मंगेश यादव मुठभेड़: जाति न पूछो अपराधी की… एनकाउंटर के आंकड़े क्या कहते हैं?

यूपी के सुल्तानपुर में डकैती के एक आरोपी के मुठभेड़ पर सियासत गरमाई है। पांच सितंबर को पुलिस मुठभेड़ में आरोपी मंगेश यादव ढेर हो गया। वहीं, अखिलेश यादव कह रहे हैं कि जाति देखकर गोली मारी गई। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जब पुलिस मुठभेड़ में कोई डकैत मारा जाता है, तो समाजवादी पार्टी को बुरा लगता है।

अखिलेश यादव और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

2017 के पहले पुलिस भागती थी और गुंडे उन्हें दौड़ाते थे। लेकिन अब यह क्रम उल्टा हो गया है। माफिया भाग रहा है और पुलिस उसे दौड़ा रही है। अगर उसने कोई दुस्साहस किया तो फिर वहीं राम नाम सत्य है, यह भी तय हो जाता है। सुलतानपुर में पुलिस एनकाउंटर के दौरान ढेर मंगेश यादव पर चल रही सियासत के बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव को यह जवाब दिया। समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने कहा था कि यूपी में जाति देखकर एनकाउंटर हो रहा है। पांच सितंबर को अखिलेश ने एक्स पर पोस्ट में लिखा- लगता है सुल्तानपुर की डकैती में शामिल लोगों से सत्ता पक्ष का गहरा संपर्क था, इसीलिए तो नक़ली एनकाउंटर से पहले मुख्य आरोपी से संपर्क साधकर सरेंडर करा दिया गया और अन्य सपक्षीय लोगों के पैरों पर सिर्फ़ दिखावटी गोली मारी गई और ‘जात’ देखकर जान ली गई।

2017 से अब तक 207 बदमाश ढेर, 67 मुस्लिम

एक कहावत है जाति न पूछो साधु की, उसी तरह अपराधी की भी कोई जाति नहीं होती। अब अखिलेश यादव को कौन समझाए कि जाति नहीं कर्म महत्वपूर्ण है। फिर भी अगर अखिलेश यादव को नहीं समझ आ रहा, तो उनकी जानकारी के लिए यूपी में एनकाउंटर के दौरान मारे गए अपराधियों के पहले कुछ आंकड़े सामने रखते हैं, जो एक मीडिया रिपोर्ट से निकलकर आए हैं। 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने यूपी की सत्ता संभाली थी। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक योगी सरकार के अब तक के साढ़े सात साल के कार्यकाल में 12,525 एनकाउंटर हुए। इनमें 207 बदमाश मुठभेड़ के दौरान मारे गए, वहीं पुलिस के 17 जवानों को भी शहादत देनी पड़ी। इन पुलिस मुठभेड़ों के दौरान साढ़े छह हजार से ज्यादा बदमाश घायल हुए। अखिलेश यादव बार-बार आरोप लगाते हैं कि जाति और धर्म देखकर यूपी में एनकाउंटर किया जा रहा है। जाति से पहले धर्म की ही बात कर लेते हैं। दैनिक भास्कर के मुताबिक पुलिस मुठभेड़ों की जो चेकलिस्ट है, उसके आधार पर एनकाउंटर में 67 मुस्लिम और 140 हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले बदमाश मारे गए हैं। यानी धर्म देखकर मुठभेड़ का दावा पहली नजर में ही खारिज होता है।

मारे गए बदमाशों में यादव से ज्यादा ब्राह्मण-ठाकुर: रिपोर्ट 

अब आते हैं जाति विशेष के एनकाउंटर के दावे पर। मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए अखिलेश ने कहा कि जाति देखकर गोली मारी गई। दो दिन पहले उठाया और एनकाउंटर के नाम पर बंदूक सटाकर गोली मारकर हत्या की गई। जाति के आधार पर मुठभेड़ की बात करने वाले अखिलेश जी अपनी जानकारी दुरुस्त कर लीजिए। 207 में से जिन 140 बदमाशों और गैंगस्टर को ढेर किया गया है, उसमें यादव से ज्यादा ब्राह्मण और राजपूत जाति से आते हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के बाद से अब तक 20 ब्राह्मण और 18 ठाकुर अपराधियों को मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। यादव तीसरे पर आते हैं, जिनकी संख्या 16 है। वहीं जाट-गुर्जर 17, दलित 17, सिख 2 और अन्य ओबीसी का आंकड़ा 8 पर ठहरता है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा मारे गए 42 ऐसे बदमाश हैं, जिनका पुलिस रिकॉर्ड में सरनेम नहीं दिया गया है। आंकड़ों पर गौर करें तो साफ है कि अपराधी की जाति देखकर गोली नहीं मारी गई। योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव से पूछा भी है कि सुलतानपुर में ज्वैलर्स की दुकान लूटने वाले डकैत अगर वहां बैठे ग्राहकों की हत्या करके भाग गए होते तो क्या उनकी जान वापस आ सकती थी? दुकान पर बैठा ग्राहक किसी जाति का हो सकता था- यादव भी और दलित भी।

