दलालों और ‘दामादों’ के हवाले… जिस लैंड डील पर मोदी ने वाड्रा को घेरा, उसकी कहानी पढ़िए

रॉबर्ट वाड्रा पर लैंड डील के जरिए डीएलएफ कंपनी को फायदा पहुंचाने का आरोप है। आईएएस अशोक खेमका ने आरोप लगाया था कि डील में वाड्रा ने बिचौलिए की भूमिका निभाई।

पीएम मोदी ने दामाद के जरिए रॉबर्ट वाड्रा पर साधा निशाना

सोनीपत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के सोनीपत में एक जनसभा को संबोधित किया। पीएम मोदी ने इस दौरान कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए इशारों में रॉबर्ट वाड्रा का जिक्र किया। पीएम ने कहा कि कांग्रेस ने हरियाणा को लूटकर खा लिया। इस दौरान सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का नाम न लेते हुए पीएम मोदी ने निशाना साधा। पीएम ने कहा कि कांग्रेस ने हरियाणा को दलालों और दामादों के हवाले कर दिया था। हरियाणा में रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदे का मामला अक्सर सुर्खियों में रहा है। इस मामले की जांच के लिए धींगरा आयोग भी बनाया गया था।

दलालों और दामादों से कमल ही बचाएगा: मोदी

सोनीपत में पीएम मोदी ने कहा, ‘कांग्रेस का शाही परिवार देश का सबसे भ्रष्ट परिवार है। दस साल पहले जब यहां कांग्रेस की सरकार थी, तब क्या होता था। आज नए वोटर हैं, 18 साल 20 साल के। उन्हें तो पता तक नहीं होगा कि दस साल पहले हरियाणा को कैसे लूटा गया था। तब हरियाणा में किसानों की जमीनों को जमकर लूटा गया था। कांग्रेस ने हरियाणा को दलालों और दामादों के हवाले कर दिया था। दलालों और दामादों से बचना है तो कमल ही बचाएगा। किस-किस कांग्रेस नेता पर आरोप लगे हैं ये आप अच्छे से जानते हैं। हरियाणा में एक भी नौकरी ऐसी नहीं थी, जिसमें खर्ची और पर्ची न चलती हो। सरकारी ठेकों में जमकर भ्रष्टाचार होता था। हरियाणा को लूटकर खाने वाली ऐसी करप्ट (भ्रष्ट) कांग्रेस को हरियाणा की सरकार से मीलों-मीलों दूर रखना है, तब जाके हरियाणा बचेगा।‘

वाड्रा लैंड डील क्या है?

पीएम मोदी ने दलालों और दामादों का जो तंज कसा, वह कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा पर निशाना है। हरियाणा में लैंड डील को लेकर वाड्रा विवादों में रहे हैं। यह मामला गुरुग्राम की शिकोहपुर तहसील में खसरा नंबर 730 की पांच बीघा 13 बिसवा जमीन से जुड़ा है। आरोप है कि 2008 में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से यह जमीन फर्जी दस्तावेजों के जरिए खरीदी। लैंड डील यानी जमीन के सौदे को साढ़े सात करोड़ रुपये का दिखाया गया। जमीन की रजिस्ट्री में कॉरपोरेशन बैंक के चेक से पेमेंट दिखाई गई। आरोप है कि इस जमीन का लैंड यूज बदलवाकर कॉलोनी बनाने का लाइसेंस लिया गया। 2008 में ही इस जमीन को डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया गया।

वाड्रा ने 50 करोड़ की दलाली की: खेमका

आईएएस अशोक खेमका ने बतौर चकबंदी महानिदेशक रहते हुए 21 मई 2013 को रिपोर्ट सौंपी। खेमका की रिपोर्ट के मुताबिक जमीन खरीदने के लिए वाड्रा की कंपनी की ओर से ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को कोई भुगतान नहीं हुआ था। खेमका की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि रॉबर्ट वाड्रा ने इस लैंड डील में बिचौलिए की भूमिका अदा की। खेमका की रिपोर्ट के मुताबिक वाड्रा ने 50 करोड़ रुपये लेकर डीएलएफ को सस्ते में लाइसेंसशुदा जमीन दिलवाई। खेमका के वकील ने इस पूरी लैंड डील को फर्जीवाड़ा बताया था। खेमका के वकील अनुपम गुप्ता के मुताबिक कॉलोनी बनाने के लिए डीएलएफ को लाइसेंस की जरूरत थी। इसके लिए कंपनी को कई सौ करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते, जबकि वाड्रा ने बिचौलिया बनकर सैकड़ों करोड़ का काम 50 करोड़ में ही करवा दिया।

डील रद्द करते ही खेमका का ट्रांसफर

चकबंदी महानिदेशक के पद पर रहते हुए अशोक खेमका ने स्काईलाइट और डीएलएफ के बीच हुई लैंड डील के म्यूटेशन को रद्द कर दिया था। म्यूटेशन जमीन हस्तांतरण प्रक्रिया का हिस्सा है। इसके फौरन बाद उनका ट्रांसफर हो गया था। इस जमीन सौदे पर सवाल उठने के बाद कांग्रेस की तत्कालीन भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने एक जांच कमिटी बनाई। इस कमिटी ने रॉबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट देने में कोई देरी नहीं लगाई। हालांकि खेमका ने इस कमिटी को ही कठघरे में खड़ा किया था।

वाड्रा को क्लीन चिट पर खेमका ने उठाए सवाल

अशोक खेमका ने कमिटी में शामिल उस समय के एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी कृष्ण मोहन और एसएस जालान पर सवाल उठाए। खेमका का कहना था कि जमीन सौदे के वक्त कृष्ण मोहन राजस्व विभाग के प्रमुख थे। ऐसे में वह अपने ही फैसले की कैसे जांच कर सकते थे? वहीं एसएस जालान वाड्रा की कंपनी को कॉलोनी के लिए लाइसेंस देने वाली टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के चीफ थे। बीजेपी का आरोप है कि यह जमीन सौदा सत्ता की ऊंची पहुंच और नौकरशाही की कथित मिलीभगत का नतीजा था। अशोक खेमका वही चर्चित आईएएस हैं, जिनका 30 साल की सर्विस में 56 बार तबादला हुआ है।

लैंड डील केस में अभी क्या स्टेटस?        

2014 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनी। 2015 में इस लैंड डील की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन हुआ। 31 अगस्त 20016 को ढींगरा आयोग ने अपनी 182 पन्नों की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी। 10 जनवरी 2019 को पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रक्रिया में अनियमितताओं का हवाला देते हुए जांच आयोग की रिपोर्ट रद्द कर दी थी। अदालत में सुनवाई के दौरान रिपोर्ट का कुछ हिस्सा मीडिया में लीक होने पर भी बवाल मचा था। कोर्ट ने राज्य सरकार को इसे सार्वजनिक करने से रोक दिया था। इसकी वजह से तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार ढींगरा आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में नहीं पेश कर सकी थी। ढींगरा आयोग की कार्यप्रणाली पर हाईकोर्ट बेंच के जजों में एक राय नहीं थी। मामले को इसके बाद जस्टिस अनिल खेत्रपाल के पास भेजा गया था। 9 मई 2024 को उन्होंने अपने आदेश में कहा कि ढींगरा आयोग का अस्तित्व अभी खत्म नहीं हुआ है। ऐसे में राज्य सरकार जांच जारी रखने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही फिर से जांच के लिए नए आयोग का भी गठन कर सकती है।

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