जम्मू कश्मीर राज्य के संस्थापक डोगरा योद्धा गुलाब सिंह, 22 रियासतों में बँटे प्रदेश को किया संगठित

सिख सम्राट रणजीत सिंह के रहे वफादार

गुलाब सिंह, जम्मू कश्मीर

महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू कश्मीर को अंग्रेजों से किसी प्रलोभन या वस्तु की तरह सौदेबाजी करके नहीं खरीदा था, समझिए क्यों

भारत के इतिहास में 19वीं शताब्दी के आरंभ में अंग्रेजों की सर्वोच्चता के खिलाफ लड़ते हुए मराठों, गोरखाओं और मुगलों का पतन हुआ। जब यह सब हो रहा था, तब सिखों ने लाहौर में जबरदस्त ताकत हासिल की और पंजाब को एक अभेद्य किला बना दिया। विडंबना यह है कि इसी उथल-पुथल में बहकर, उनका पतन भी उतनी ही तेजी से हुआ जितना कि उनका उत्थान। हम जानते हैं कि भारत में अनेक महान योद्धा हुए, जिनका योगदान भारतीय इतिहास में अमूल्य है। महाराणा प्रताप हों या शिवाजी, लक्ष्मीबाई हों या पृथ्वीराज चौहान वीर योद्धाओं की एक लंबी फेहरिस्त है जो आज भी अतीत के स्वर्णिम पन्नों पर अंकित हैं। योद्धाओं की इसी फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ता है महाराजा गुलाब सिंह का।

अंग्रेजों के शासन के बीच निकला डोगरा योद्धा

1846 तक आते-आते अंग्रेजों से लड़ने के बाद सिखों के हाथ से पंजाब का शासन चला गया। ऐसे में पंजाब के बचे हुए सैनिकों एवं उनके नायकों में से एक डोगरा योद्धा का उदय हुआ जिसने आने वाले समय में भारतीय उपमहाद्वीप की नियति को आकार दिया। जी हाँ, वह यही महाराजा गुलाब सिंह थे जिन्होंने जम्मू और कश्मीर के विशाल राज्य का निर्माण किया। उनका जन्म 18 अक्टूबर 1792 में अंदरवाह के जागीरदार मियां किशोर सिंह के घर हुआ था। गुलाब सिंह का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था। उनकी कुशलता को देखते हुए लाहौर साम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा उन्हें अनेक जिम्मेदारियां दी जाती रहीं।

गुलाब सिंह ने भी सभी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ निभाया। 1809 ई. में उन्हें रणजीत सिंह ने सेना के एक दल का नायक भी बनाया, सेनानायक के तौर पर गुलाब सिंह की नेतृत्व क्षमता उनकी रणनीतिक सूझबूझ से प्रभावित होकर, महाराजा रणजीत सिंह ने खुद 17 जून 1822 को चंद्रभागा (चिनाब) नदी के तट पर जम्मू के शासक के रूप में उनका राज्याभिषेक किया।

महाराजा गुलाब सिंह के राज्याभिषेक से संबंधित एक किंवदंती भी प्रचलित है। कहा जाता है कि इनका राज्याभिषेक करते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने इनके मस्तिष्क पर राजतिलक नीचे से ऊपर की तरफ न करके बल्कि विपरीत दिशा में ऊपर से नीचे की तरफ किया था। जबकि सामान्यतः तिलक सदैव नीचे से ऊपर की दिशा में ही किया जाता है। रणजीत सिंह द्वारा इस विपरीत दिशा में किए गए राजतिलक के संदर्भ में एक लोकमत प्रचलित है। माना जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने महाराजा गुलाब सिंह के व्यक्तित्व में उस महान शासक को देखा था जो जम्मू कश्मीर के विशाल पर्वतों से नीचे की दिशा में आकर उस समय भारत में निरंतर फैलते जा रहे अंग्रेजी साम्राज्य को रोकने की क्षमता रखता था। और वास्तव में देखा जाए तो महाराजा गुलाब सिंह ने किया भी ऐसा ही।

सिख सम्राट रणजीत सिंह के साम्राज्य का किया विस्तार

महाराजा गुलाब सिंह ने अपने साहसिक अभियानों तथा रणनीतिक कौशल से महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य (लाहौर साम्राज्य) का विस्तार ल्हासा, पाश्मीना, लद्दाख, तिब्बत, सिल्क रूट तथा गिलगित बाल्टिस्तान के दुर्गम से दुर्गम क्षेत्रों तक किया था। जम्मू को अपना गढ़ बनाकर उन्होंने तेजी से साम्राज्य का विस्तार किया, 1830 के दशक में लद्दाख, 1840 के दशक में गिलगित-बाल्टिस्तान और 1841 में पश्चिमी तिब्बत पर विजय प्राप्त की। साम्राज्य 85 हजार वर्ग मील में फैला था, जो भारत में सबसे बड़ा था, जिस पर उनके वंशजों ने एक शताब्दी तक शासन किया। उनका साम्राज्य तिब्बत, नेपाल, चीन, मध्य एशियाई गणराज्यों और लगभग अफगानिस्तान तक फैला था। वे एकमात्र शासक थे जिन्होंने भारतीय सीमाओं को काराकोरम और मध्य एशिया तक बढ़ाया। उनका साम्राज्य दुनिया की लगभग आधी आबादी से घिरा हुआ था और इसलिए यह दुनिया का एक व्यापार गलियारा बन गया।