विकास दुबे का भी अखिलेश बचाव कर रहे थे

उत्तर प्रदेश में तीन मुठभेड़ पर मामला काफी गरमाया था। इसमें पहला था- विकास दुबे एनकाउंटर। कानपुर देहात के बिकरू गांव में 2 जुलाई 2020 की रात दबिश देने गई पुलिस टीम पर विकास दुबे और उसके गुर्गों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। डीएसपी और एसओ समेत 8 पुलिसकर्मियों की विकास और उसके गुर्गों ने हत्या की थी। विकास दुबे ने उज्जैन के महाकाल मंदिर में सरेंडर किया था। इसके बाद यूपी लाते समय कानपुर से थोड़ा पहले वह पुलिस वाहन पलट गया था, जिसमें विकास दुबे बैठा था। भागने की कोशिश में विकास दुबे क्रॉस फायरिंग में मारा गया था। इस मुठभेड़ के तरीके पर विपक्ष ने हंगामा खड़ा किया। हालांकि रिटायर्ड जस्टिस की जांच में पुलिस कार्रवाई को सही पाया गया। कोई गैंगस्टर अगर डीएसपी रैंक के अधिकारी समेत 8-8 पुलिसवालों को मार डाले, तो उसका बचाव करने के पीछे क्या सोच है, यह समझ से परे है। अखिलेश यादव ने तब भी यही किया था। उस समय अखिलेश ने ट्वीट में कहा था कि दरअसल ये कार नहीं पलटी है, राज खुलने से सरकार पलटने से बचाई गई।

असद एनकाउंटर पर ‘भाईचारे’ का तर्क दिया था

दूसरा एनकाउंटर जिस पर काफी बवाल मचा, वह था माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद का। उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी अतीक के बेटे असद का अप्रैल 2013 में झांसी में एनकाउंटर हुआ था। तब अखिलेश ने इसे धर्म से जोड़ा था। अखिलेश ने ट्वीट में उस वक्त कहा था कि झूठे एनकाउंटर कर भाजपा सच्चे मुद्दों से ध्यान भटकाना चाह रही है। भाजपा भाईचारे के खिलाफ है।

2017 से पहले हर जिले में माफिया था अखिलेश जी

अब सुलतानपुर की ज्वैलरी शॉप में डकैती के आरोपी मंगेश यादव के मुठभेड़ पर अखिलेश यादव सवाल उठा रहे हैं। पांच सितंबर को मंगेश यादव का एनकाउंटर हुआ था। अखिलेश यादव ने इस मुठभेड़ को भी जाति के चश्मे से देखा। यही नहीं सपा का प्रतिनिधिमंडल भी मंगेश के घर भेजने में देरी नहीं की। वैसे अखिलेश यादव को याद दिलाते हैं 2005 का डकैत निर्भय गुर्जर एनकाउंटर। उस समय मुलायम सिंह यादव यूपी के सीएम थे। टीवी पर एक इंटरव्यू में निर्भय गुर्जर ने शिवपाल यादव को बड़ा भाई कह दिया। इसके चंद दिनों में निर्भय गुर्जर का एनकाउंटर हो गया, जबकि उसके पहले चंबल के बीहड़ों से निर्भय का अपहरण का पूरा कारोबार चलता था। अखिलेश जी क्या यह सच नहीं है कि 2017 से पहले उत्तर प्रदेश के तकरीबन हर जिले में एक माफिया का दबदबा हुआ करता था। प्रयागराज में अतीक अहमद, मऊ-गाजीपुर में मुख्तार अंसारी, कानपुर में इरफान सोलंकी, बलरामपुर में रिजवान जहीर और ऐसे ही न जाने कितने अपराधी चेहरे। आज यूपी में माफिया दम तोड़ रहा है। वह खुद ही कहता है कि हम तो मिट्टी में मिल गए। प्रदेश की कानून-व्यवस्था पटरी पर है, तो आपको दिक्कत क्यों है? आप जाति की जहरीली सियासत कब तक करते रहेंगे? क्या मंगेश यादव मुठभेड़ के जरिए आप 2027 की बिसात बिछाने की तैयारी कर रहे हैं?

Exit mobile version