क्या सह-अस्तित्व का ठेका सिर्फ एक समुदाय को मिला है? क्या हिंदुओं के सबसे बड़े देश में दुर्गा पूजा और दिवाली मनाना भी गुनाह है? क्या अर्बन नक्सल हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और परंपरा को पचा नहीं पा रहे हैं? ये सारे सवाल इसलिए हैं, क्योंकि हमारे देश में एक के बाद एक हिंदू समुदाय से जुड़े त्याहारों में जो ट्रेंड देखने को मिल रहा है, वह बेहद गंभीर है। उत्सवों में उत्पात की शुरुआत गणेश पूजा से होती है। सबने देखा कि किस तरह दक्षिण से लेकर उत्तर और पूरब से पश्चिम तक गणेशोत्सव पंडालों और विसर्जन जुलूस में झड़प की घटनाएं सामने आईं। उत्तर प्रदेश के बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान एक हिंदू युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। प्रतिमाओं पर समुदाय विशेष की ओर से पथराव हुआ। ताजा मामला देश की राजधानी दिल्ली का है, जहां के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में दिवाली फेस्ट के दौरान बवाल हुआ। रंगोली पर गाड़ी चढ़ा दी गई और जलते हुए दीयों की कतार को पैरों तले रौंद दिया गया।
हिंदू उत्सवों में उत्पात का ट्रेंड
अब एक सवाल- क्या आपने देखा कि ईद-बकरीद या बारावफात पर ऐसा कोई व्यवधान पैदा किया जाता है? क्या एक समुदाय विशेष की धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं को निभाने में कोई अड़ंगा डाला जाता है? अगर किसी स्वतंत्र एजेंसी से सर्वे करा लिया जाए, तो लगभग 100 प्रतिशत लोग नहीं में ही जवाब देंगे। इसके बावजूद सनातन संस्कृति से जुड़े पर्व आने पर कोई न कोई अड़चन डाल दी जाती है। कभी हंगामा करके, तो कभी हिंसा के जरिए उन परंपराओं और रीति-रिवाज में खलल एक आम बात होती जा रही है। उत्सव में उत्पात का ये ट्रेंड भारत जैसे देश में कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जामिया मिलिया में एबीवीपी के वार्षिक दिवाली उत्सव के दौरान जो कुछ हुआ, उसने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जामिया के उन छात्रों को शर्म आनी चाहिए…
जामिया के ही पूर्व छात्र और पत्रकार रंगनाथ सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर इस घटना के बारे में पोस्ट लिखी है। रंगनाथ सिंह ने फेसबुक पोस्ट में हंगामा और मारपीट करने वालों की सोच पर तीखा हमला किया है। उन्होंने लिखा, ‘आज जामिया में एक छोटे से तयशुदा इलाके में दीपावली पूर्व उत्सव के दौरान रंगोली बनाने और दीपक जलाने वाले छात्रों के साथ जिस तरह की अभद्रता और मारपीट हुई, वह निंदनीय है। छात्र दिवाली की छुट्टी से पहले यह छोटा सा आयोजन करते रहे हैं। जामिया के उन छात्रों को शर्म आनी चाहिए, जिन्होंने अपने ही सहपाठियों की पिटाई में मदद की। कुछ लोगों का कहना है कि कुछ बाहरी गुण्डा तत्वों ने इस कुकृत्य में मुख्य भूमिका निभायी है। ऐसे गुण्डा तत्वों को याद रखना चाहिए कि रंगोली पर गाड़ी चढ़ाने और दीपक को पैरों से कुचलने से न आप रंग को मिटा सकते हैं, और न ही रोशनी को कत्ल कर सकते हैं।‘
‘आप चुप रहेंगे तो इतिहास सजा तय करेगा’
पत्रकार रंगनाथ सिंह ने आगे लिखा, ‘जामिया के अपने उदारमना मित्रों से कहना चाहूंगा कि ऐसे अवसरों पर आप चुप रहेंगे, तो इतिहास ही आपकी सजा तय करेगा। इस कृत्य की कड़ी निंदा करने के लिए आगे आएं, ताकि यह संदेश स्पष्ट हो कि जामिया इदारे का बड़ा वर्ग इस कृत्य के खिलाफ है। याद रखें, आधिकारिक प्रेस रिलीज की पर्दानशीनी का जमाना जा चुका है। जामिया के प्रबुद्ध वर्ग को उपद्रवी तत्वों की खुलकर आलोचना करनी चाहिए।‘