इन्होंने महज साम्राज्य विस्तार ही नहीं किया अपितु अनेक तत्कालीन विद्रोहों का भी दमन किया, उनमें से दिदो विद्रोह एवं अफगान विद्रोह प्रमुख हैं। वर्ष 1821 ई. में राजा गुलाब सिंह ने तत्कालीन दिदो विद्रोह के नेता दिदो जामवाल को पकड़कर उसे मार दिया। विद्रोह के नेता की हत्या होने पर यह विद्रोह तुरन्त शांत हो गया। वर्ष 1827 ई. हरि सिंह नलवा, जो उस समय सिख सेना के कमांडर इन चीफ थे, उन्हें शैदु युद्ध के दौरान अफगान विद्रोह का दमन करना था, इस विद्रोह का दमन करने में भी राजा गुलाब सिंह की महती भूमिका रही थी।

1837 ई. में सिख सेना के महान कमांडर इन चीफ हरि सिंह नलवा की मृत्यु के पश्चात जब जम्मू कश्मीर के अधिकांश हिस्सों में मुस्लिम विद्रोहियों ने विद्रोह करना प्रारंभ कर दिया था, उस समय राजा गुलाब सिंह को ही इन विद्रोहों के दमन का उत्तरदायित्व सौंपा गया था। इन विद्रोहों के अतिरिक्त भी पूंछ, हजारा, धूंड, मुरी, सती, कर्रल, तानोली और सुधान आदि क्षेत्रों में सिख साम्राज्य के विरुद्ध होने वाले प्रत्येक विद्रोह का दमन महाराजा गुलाब सिंह ने बहुत ही आक्रामकता एवं अपनी रणनीतिक सूझबूझ के साथ किया था। आजादी के बाद जिस तरह पटेल ने सम्पूर्ण भारत को संगठित किया, ठीक उसी प्रकार महाराजा गुलाब सिंह ने 22 छोटी-छोटी रियासतों में बंटे हुए तत्कालीन जम्मू कश्मीर को संगठित करके सिख साम्राज्य को और अधिक शक्तिशाली, समर्थ एवं सशक्त किया।

भाई-भतीजों की हत्या, फिर भी गुलाब सिंह ने दरबार में रखी श्रद्धा

महाराजा गुलाब सिंह ने सदैव ही महाराजा रणजीत सिंह और उनके लाहौर दरबार के प्रति सच्ची निष्ठा रखी। रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात जब उनके लाहौर दरबार में सत्ता संघर्ष की स्थिति थी और इस संघर्ष के दौरान रणजीत सिंह के उत्तराधिकारियों के मध्य राजा गुलाब सिंह के भाई-भतीजों की भी हत्या की गई। इसके बावजूद भी राजा गुलाब सिंह ने लाहौर दरबार के प्रति अपनी श्रद्धा को कम नहीं होने दिया और वहाँ स्थिरता लाने के लिए पूर्ण निष्ठा से कार्य किया।

ये महाराजा गुलाब सिंह की लाहौर दरबार के प्रति निष्ठा ही थी कि उन्होंने अंग्रेजों तथा लाहौर दरबार के मध्य युद्ध को रोकने के लिए मध्यस्थता की थी। लाहौर दरबार के प्रति राजा गुलाब सिंह निष्ठा का लिखित प्रमाण भी इतिहास में प्राप्त होता है। 1846 में ही सर हेनरी लारेंस और महाराजा गुलाब सिंह के मध्य हुए पत्र वार्ता से राजा गुलाब सिंह की निष्ठा को देखा जा सकता है।

सर हेनरी लारेंस ने इनको लिखे पत्रों में इन्हें लाहौर दरबार के खिलाफ भड़काने के लिए सत्ता संघर्ष के दौरान इनके भाई-भतीजों की हत्या का स्मरण तक कराया और इन्हें जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र राज्य के रूप में बनाने की बात कहते हुए स्वतंत्र राजा बनने का प्रलोभन भी दिया। किन्तु राजा गुलाब सिंह ने उनके इन पत्रों के प्रत्युत्तर में इसे लाहौर दरबार का आंतरिक मामला बताते हुए तथा उस सत्ता संघर्ष के समय महाराजा दिलीप सिंह के बच्चा होने एवं उनकी इस घटना में कोई भी भूमिका ना होने की बात स्पष्ट करते हुए सर हेनरी लॉरेन्स के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।

