हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी कॉन्ग्रेस पार्टी दो फाड़ हो गई है। मामला एक ऐसे फैसले से जुड़ा है, जिसे राज्य सरकार ने वापस ले लिया है। घटनाक्रम के केंद्र में दिवंगत वीरभद्र सिंह का परिवार है। वो वीरभद्र सिंह, जो 21 वर्षों तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। वही वीरभद्र सिंह, जिनके कारण कॉन्ग्रेस ने आधा दर्जन बार सत्ता भोगी, आज उनके ही परिवार को फटकार लगाई जा रही है। वो भी तब जब दिवंगत नेता की पत्नी कॉन्ग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष हैं और खुद विक्रमादित्य सिंह PWD व शहरी विकास मंत्री हैं। आइए, समझते हैं की पूरा माजरा क्या है।
असल में हिमाचल प्रदेश की सरकार एक आदेश लेकर आई थी, जिसमें कहा गया कि सभी दुकानों और ठेलों के सामने बोर्ड लगा कर इसके असली मालिकों का नाम लिखा जाए। ये आदेश उस जन-आंदोलन के बाद आया, जिसमें अवैध अतिक्रमण से लेकर राज्य की संस्कृति को दूषित करने के लिए आए बाहरी तत्वों के खिलाफ भी आवाज़ उठी। मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने जैसे ही इस फैसले की घोषणा की, सोशल मीडिया पर तमाम ‘सेक्युलर’ पत्रकार से लेकर कॉन्ग्रेस समर्थक इकोसिस्टम ने हंगामा शुरू कर दिया। वो कहने लगे कि हिमाचल प्रदेश की सरकार भाजपा के एजेंडे पर काम कर रही है।
पहाड़ी राज्य की राजनीति में असली हलचल तब शुरू हुई, जब विक्रमादित्य सिंह और उनकी माँ प्रतिभा सिंह को कॉन्ग्रेस आलाकमान ने दिल्ली तलब कर लिया। पार्टी महासचिव KC वेणुगोपाल से उनकी मुलाकात हुई। प्रतिभा सिंह ने इस मुलाकात के बाद कहा कि पार्टी का आदेश मानने के साथ-साथ उन्हें राज्य की बेहतरी को लेकर भी काम करना है। प्रतिभा सिंह ने कहा कि कुछ योजनाओं को लेकर राज्य सरकार को केंद्र और प्रधानमंत्री के साथ समन्वय स्थापित कर के कार्य करना होता है। उन्होंने कहा कि हम केवल राज्य हित में काम करते हैं। प्रतिभा सिंह के शब्दों से स्पष्ट है कि उनका इशारा आम लोगों के आंदोलन की तरफ था, उनका संकेत ये था कि आम लोगों के कहने पर राज्य हित में ये फैसला लिया गया था।
मुख्यमंत्री सुखिवंदर सिंह सुक्खू की सरकार पहले ही खुद को अपने ही मंत्री के बयान से अलग कर चुकी है। अब ज़रा विक्रमादित्य सिंह के शब्दों को पढ़ने की कोशिश कीजिए। कॉन्ग्रेस आलाकमान के साथ बैठक के बाद उनके बयान में 2 महत्वपूर्ण बातें हैं – “मैंने शीर्ष नेतृत्व के सामने हिमाचल प्रदेश की बात पूरी मजबूती के साथ रखी” और “राज्य की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।” हिमाचल प्रदेश की बात से उनका आशय आम लोगों की माँग से ही था। जिस आंदोलन के कारण शिमला और मंडी में अवैध मजहबी संरचनाओं को हटाने के लिए प्रशासन तैयार हुआ, उसी आंदोलन के पक्ष को विक्रमादित्य सिंह ने कॉन्ग्रेस पार्टी के हाईकमान के सामने रखा।
साफ़ है कि विक्रमादित्य सिंह झुकने के लिए तैयार नहीं है, उन्हें भी पता है कि इस राजनीतिक माहौल में जनता उनमें उनके पिता को देख रही है। वीरभद्र सिंह कॉन्ग्रेस के ऐसे क्षत्रप थे जिनके सामने आलाकमान की भी नहीं चलती थी। बुशहर रियासत के राजा थे, तो उनमें वो रुआब भी दिखता था। विक्रमादित्य सिंह केवल उनके बेटे ही नहीं, बल्कि राजनीतिक उत्तराधिकारी भी हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या कॉन्ग्रेस हिमाचल प्रदेश की कीमत पर हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में अपने मुस्लिम वोटों को गोलबंद करना चाहती है।
इधर विक्रमादित्य सिंह को पता है कि हिमाचल प्रदेश में गोलबंद हुए हिन्दुओं की भावनाओं के अनुरूप उन्हें काम करना होगा। उन्होंने राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में भी हिस्सा लिया था। उनके ही गुट के माने जाने वाले एक अन्य मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में ही संजोली में स्थित मस्जिद के अवैध निर्माण पर बोलते हुए घुसपैठियों की समस्या उठाई थी। विक्रमादित्य सिंह ने वक्फ बोर्ड में भी सुधार की आवश्यकता जताई थी। कॉन्ग्रेस पार्टी का इन सब पर जुदा रुख रहा है। विक्रमादित्य सिंह एक बार बगावत कर चुके हैं, तब कॉन्ग्रेस ने उन्हें किसी तरह मना लिया था।
ठाकुर साहब को हिमाचल में तुष्टिकरण करवाने के लिए दिल्ली तलब किया गया पर वो कहाँ दबने वाले है।
बेशक कांग्रेस से है पर हम अवैध निर्माण और अवैध घुसपैठियों पर इनके बयान और स्टैंड का पूर्ण समर्थन करते है।
पूरे देश में अवैध के ख़िलाफ़ यलगार हो 🔥🔥 pic.twitter.com/7yMntjcbDL
— Baliyan (@Baliyan_x) September 28, 2024
वैसे भी हिमाचल प्रदेश की हालत पार्टी ने क्या कर दी है, ये छिपा नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दी गई, केवल दिसंबर 2023 तक के आँकड़ों की बात करें तो राज्य 86,500 करोड़ रुपए से भी अधिक कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। प्रदेश के ‘सेक्रेटेरिएट एम्प्लॉयीज एसोसिएशन’ ने बताया था कि सितंबर महीने में कई सरकारी कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिला। यानी, राज्य की वित्तीय स्थिति भी ख़राब है और संस्कृति को बचाने में भी कॉन्ग्रेस सरकार नाकाम नज़र आ रही है। ऐसी स्थिति में विक्रमादित्य सिंह का रुख उन्हें राज्य की राजनीति में एक नई जगह दे सकता है।