हिज्बुल्लाह आतंकी नसरल्लाह महबूबा के लिए ‘शहीद’, रैलियां रद्द, इस सोच में ही खोट है

हिज्बुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह की इजरायली हमले में मौत

इजरायली डिफेंस फोर्स ने आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह को मार गिराया है। अब दक्षिणी लेबनान में ग्राउंड ऑपरेशन से हिज्बुल्लाह की कमर तोड़ने की तैयारी है। वहीं बेरुत से साढ़े तीन हजार किलोमीटर दूर श्रीनगर में किसी को गहरी चोट लगी है। नाम है महबूबा मुफ्ती। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष। लेकिन नसरल्लाह के मारे जाने का गम कुछ ऐसा है कि अपनी सभी रैलियां और चुनावी सभाएं रद्द करने का ऐलान कर डाला। महबूबा मुफ्ती कोई विदेश नीति की एक्सपर्ट तो हैं नहीं। फिर नसरल्लाह के मारे जाने पर उनके ‘फातेहा’ पढ़ने को किस तरह से देखा जाए?

यह वही सोच जिसको तिरंगा उठाने से परहेज

एक अंतरराष्ट्रीय आतंकी को महबूबा शहीद बताने की जुर्रत क्यों करती हैं? हम आपको बताते हैं। यह वही सोच है, जो सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वालों को भटके हुए लोग बताती है। यह वही सोच है, जो कहती है कि 370 हटेगा तो जम्मू-कश्मीर का भारत से रिश्ता खत्म हो जाएगा। यह वही सोच है, जो दो निशान और दो विधान की वकालत करती है। यह वही सोच है, जो  तिरंगे से ज्यादा एक रंग के झंडे में रंगी दिखती है। यह वही सोच है, जो तिरंगा थामने से परहेज करती है और अलग झंडे की मांग करती है।

अंतरराष्ट्रीय आतंकी से क्यों हमदर्दी?

पहले आपको बताते हैं महबूबा मुफ्ती ने नसरल्लाह की मौत पर क्या कहा है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम मुफ्ती ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘लेबनान और गाजा के शहीदों विशेष रूप से हसन नसरल्लाह के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए मैं अपना कल का प्रचार अभियान रद्द कर रही हूं। हम दुख और अनुकरणीय विरोध की घड़ी में फिलिस्तीन और लेबनान के लोगों के साथ खड़े हैं।‘ उनके इस पोस्ट की भाषा गहरी आपत्ति वाली है। महबूबा मुफ्ती को हजारों बेगुनाहों की मौत के दोषी एक आतंकी के ढेर होने पर एकजुटता दिखाने की क्या जरूरत है?

महबूबा के कदम ने जम्हूरियत को कमजोर किया

जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में जम्हूरियत यानी लोकतंत्र को मजबूत करने की बजाए प्रचार, रैली रद्द करने की क्या आवश्यकता थी? महबूबा मुफ्ती ने रैलियां रद्द करने के साथ ही पोस्ट में अनुकरणीय विरोध की बात की है, उससे साबित होता है कि उनकी सोच में कितना खोट है। वह उस आतंकी संगठन के प्रमुख की मौत पर प्रतिरोध की बात कर रही हैं, जो हजारों लोगों की मौत का जिम्मेदार था। महबूबा मुफ्ती 370 हटाने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद उसे सजा-ए-मौत बताती हैं। यह वही सोच है जो कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम और पलायन पर एक शब्द बोलने को तैयार नहीं होती है।

नसरल्लाह के मारे जाने की हिज्बुल्लाह ने की पुष्टि     

नसरल्लाह के मारे जाने को आईडीएफ के लिए बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। 1992 में नसरल्लाह हिज्बुल्लाह का चीफ बना था। बेरुत में हिज्बुल्लाह के हेडक्वॉर्टर पर आईडीएफ ने हवाई हमले किए थे। बताया जा रहा है कि 80 टन विस्फोटक का इस्तेमाल उस बिल्डिंग को नेस्तनाबूद करने में हुआ, जिसमें नसरल्लाह मौजूद था। आईडीएफ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में कहा, ‘हसन नसरल्लाह अब दुनिया को आतंकित नहीं कर पाएगा।‘ इजरायल के विदेश मंत्रालय ने एक्स पोस्ट में कहा, ‘आईडीएफ ने हिज्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह और उसके संगठन के एक संस्थापक सदस्य को कल मार गिराने की पुष्टि की है। हिज्बुल्लाह के दक्षिणी फ्रंट के कमांडर अली कर्की और दूसरे कई कमांडर मारे जा चुके हैं। नसरल्लाह अब दुनिया को आतंकित नहीं कर पाएगा।‘

