयान पर घिरे हुए हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि मठाधीश और माफिया में ज्यादा अंतर नहीं होता है। उनका यह बयान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तंज के रूप में देखा गया। सीएम योगी गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। उनको गोरक्ष पीठ के उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी सक्रिय राजनीति में आने से तीन साल पहले ही मिल चुकी थी। मठाधीश-महंत वाले अखिलेश के बयान पर हमला करते हुए सीएम योगी ने कहा था कि माफिया के आगे नाक रगड़ने वाला व्यक्ति भारत की संत परंपरा को माफिया कहता है। इस जुबानी जंग में अब अखिलेश ने एक बार फिर बिना नाम लिए योगी पर तंज कसा है। उन्होंने एक दोहा कहा, जिसका अर्थ है भाषा से ही असली संत-महंत की पहचान होती है। संसार में बहुत से धूर्त लोग साधु वेष में घूमते रहते हैं। तो क्या सभी संतों की वाणी मृदु होती है? भारत की महान संत परंपरा का पौराणिक और वर्तमान स्वरूप देखें तो ऐसे बहुत से संत-महात्मा हुए हैं, जिनकी वाणी भले ही कड़वी थी लेकिन किसी ने उनके संतत्व को संदेह की दृष्टि से नहीं देखा। पहले चर्चा उन्हीं संतों की, फिर अखिलेश की वाणी पर आगे बढ़ेंगे।
परशुराम
महर्षि परशुराम को क्रोधी और कड़वे वचन वाला ऋषि माना जाता है। रामायण का वह प्रसंग तो सबको याद होगा, जब परशुराम के शिव धनुष को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने सीता के स्वयंवर में तोड़ दिया था। इसके बाद जब महर्षि परशुराम जनक की सभा में पहुंचे तो उन्होंने कहा-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही||
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही||
यानी परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बाल ब्रह्मचारी और अतिक्रोधी स्वभाव का हूं। सारा संसार मुझे क्षत्रियकुल के नाशक के रूप में जानता है। मैंने कई बार भुजाओं की ताकत से इस धरती को क्षत्रिय राजाओं से मुक्त कराया है और ब्राह्मणों को दान में दिया है| लक्ष्मण को अपना फरसा दिखाकर महर्षि परशुराम कहते हैं कि इस फरसे से मैंने सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था। हे राजा के बालक तुम अपने माता-पिता के बारे में सोचो, मेरा फरसा गर्भ में पल रहे शिशुओं का नाश कर देता है। कहने का तात्पर्य यह कि महर्षि परशुराम की भाषा संयमित नहीं थी, फिर भी उनकी गिनती श्रेष्ठ ऋषियों में होती है। वह महाभारत काल में पितामह भीष्म और कर्ण को धनुर्विद्या सिखाते हैं।
दुर्वासा
महर्षि दुर्वासा। उनकी भाषा भी संयमित नहीं रहती थी। रामायण काल में जब महर्षि दुर्वासा अयोध्या में अचानक श्रीराम से मिलने के लिए पहुंचते हैं, तो लक्ष्मण उन्हें रोकते हैं। श्रीराम की उस समय यमराज से बातचीत चल रही थी और उन्होंने लक्ष्मण को किसी को आने से रोका था। लेकिन जब दुर्वासा लक्ष्मण को चेतावनी देते हैं कि अगर उन्हें तत्काल मिलने नहीं दिया गया तो पूरी अयोध्या नगरी को ही श्राप दे देंगे। इसके बाद लक्ष्मण को अंदर जाना पड़ा था और इसके बाद दंडस्वरूप लक्ष्मण को अयोध्या त्यागने के बाद जलसमाधि लेनी पड़ी थी। महाभारत काल में भी ऋषि दुर्वासा अपने साथ आए साधुओं को भोजन न कराने पर पांडवों को श्राप की चेतावनी देते हैं। द्रौपदी के अक्षयपात्र में अन्न का एक टुकड़ा बचा होने से पांडव महर्षि के कोपभाजन से बच जाते हैं। इसके बावजूद दुर्वासा को साधु-संन्यासियों में उच्च श्रेणी का माना जाता है।
मुनि तरुण सागर
