बहराइच हिंसा में मारा गया युवक रामगोपाल मिश्रा एक हिंदू था, क्या इसलिए अखिलेश यादव के मुंह से श्रद्धांजलि के दो लफ्ज तक नहीं निकले? अगर यह रामगोपाल की जगह कोई मोहम्मद रहमान रहा होता, तो क्या अखिलेश यादव चुप रहते? बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हुए, दुर्गा प्रतिमाओं को खंडित किया गया लेकिन अखिलेश यादव क्यों नहीं बोले? क्या एक झंडा बदल देने से किसी का सीना गोलियों से छलनी कर देना जायज है? क्या आप बहराइच में संप्रदाय विशेष की हिंसा के नंगे नाच को उपचुनाव के पर्दे से ढकना चाहते हैं? सबसे बड़ी हिंदू आबादी वाले देश में क्या मां दुर्गा के विसर्जन जुलूस में डीजे भी नहीं बजेगा? अखिलेश यादव जी आप क्यों सवाल उठा रहे हैं कि डीजे पर क्या बजाया जा रहा था? अखिलेश यादव ने तमाम ‘प्रवचन’ दिया लेकिन रामगोपाल मिश्रा की मौत पर न तो संवेदना जताई, न ही उनके परिजनों से हमदर्दी। अखिलेशजी क्या रामगोपाल आपके एजेंडे के हिसाब से अछूत था, इसलिए आपने उसका नाम लेना तक ठीक नहीं समझा?
अखिलेश को डीजे की आवाज कसूरवार लगती है
ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब अखिलेश यादव नहीं दे पाएंगे। अखिलेश यादव ये क्यों नहीं कह सके कि अगर दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस पर पथराव नहीं होता, तो शायद यह हिंसा भी नहीं होती। 20 राउंड फायरिंग पर तो आप कुछ नहीं बोले। आप क्यों नहीं कह सके कि किसी की बर्बर हत्या और उसके पैरों के नाखून तक प्लास से उखाड़ देना अमानवीय है। पहले अखिलेश यादव ने एक्स पर जो पोस्ट किया, उसके बोल समझिए। अखिलेश यादव लिखते हैं, ‘चुनाव का आना और सांप्रदायिक माहौल का बिगड़ जाना, ये इत्तेफ़ाक़ नहीं है। जनता सब समझ रही है। हार के डर से हिंसा का सहारा लेना किसकी पुरानी रणनीति है, सब जानते हैं। ये उपचुनाव की दस्तक है। दिखावटी क़ानून-व्यवस्था की जगह अगर सरकार सच में पुख़्ता इंतज़ाम करे तो सब सही हो जाएगा लेकिन ऐसा होगा तब ही जब ये सरकार चाहेगी।‘
चुनाव का आना और साम्प्रदायिक माहौल का बिगड़ जाना, ये इत्तफ़ाक़ नहीं है। जनता सब समझ रही है। हार के डर से हिंसा का सहारा लेना किसकी पुरानी रणनीति है, सब जानते हैं। ये उप चुनाव की दस्तक है।
दिखावटी क़ानून-व्यवस्था की जगह अगर सरकार सच में पुख़्ता इंतज़ाम करे तो सब सही हो जाएगा…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) October 14, 2024
वोट बैंक खिसकने के डर से चुप हैं अखिलेश?
यानी अखिलेश यादव कह रहे हैं कि इस घटना के पीछे उपचुनाव का करीब आना है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि बहराइच के जिस महराजगंज बाजार में यह घटना हुई, वहां के घरों की छत पर इतने पत्थर कहां से आ गए? क्या वहां पर हथियारों की कोई फैक्ट्री थी, जो अंधाधुंध फायरिंग होती रही। जिन मुस्लिम युवकों का नाम इस सांप्रदायिक हिंसा में सामने आया, उनको क्या बीजेपी ने रामगोपाल की हत्या करने को कहा था? अब्दुल हमीद के घर के अंदर रामगोपाल को खींचकर ले जाने वाले क्या हिंदू समुदाय के थे? लेकिन अखिलेश यादव को चुनावी रंग देने की कला अच्छे से आती है। हार के डर से हिंसा का सहारा लेने की बात कहां से आ गई? मेरी जानकारी में तो बहराइच की किसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव नहीं होना है। उल्टे आप से जरूर यह सवाल पूछा जा सकता है कि कहीं उपचुनाव करीब होने की वजह से आपने एक समुदाय विशेष के कृत्य पर कुछ भी बोलने से परहेज किया। क्या आपको मुस्लिम वोट बैंक खिसक जाने का डर नहीं है?
दंगों पर अपना ट्रैक रिकॉर्ड देख लीजिए
अब अखिलेश जी आपके ट्रैक रिकॉर्ड की बात कर लेते हैं। 2012 से 2017 के बीच जब आपकी यूपी में सरकार थी, तो सांप्रदायिक हिंसा की 400 से ज्यादा घटनाएं हुई थीं। 2013 में 823 दंगों में 133 मौतें, 2014 में 644 दंगों में 95 मौतें और 2015 में 751 दंगों में 97 मौतें। ये आंकड़े आखिर किस बात की गवाही देते हैं? क्या आपको सांप्रदायिक दंगों की आंच में सियासी रोटी सेंकना पसंद है? यूपी की कानून-व्यवस्था तो आपके जमाने से लाख दर्जे सुधर चुकी है, फिर आप सांप्रदायिक हिंसा और चुनाव को क्यों जोड़ रहे हैं? हकीकत यह है कि जब-जब समुदाय विशेष ने सांप्रदायिक हिंसा का नंगा नाच खेला है, तब तब आपकी जुबान चुप्पी साधे रही। आपको याद दिलाते हैं 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा। तब भी कवाल कांड के बाद सचिन-गौरव की हत्या हुई थी और आपकी सरकार मूकदर्शक बनी रही थी। इसके बाद हिंदू समाज पर जब अत्याचार की इंतहा हो गई, तो क्रिया की प्रतिक्रिया हुई थी।
रामगोपाल का नाम लेने तक से परहेज
अखिलेशजी क्या मारा गया व्यक्ति हिंदू था, इसलिए आप इसे चुनावी रंग देना चाहते हैं? अगर मरने वाला मुस्लिम होता, तो क्या आप धरना प्रदर्शन और उसके परिवार से मिलने नहीं पहुंच जाते? एक शब्द आपके हलक से रामगोपाल के परिवार के लिए नहीं निकला। आपके या आपके किसी भी प्रवक्ता की ओर से हत्यारों के खिलाफ कोई बयान नहीं आया। चुनाव तो इस देश में हमेशा होते रहते हैं, तो क्या हिंदू समाज त्योहार को धूमधाम से मनाना बंद कर देगा? आपकी इस ‘कट्टर समाजवादी सोच’ को सलाम है अखिलेशजी।