लक्ष्मी निवास पैलेस: बड़ौदा रियासत की शान ओ शौक़त का प्रतीक महल, जिसके वास्तुकार ने कर ली थी आत्महत्या

आज से कई साल पहले बने इस महल में उस वक़्त भी लिफ्ट, टेलीफोन एक्सचेंज, और बिजली जैसी कई सुविधाएं थीं

लक्ष्मी विलास पैलेस, पेड्रो सांचेज, नरेंद्र मोदी

बड़ौदा स्थित 'लक्ष्मी विलास पैलेस' में स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज के साथ PM नरेंद्र मोदी

19वीं सदी की शुरुआत की बात है, भारत में अंग्रेजों का शासन था और राजाओं-महराजाओं का दौर था। उसी राजसी दौर में एक मशहूर आर्किटेक्ट थे मेजर चार्ल्स मंट। चार्ल्स मंट को दुनिया के बेहतरीन वास्तुकारों में गिना जाता था, जिन्होंने दुनिया के कई भव्य और मशहूर राज महल और पैलेस बनाए। उनकी बनाई इमारतें भारतीय और यूरोपियन आर्किटेक्ट का बेहतरीन संगम हुआ करती थीं।

एक दिन उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी निजी रिहाइशगाह बनाने का काम मिला, उनसे कहा गया कि पैसे की चिंता न करें, बस ऐसी इमारत बनाएँ, जो दुनिया में सबसे भव्य और सबसे विशाल हो। ये इमारत थी बड़ोदरा का लक्ष्मी विलास पैलेस और इसे बड़ौदा रियासत के सैयाजीराव ने बनवाया था।

वर्ष 1890 में मंट ने इसे बनाने का काम शुरू किया, लेकिन वो इसे कभी पूरा नहीं कर सके, बीच में ही ख़ुदकुशी कर ली। हुआ ये कि जब इमारत बननी शुरू हुई, तो उन्हें आभास हुआ कि जिस काग़ज़ पर उन्होंने महल का नक़्शा बनाया था वो ही उल्टा था। अपराधबोध और ग्लानि की वजह से मंट ने आत्महत्या कर ली और बाद में इस इमारत को रॉबर्ट चिशोल्म ने पूरा किया। ये इमारत जब बन कर तैयार हुई तो ये दुनिया की सबसे बड़ी और भव्य इमारत बनी और आज भी इसका ये रिकॉर्ड क़ायम है। लक्ष्मी विलास पैलेस लंदन के बकिंघम पैलेस से भी चार गुना ज़्यादा बड़ा है।

आज से कई साल पहले बने इस महल में उस वक़्त भी लिफ्ट, टेलीफोन एक्सचेंज, और बिजली जैसी कई सुविधाएं थीं। महल में ख़ासकर सोनगढ़ की खदानों से लाए गए सुनहरे पत्थर लगे हैं, जो हल्की रोशनी में चमकते हैं। इसमें 170 बड़े और छोटे कमरे हैं, जिसमें कुछ सिल्वर रूम या गुलाबी कमरे की थीम पर बने हैं।

इस महल का सबसे खास आकर्षण है इसका दरबार हॉल। लक्ष्मी विलास पैलेस का ये दरबार हॉल काफी भव्य है और 5000 वर्ग फीट में बना है। खास बात ये है कि इतने बड़े दरबार हॉल में एक भी खंभा नहीं है। इस दरबार हॉल में मुरानो फ्लोरिंग भी है, जिसे इटली के मुरानों के 12 कारीगरों ने छह महीने की मेहनत के दौरान बनाया था। इस हॉल में चंदन की लकड़ी के मेहराब हैं, साथ ही इसे मशहूर चित्रकार राजा रवि वर्मा की पेंटिग्स से सजाया गया था।

इसके अलावा इस महल में निजी गोल्फ कोर्स, टेनिस कोर्ट, लाइब्रेरी और म्यूज़ियम भी हैं। इस महल को बनाने में उस वक़्त 60 लाख डॉलर का खर्च आया था और अगर आज इसकी क़ीमत आँकी जाए तो ये क़रीब 25 हज़ार करोड़ रुपये होती है।

दुनिया के सबसे बड़े महल को बनवाने वाले सायाजीराव ने 58 वर्षों तक बड़ौदा पर शासन किया। उस वक़्त बड़ौदा भारत की तीसरी सबसे संपन्न रियासत थी, जबकि राजा दुनिया के सातवें सबसे अमीर शख़्स माने जाते थे। इन्हीं के दौर में ही ‘बैंक ऑफ बड़ौदा’ की स्थापना हुई, जो आज भी भारत का एक प्रमुख बैंक है। महाराजा की एक उपलब्धि ये भी रही कि उन्होंने ही भारत की पहली पब्लिक लाइब्रेरी बनाई थी और संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव आंबेडकर को छात्रवृत्ति देने वाले भी महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ ही थे। इसी छात्रवृत्ति के ज़रिए ही अंबेडकर पढ़ाई के लिए अमेरिका जा सके थे।

इसीलिए आज जब पीएम मोदी ने इस महल में स्पेन के राष्ट्रपति की अगवानी की तो ये इसका अपना एक इतिहास भी था, और जो भारत के उस वैभव को भी दर्शाता है।

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