#JamiaMilliaIslamia #AlumniAssociation releases their statement on the ruckus reported in Jamia Millia Islamia during #DiwaliEvent. pic.twitter.com/KYArV5uqp6
— Upendrra Rai (@UpendrraRai) October 23, 2024
‘मैंने वहां सरस्वती पूजा में हंगामा भी देखा है’
पत्रकार रंगनाथ सिंह की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए जामिया के ही पूर्व छात्र गौरव श्रीवास्तव ने लिखा, ‘मैंने स्वयं जामिया के हिंदी विभाग से पत्रकारिता का कोर्स किया है। इस दौरान बसंत पंचमी उत्सव की शुरुआत सरस्वती पूजा से होने पर हुए हंगामे को भी देखा है। 5 दिन के जामिया वार्षिकोत्सव के प्रत्येक दिन की शुरुआत कुरान की आयतों से होना सेक्युलर है लेकिन हिंदी विभाग में बसंत पंचमी की शुरुआत में जामिया तराना ही बजना चाहिए, क्योंकि सरस्वती पूजा तो सांप्रदायिक है। यही इस देश में सेक्युलरिज्म की सच्चाई है।‘
If Jamia is funded by Tax Payers money (Majority of Tax payers in India are Hindu) it should be stopped … Students in school and colleges need to learn to respect other’s culture https://t.co/vHsQIY4sK3
— Nandita Thhakur (नंदिता ठाकुर) 🇮🇳 (@nanditathhakur) October 23, 2024
‘सेंट्रल मुस्लिम यूनिवर्सिटी है, इसलिए वहां ऐसा हुआ’
नंदिता ठाकुर ने वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया के एक्स पोस्ट को रीपोस्ट करते हुए लिखा, ‘अगर जामिया टैक्स देने वाले लोगों के पैसे से चलता है (भारत में ज्यादातर टैक्स पेयर हिंदू हैं) तो यह सब रुकना चाहिए। स्कूल और कॉलेजों में छात्रों को दूसरों की संस्कृति का आदर करना सिखाने की जरूरत है।’ वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया ने जामिया की घटना पर पोस्ट करते हुए लिखा, ‘जामिया के हिंदू छात्र अपने कैंपस में दीपावली नहीं मनाएंगे तो और कहां मनाएंगे? ये सवाल खड़ा हुआ है कल की झड़प के बाद जब छात्रों का धड़ा दीपावली मना रहा था, तभी मुस्लिम छात्र आए दीयों, रंगोली, मिठाइयों, फूलों को पैरों और गाड़ियों से कुचलते हुए मजहबी उन्माद के नारे लगाने लगे। सवाल ये है कि क्या वहां ये इसलिए हो रहा है कि वो एक सेंट्रल मुस्लिम यूनिवर्सिटी है?’
‘दूसरों के त्योहार में टांग अड़ाने की घटिया सोच’
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी लोग जामिया के हंगामे पर सवाल उठा रहे हैं। प्रवीन सिंह नाम के यूजर ने इस घटना से संबंधित एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया में लिखा, ‘देखो, जो लोग दीवाली जैसे पवित्र त्यौहार में रंगोली बिगाड़ने और दीये बुझाने की घटिया हरकत कर रहे हैं, उनकी औकात साफ झलकती है। मतलब, इनसे बड़ा चिरकुटपन और क्या हो सकता है? अपनी नफरत निकालने का इतना ही शौक है तो जाओ, कहीं और जाकर अपनी राजनीति करो। लेकिन दूसरों के त्यौहार में टांग अड़ाना, ये सिर्फ तुम्हारी घटिया सोच दिखाता है। और जो पैलेस्टाइन ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे थे, उन्हें समझ लेना चाहिए कि इस तरह की सस्ती हरकतों से न तो तुम मसीहा बनोगे, न ही किसी का भला कर रहे हो। तुम हिंदुओं के धार्मिक उत्सव में जहर घोलने चले हो, वो भी अपनी बेहूदी राजनीति चमकाने के लिए? भाई, नफ़रत का इतना शौक है तो आइने में खुद की शक्ल देखो पहले। जो लोग इस तरह की हरकतें करते हैं, उन्हें तो साफ-साफ बता देना चाहिए कि अब ये बर्दाश्त नहीं होगा।’