जम्मू-कश्मीर के अखनूर में सेना और आतंकियों बीच हुई मुठभेड़ में सेना ने 3 आतंकियों को मार गिराया है। इस मुठभेड़ में सेना का बहादुर डॉग फैंटम बलिदान हो गया। आतंकियों ने सेना के काफिले में शामिल एंबुलेंस पर हमला किया था। इसके बाद सेना की तरफ से की गई जवाबी कार्रवाई में फैंटम आतंकियों को ढूंढ़ रहा था। इसी दौरान उसे गोली लग गई और वह बलिदान हो गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आतंकवादियों ने सुंदरबनी सेक्टर के आसन के पास आर्मी की एक एंबुलेंस पर हमला किया था। हमले के बाद आतंकी मौके से भाग खड़े हुए थे। इसके बाद सेना ने तलाशी अभियान शुरू कर जवाबी कार्रवाई की थी। आतंकियों और सेना के बीच करीब 5 घंटे तक चली मुठभेड़ के दौरान सेना ने 3 आतंकियों को ढेर कर दिया था। लेकिन आतंकियों की तलाशी के दौरान आतंकियों की गोली फैंटम को लग गई थी। इससे सेना का जाबाज डॉग ‘लड़ते-लड़ते’ बलिदान हो गया।
All Three Hardcore Terrorists Eliminated Post Intense Firefight
After round the clock surveillance through out the night, an intense firefight unfolded today morning resulting in a significant victory for our forces.
Relentless operations and tactical excellence has led to the…
— White Knight Corps (@Whiteknight_IA) October 29, 2024
फैंटम के बलिदान पर सेना ने एक बयान जारी कर कहा कि फैंटम के साहस, निष्ठा और समर्पण को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वहीं, सेना के 16 कोर, व्हाइट नाइट कोर ने कहा कि हम अपने सच्चे नायक, एक बहादुर भारतीय सेना के डॉग फैंटम के सर्वोच्च बलिदान को नमन करते हैं।
K9 यूनिट का हिस्सा था फैंटम
फैंटम सेना के K9 यूनिट के असॉल्ट डॉग यूनिट का हिस्सा था। यह यूनिट सेना के आातंकवाद विरोधी अभियानों का हिस्सा होती है। इस यूनिट में सेना द्वारा ट्रेंड किए हुए डॉग होते हैं। जाबाज डॉग फैंटम का जन्म 25 मई 2020 को हुआ था। 4 साल के फैंटम को रिमाउंट वेटरनरी कोर मेरठ से लाकर सेना में शामिल किया गया था। इसके बाद 12 अगस्त 2022 को फैंटम की पोस्टिंग असॉल्ट डॉग यूनिट में की गई थी। बता दें कि फैंटम बेल्जियन मेलिनोइस ब्रीड का डॉग था।
सेना में क्या होता है डॉग्स का काम
सेना में डॉग्स को गार्ड ड्यूटी, गश्त, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) सहित अन्य विस्फोटकों को सूंघने, बारूदी सुरंगों का पता लगाने, नशीली दवाओं सहित प्रतिबंधित वस्तुओं को सूंघने, संभावित लक्ष्यों पर हमला करने, हिमस्खलन में मलबे का पता लगाने तथा छिपे हुए भगोड़ों और आतंकवादियों का पता लगाने समेत अन्य कामों के लिए ट्रेंड किया जाता है। भारतीय सेना के डॉग्स का दस्ता जम्मू-कश्मीर में किसी भी आतंकवाद विरोधी अभियान में सबसे पहले कार्रवाई करने वाला दस्ता होता है।
कैसे होती है सेना के डॉग्स की भर्ती
सेना अपने डॉग्स के लिए तेज, बुद्धिमान और सभी मौसमों व परिस्थिति में काम करने के लिए अनुकूल रहने वाली नस्लों का चयन करती है। खासतौर से, ग्रेट स्विस माउंटेन, जर्मन शेफर्ड, बेल्जियन मालिनोइस, लैब्राडोर रिट्रीवर्स, कॉकर स्पैनियल और लैब्राडोर नस्ल के डॉग्स का सेना अधिक उपयोग करती है। इन डॉग्स को सेना में भर्ती के लिए कड़ी शारीरिक परीक्षा से गुजरना होता है। इसके बाद ही ट्रेनिंग के लिए उनका सलेक्शन होता है। इसके बाद इन डॉग्स को मुख्य ट्रेनिंग मेरठ में रिमाउंट और वेटनरी कोर सेंटर और कॉलेज में दी जाती है। यह ट्रेनिंग कम से कम 10 महीने तक चलती है।
प्रशिक्षण के दौरान, डॉग्स की वफ़ादारी और युद्ध व हमले के दौरान उन्हें किस तरह से काम करना है, इसकी ट्रेनिंग के बाद ही उन्हें सेना में शामिल किया जाता है। यही नहीं, प्रत्येक डॉग को एक हैंडलर सौंपा जाता है जो उन्हें रोज़ाना प्रशिक्षण और गाइडेंस देता है।
हालांकि यदि हैंडलर को बदलने की आवश्यकता होती है, तो डॉग्स को नए हैंडलर के साथ अनुकूल होने में कम से कम 7 दिनों का समय लगता है। इस दौरान हैंडलर, हैंडलर्स के आदेश को मानने और ढंग से काम करने के लिए फिर से तैयार हो जाते हैं। हैंडलर ही इन हैंडलर को युद्ध की स्थितियों में अपने भौंकने को नियंत्रित करना सिखाते हैं ताकि दुश्मन का पता न चल सके। डॉग्स को हैंडलर की आवाज और हाथ के इशारे पर काम करने व जवाब देने के लिए भी ट्रेंड किया जाता है।
रिटायरमेंट
सेना के डॉग्स को 13-15 महीने की उम्र में तैनात किया जाता है और 8-10 साल की उम्र में उन्हें रिटायर कर दिया जाता है। रिमाउंट और वेटनरी कोर सेंटर इन डॉग्स की जन्म से लेकर सेना की ड्यूटी से रिटायरमेंट होने तक देखभाल करता है। रिटायरमेंट के बाद भी सेना के डॉग्स को गोद लिया जा सकता है। डॉग्स को गोद लेने वाले व्यक्ति को एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करना होता है, जिसमें यह तय किया जाता है कि वह डॉग्स की अच्छी तरह से देखभाल करेगा।