जैन मुनि तरुण सागर की पहचान ही कड़वे प्रवचन वाले के रूप में थी। एक प्रवचन में उन्होंने कहा, ‘कोई आपको कुत्ता कहे तो भौंकें नहीं मुस्कुराएं। वह स्वयं शर्मिन्दा हो जाएगा, अन्यथा तुम सचमुच कुत्ता बन जाओगे। अपने कड़वे वचन के लिए मुनि तरुण सागर मशहूर थे। एक प्रवचन में उन्होंने कहा- मुझे आपके नोट नहीं खोट चाहिए। मैं आपकी गलत धारणाओं पर बुलडोजर चलाऊंगा। आज का आदमी बच्चों को कम और गलत धारणाओं को ज्यादा पालता है, इसलिए वह खुश नहीं है। इसलिए मुझे आपके नोट नहीं, आपके खोट चाहिए। अपने कड़वे प्रवचन से परिवार, समाज और राजनीति के बारे में तरुण सागर बहुत बड़ी बातें कह जाते थे। उनके प्रवचन ऐसे विषयों से जुड़े होते थे, जिन पर लोग अक्सर बात नहीं करते थे। मुनि तरुण सागर की भाषा भले ही कड़वी थी लेकिन उसके निहितार्थ होते थे। उन्हें और उनके कड़वे प्रवचनों को समाज में व्यापक स्तर पर मान्यता मिली।
अखिलेश ने अब क्या कहा
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने एक बार फिर इशारों में सीएम योगी पर हमला किया है। अखिलेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘भाषा से पहचानिए असली संत महंत। साधु वेष में घूमते जग में धूर्त अनंत।‘ इससे पहले 19 सितंबर को अखिलेश ने कहा, ‘अब कोई अपशब्दों का विश्व रिकॉर्ड बनाने में लगा है। इंसान की सोच ही शब्द बनकर निकलती है। सबको सन्मति दे।‘ अखिलेश ने सीएम योगी पर इसके जरिए निशाना साधा था। इससे पहले सीएम योगी ने मिल्कीपुर की एक सभा में कहा था, ‘सारे माफिया इनके चचाजान जैसे हैं। जैसे कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं हो सकती, वैसे ही बेटियों की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले सपा के दरिंदे ठीक नहीं हो सकते हैं।‘
योगी सिर्फ महंत नहीं मुख्यमंत्री भी हैं
योगी आदित्यनाथ ने कई बार कहा है कि उन्होंने समाज के लिए संन्यास लिया और फिर सियासत में उतरे तो उसी समाज कल्याण की भावना के साथ। वह गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर होने के साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री हैं। 24 करोड़ जनता की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं पर खरा उतरने की जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों है। ऐसे में अगर योगी, अखिलेश की पार्टी के नेताओं पर लगे संगीन आरोपों को गिनाते समय थोड़ी कड़वी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, तो क्या गलत है। समाजवादी पार्टी पर माफिया तत्वों को संरक्षण देने के आरोप कोई नई बात नहीं है। मुलायम सिंह के समय से ही डीपी यादव, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, रमाकांत यादव, रिजवान जहीर जैसे लोग सरकारी संरक्षण में फलते-फूलते रहे। इन आरोपों पर कभी अखिलेश यादव नहीं बोलते हैं। बाहुबली विजय मिश्रा को मुलायम सिंह एक बार अपने मंच से ही साथ लेकर हेलीकॉप्टर से उड़ गए थे, जबकि पुलिस के पास उनकी गिरफ्तारी का वॉरंट था।
‘समाजवाद का चोला ओढ़े घूम रहे जयचंद’
बीजेपी नेता नीरज सिंह ने अखिलेश को जवाब देते हुए कहा, ‘समाजवाद का चोला ओढ़े, घूम रहे जयचंद, संस्कार बोल रहे हैं, कौन है संत महंत।‘ अखिलेश के चिढ़ने की एक वजह और है। दरअसल मिल्कीपुर की सभा में सीएम योगी ने हालिया घटनाओं में आरोपी सपा के नेताओं का नाम गिनाया। योगी ने नाबालिग से गैंगरेप में भदरसा के मोईद खान, कन्नौज रेप में नवाब सिंह यादव और हरदोई में वकील हत्याकांड में सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष का जिक्र किया। बुलडोजर के दिल-दिमाग, स्टीयरिंग से शुरू हुई योगी और अखिलेश की जुबानी जंग माफिया-मठाधीश से होते हुए नए मोड़ पर पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव की घड़ी करीब आ रही है। ऐसे में योगी और अखिलेश की इस जंग में जुबानी तरकस से नए तीर देखने को तैयार रहिए।