अंग्रेजों को देना पड़ा था हर्जाना, क्या है पूरा मामला

तत्पश्चात लाहौर दरबार एवं अंग्रेजों के बीच युद्ध विराम संधि हुई। इस संधि के तहत यह निश्चित किया गया कि सतलुज तथा व्यास नदियों के बीच के समस्त क्षेत्र सहित 75 लाख नानकशाही रुपये हर्जाने के रूप में अंग्रेजों को दिए जाएंगे। अब लाहौर दरबार सतलुज तथा व्यास नदी के मध्य के क्षेत्र को तो अंग्रेजों को सौंपने के लिए तैयार था किन्तु इसके अतिरिक्त 75 लाख नानकशाही रुपये नकद अंग्रेजों को देने में तत्कालीन वज़ीर लाल सिंह ने असमर्थता जताई। इन 75 लाख नानकशाही रुपयों के स्थान पर लाल सिंह ने जम्मू कश्मीर के प्रदेश अंग्रेजों को सौंपने का प्रस्ताव रखा था। वास्तव में लाहौर दरबार के वजीर लाल सिंह के इस प्रस्ताव ने राजा गुलाब सिंह को जम्मू कश्मीर को लाहौर दरबार तथा अंग्रेजों से स्वतंत्र राज्य के रूप में प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। हालाँकि महाराजा गुलाब सिंह को इस बात का तनिक भी प्रलोभन नहीं था किंतु वे उस विरासत को बचाना चाहते थे।

कई बुद्धिजीवी यह मानते हैं कि असल में महाराजा गुलाब सिंह ने 75 लाख नांनकशाही रुपयों के बदले यदि कश्मीर को बचाया तो वास्तव में उन्होंने कश्मीर को एक वस्तु समझ लिया था। किंतु यहाँ एक बात पूर्णतः स्पष्ट है कि जम्मू कश्मीर को 75 लाख नानकशाही रुपयों के बदले अंग्रेजों को सौंपने का प्रस्ताव तत्कालीन वज़ीर लाल सिंह ने रखा था। 9 मार्च, 1846 ईo को अंग्रेजों तथा लाहौर दरबार के मध्य हुई लाहौर सन्धि के अंतर्गत महाराजा दिलीप सिंह ने राजा गुलाब सिंह को स्वतंत्र रूप से जम्मू कश्मीर का शासक स्वीकार करते हुए उन्हें अंग्रेजों के साथ इस सम्बंध में अलग से सन्धि करने की भी स्वीकृति प्रदान की थी।

9 मार्च, 1846 ईo की इस लाहौर सन्धि के सात दिन बाद 16 मार्च को स्वतंत्र महाराजा के रूप में महाराजा गुलाब सिंह ने अंग्रेजों के साथ अमृतसर सन्धि की, जिसमें लाहौर दरबार द्वारा अंग्रेजों के साथ की गई सन्धि के अंतर्गत तय 75 लाख नानकशाही रुपयों की रकम महाराजा गुलाब सिंह ने अपने पक्ष से अंग्रेजों को देना स्वीकार किया था।

गुलाब सिंह: वीर योद्धा एवं राष्ट्रभक्त

इन तथ्यों के प्रकाश में यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू कश्मीर को अंग्रेजों से किसी प्रलोभन या वस्तु की तरह सौदेबाजी करके नहीं खरीदा था, अपितु लाहौर दरबार द्वारा 75 लाख नानकशाही रुपयों के बदले में जम्मू कश्मीर को अंग्रेजों के हाथों में जाने से बचाया था और सन्धि के अंतर्गत उस जम्मू कश्मीर के स्वतंत्र महाराजा बने थे जो उन्हें महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं प्रदान किया था। इस से एक तथ्य यह भी स्पष्ट होता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने जो विरासत राजा गुलाब सिंह को सौंपी थी उन्होंने इस आपात समय में उस विरासत की रक्षा अंग्रेजों तथा असक्षम तथा षड्यंत्रों में घिरे लाहौर दरबार से भी की थी।

वास्तव में सेनानायक से जननायक बने जम्मू कश्मीर के असल महाराजा गुलाब सिंह के जीवन का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि ये सही मायनों में एक वीर योद्धा तथा सच्चे राष्ट्रभक्त थे। अनेक इतिहासकारों ने भले ही अपने चश्मे से देखते हुए इन्हें अलग ढंग से प्रस्तुत किया हो किन्तु वास्तव में उस समय के साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इन्होंने बिना किसी प्रलोभन के उस विरासत की न सिर्फ रक्षा की बल्कि उसका विस्तार भी किया।

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