हिज्बुल्लाह की तरफ से भी नसरल्लाह के मारे जाने की पुष्टि की गई है। बयान में कहा गया, ‘बेरुत के दक्षिणी उपनगर में एक विश्वासघाती जायनिस्ट (यहूदी) हमले में हसन नसरल्लाह की मौत हो गई है। प्रतिरोध के अगुवा और धर्म के सेवक अपने ईश्वर के पास चले गए। हम लेबनान, गाजा और फिलिस्तीन के लोगों की रक्षा के लिए लगातार समर्थन करते रहेंगे।‘

ईरान में 5 दिन का मातम  

हमास ने नसरल्लाह की मौत पर कहा, ‘हम हिज्बुल्लाह के भाइयों और लेबनान में इस्लामिक प्रतिरोध के साथ खड़े हैं।‘ इस हमले में ईरान की रिवॉल्यूशनरी कुद्स फोर्स के सीनियर कमांडर अब्बास निलफोरुशान की भी मौत हुई है। निलफोरुशान कुद्स फोर्स के डिप्टी ऑपरेशन कमांडर के रूप में लेबनान में तैनात थे। उधर ईरान के सुप्रीम लीडर अयतुल्लाह खामेनेई ने नसरल्लाह की मौत पर ईरान में पांच दिन के शोक का ऐलान किया है। खामेनेई ने कहा है कि हिज्बुल्लाह चीफ के खून का बदला लिया जाएगा। इराक के प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी तीन दिन के शोक का ऐलान किया है। इराक की तरफ से कहा गया है कि नसरल्लाह को मारकर इजरायल ने सारी हदें पार कर दी हैं।

कौन था हसन नसरल्लाह     

नसरल्लाह लेबनान में हिज्बुल्लाह ग्रुप का चीफ था। इस ग्रुप को लेबनान के अहम राजनीतिक दलों में माना जाता है। हिज्बुल्लाह की अपनी सशस्त्र विंग है। अमेरिकी की ओर से आतंकी संगठनों की लिस्ट में हिज्बुल्लाह था। हसन नसरल्लाह के ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई से नजदीकी संबंध थे। हिज्बुल्लाह के उद्देश्यों में से एक इजरायल की बर्बादी भी है। उसके पास हजारों प्रशिक्षित लड़ाकों के साथ मिसाइल और हथियारों का जखीरा है, जो इजरायल में मार कर सकता है। नसरल्लाह बेरुत के पूर्वी इलाके में एक गरीब मोहल्ले में  एक सब्जीवाले के घर पैदा हुआ था। लेबनान में गृहयुद्ध शुरू होने के वक्त नसरल्लाह की उम्र पांच साल थी। ईसाई और सुन्नी मिलिशिया समूहों में हुए इस विनाशकारी युद्ध की वजह से नसरल्लाह के पिता ने बेरुत छोड़कर दक्षिणी लेबनान के अपने पैतृक गांव का रुख किया। 15 साल में नसरल्लाह लेबनानी शिया राजनीतिक सैनिक समूह अमल मूवमेंट का सदस्य बन गया। इससे एक ईरानी मूसा सदर ने शुरू किया था। 16 साल में नसरल्लाह इराक के नजफ शहर चला गया। लेकिन नजफ में दो साल बीतने के बाद सद्दाम हुसैन के फैसले की वजह से उसे इराक छोड़ना पड़ा। सद्दाम ने लेबनानी शिया छात्रों को इराकी मदरसों से निकालने का आदेश दिया था। नसरल्लाह की लेबनान वापसी के बाद ईरान में क्रांति आई और रुहुल्लाह खुमैनी सत्ता पर काबिज हो गए। नसरल्लाह ने ईरान के उस समय के नेताओं से मुलाकात की। इसके बाद खुमैनी ने उनको लेबनान में अपना प्रतिनिधि बना दिया। 22 साल की उम्र में नसरल्लाह हिज्बुल्लाह में शामिल हुआ। 1992 में इस ग्रुप का नेतृत्व जब हाथ में आया, तो उसकी उम्र 32 साल थी। 2000 में इजरायल ने जब लेबनान का दक्षिणी क्षेत्र छोड़ा तो इसका क्रेडिट नसरल्लाह को मिला। 2005 में हिज्बुल्लाह के लड़ाकों ने इजरायल में दाखिल होकर एक सैनिक की हत्या कर दी थी। दो सैनिकों को भी बंदी बनाया। इसके बाद इजरायल ने लेबनान पर हमला बोल दिया। एक महीने से ज्यादा चली इस जंग में 1200 लेबनानी मारे गए। लेकिन इससे नसरल्लाह का लेबनान में और उभार हुआ। उसे अरब देशों में इजरायल के खिलाफ लड़ने वाले आखिरी व्यक्ति के रूप में प्रचारित किया गया।

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