उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर में डकैती के आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सियासी घमासान के बीच अखिलेश यादव एक नई व्याख्या लेकर आए हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और सपा मुखिया अखिलेश यादव कहते हैं कि मठाधीश और माफिया में अंतर नहीं होता है। सियासी जंग में किसी पर निशाना साधना और बात है लेकिन इस हद तक आप गिर जाएंगे, ऐसी उम्मीद नहीं थी। कभी जाति, कभी संविधान तो कभी आरक्षण के नाम पर जनता को बरगलाने की आपने पहले से ही दुकान खोल रखी है। मठाधीश और माफिया का फर्क जानने के लिए आपको चश्मे का नंबर नहीं पूरा चश्मा ही बदलना पड़ेगा। अखिलेश जी आपको यह अंतर समझाते हैं, उससे पहले आपका बयान क्या था, वो बताते हैं।
क्या है मठाधीश और माफिया वाला बयान
लखनऊ में सपा मुख्यालय में सुलतानपुर के मंगेश यादव एनकाउंटर का जिक्र करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, ‘मठाधीश और माफिया में ज्यादा फर्क नहीं होता है। भाजपा चुनाव हार गई है। मुख्यमंत्रीजी गुस्से में घूम रहे हैं। भाजपा सरकार ने उत्तर प्रदेश को फर्जी एनकाउंटर की राजधानी बना दिया है। नकारात्मक दिल और दिमाग वाले विनाश ही कर सकते हैं, विकास नहीं कर सकते हैं। जो हार्टलेस हैं, उनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। भाजपा सरकार में जमीनों की लूट और चरम पर भ्रष्टाचार के साथ झूठे एनकाउंटर के नाम पर हत्याएं हो रही हैं।‘
माफिया मुख्तार की ‘मजार’ पर फातिहा पढ़ने आप गए
अखिलेश यादव भले ही माफिया और मठाधीश का तुलनात्मक अध्ययन करने में जुटे हैं। लेकिन हम उनको याद दिलाना चाहते हैं एक मौका, जब आप एक ‘सज्जन’ मुख्तार अंसारी के घर फातिहा पढ़ने गए थे। ज्यादा समय नहीं बीता है। पांच महीने पहले की ही तो बात है। मुख्तार अंसारी तो कोई माफिया था नहीं। अखिलेश जी शायद आपने मुख्तार अंसारी की हिस्ट्रीशीट पढ़ी नहीं। वोट बैंक भी तो मजबूत करना था तो चल दिए माफिया की ‘मजार’ पर फातिहा पढ़ने। गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने की हिस्ट्रीशीट नंबर-16 बी में मुख्तार की ‘समाजसेवा’ का पूरा कच्चा चिट्ठा है। आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या के 18 केस और 307 यानी हत्या के प्रयास के 10 मुकदमे। टाडा, गैंगस्टर, एनएसए, आर्म्स एक्ट और मकोका समेत कुल मिलाकर 61 केस। ये सब अखिलेशजी के ‘समाजसेवक’ को मिली उपाधियां हैं। आप अंसारी परिवार के पुश्तैनी घर गाजीपुर के फाटक गए, खजूर और सिवइयां भी खाईं। उसके बाद माफिया को तो आपने जननायक बना दिया। अखिलेश जी ने कहा, ‘मुख्तार अंसारी की जो छवि पेश की गई वो असली नहीं है। क्या हम यह नहीं देख सकते कि उनके साथ भेदभाव हुआ है। इतनी बार वो विधायक चुने गए। जो व्यक्ति इतने सालों तक जेल में कैद रहा हो, फिर भी जनता जिता रही है। इसका मतलब परिवार और व्यक्ति ने जनता का दुखदर्द बांटा है।‘
यानी अखिलेश यादव की नजर में मुख्तार अंसारी माफिया नहीं जननेता हैं। अखिल भारतीय संत समिति के महंत बालकदास ने अखिलेश के बयान पर कहा, ‘अखिलेश यादव को माफियाओं का ज्यादा अनुभव है। मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे लोग उनके मठाधीश थे। हम बस यही कहना चाहते हैं विनाशकाले विपरीत बुद्धि। 2015 में संतों के ऊपर लाठियां भांजी थीं, उसके बाद उनकी पार्टी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी। अब इनका दोबारा विनाश होने वाला है।‘
माफिया कौन होता है?
अखिलेश यादव ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए मठाधीश और माफिया को एक जैसा बता दिया। क्या अखिलेश यादव बताएंगे कि उनके शासनकाल में हर जिले का मालिक एक माफिया क्यों हुआ करता था? अतीक अहमद, रिजवान जहीर, इरफान सोलंकी, रमाकांत यादव। क्या ये सब मठाधीश थे? इन सबको किसने संरक्षण दिया? एक सवाल उठता है कि माफिया कौन होता है? अखिलेश जी माफिया वो होता है जो समाज में अराजकता फैलाता है। समाज को प्रताड़ित करता है और समाज को पीड़ा देता है। मठाधीश समाज में संस्कार के प्रसार में जुटे रहते हैं। मठों के माध्यम से औऱ मंदिरों के माध्यम से। समाज को शिक्षित करने के साथ संस्कारवान भी मठाधीश बनाते हैं। फिर आप कैसे मठाधीश की तुलना माफिया से कर रहे हैं?
मठाधीश संस्कृति का संरक्षक, माफिया समाज का विध्वंसक
एक संत की ही भाषा में बता रहा हूं। अखिलेश जी आपको लुटेरों और सज्जनों में अंतर नहीं पता है। माफिया देश का विध्वंस करने में लगा रहता है। माफिया असामाजिक कार्यों में लिप्त रहता है। मठाधीश इस देश की संस्कृति बचाने और सार्वभौमिक जनकल्याण में लगा रहता है। मठाधीश का पहला ध्येय होता है- सर्वे भवन्तु सुखिनः अर्थात सभी लोग सुखी हों। हजारों गरीब, अनाथ, असहाय और पीड़ित लोग जहां पर भोजन करते हैं और सहायता पाते हैं, वित्तविहीन विद्यार्थी जहां से शिक्षा पाते हैं, वह मठाधीश के नाम से भारतीय संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करता है। अखिलेश जी लेकिन आप इस परिभाषा को कहां समझ पाएंगे?