भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC)) के सामने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। ASI के अनुसार, देश के 120 से अधिक राष्ट्रीय स्मारकों और धरोहरों पर वक्फ बोर्ड ने कब्जे का दावा किया है। यह मामला न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर भी बड़ी चुनौती पेश कर रहा है
वक्फ बोर्ड का दावा
वक्फ बोर्ड, जो मुस्लिम धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों की देखरेख करता है, ने देश के विभिन्न हिस्सों में स्थित कई महत्वपूर्ण स्मारकों और धरोहरों पर अपना दावा पेश किया है। इनमें से कई संपत्तियां ऐतिहासिक महत्व की हैं और भारतीय संस्कृति का अटूट हिस्सा मानी जाती हैं। वक्फ बोर्ड का कहना है कि ये संपत्तियां ऐतिहासिक रूप से मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं और इस आधार पर उनके अधिकार में होनी चाहिए
इस विवाद का केंद्र बन चुके स्मारकों में कई प्रसिद्ध धरोहरें शामिल हैं। इनमें से कुछ स्मारक एतिहासिक महत्व के हैं और भारतीय इतिहास की अनमोल धरोहर माने जाते हैं। इनमें कई पुरानी मस्जिदें, दरगाहें, मकबरें और अन्य धार्मिक स्थल शामिल हैं, जिन्हें ASI द्वारा संरक्षित किया गया है। वक्फ बोर्ड का दावा है कि ये धरोहरें पहले से ही मुस्लिम समुदाय के अधीन थीं, लेकिन अब ASI ने इन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया है।
ASI का क्या है पक्ष
देश के ऐतिहासिक स्मारकों और धरोहरों की देखरेख करने वाली ASI ने वक्फ बोर्ड के इन दावों को चुनौती दी है। ASI का कहना है कि ये सभी स्मारक और धरोहरें राष्ट्रीय महत्व की हैं और इन्हें भारतीय कानूनों के तहत संरक्षित किया गया है। ASI ने यह भी कहा है कि इनमें से कई स्मारक ऐसे हैं, जो किसी भी धार्मिक दावे से पहले से ही राष्ट्रीय धरोहर के रूप में माने जाते हैं।
संसदीय समिति की भूमिका
संसदीय समिति के सामने इस मामले को उठाया गया और इस पर गहन विचार-विमर्श किया गया। समिति ने दोनों पक्षों के तर्क सुने और इस विवाद के समाधान के लिए एक निष्पक्ष जांच की जरूरत पर जोर दिया। समिति का मानना है कि इस तरह के विवाद न केवल सांस्कृतिक धरोहरों की देखरेख और उनकी सुरक्षा में बाधा पैदा करते हैं, बल्कि देश की सामाजिक समरसता को भी प्रभावित करते हैं।
इस विवाद में कानूनी जटिलताएं भी बढ़ती जा रही हैं। वक्फ बोर्ड का दावा है कि उनके पास इन संपत्तियों के स्वामित्व से संबंधित दस्तावेज मौजूद हैं, जबकि ASI का कहना है कि इन स्मारकों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है और इन्हें संरक्षित करने की जिम्मेदारी उनके पास है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दखल जरूरी हो जाता है।
संसदीय समिति ने इस विवाद के समाधान के लिए दोनों पक्षों से बातचीत जारी रखने की सलाह दी है। समिति का मानना है कि इस मामले का समाधान आपसी सहमति से ही निकाला जा सकता है। वक्फ बोर्ड और ASI के बीच संवाद और सहयोग की आवश्यकता है, ताकि देश की सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखा जा सके और किसी भी तरह के विवाद से बचा जा सके।
वक्फ बोर्ड और ASI के बीच यह संघर्ष एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहां से आगे का रास्ता देश की सांस्कृतिक धरोहरों की दिशा को निर्धारित कर सकता है। इस मामले में सरकार और न्यायपालिका का भी महत्वपूर्ण योगदान होगा, ताकि इस विवाद का समाधान निकाला जा सके और देश की धरोहरों को सुरक्षित रखा जा सके।