2024 का नोबेल शांति पुरस्कार जापान के प्रतिष्ठित संगठन ‘निहोन हिडानक्यो’ को दिया गया है। यह संगठन पिछले कई दशकों से परमाणु हथियारों के खिलाफ संघर्ष कर रहा है और इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरों से मुक्त करना है। इस सम्मान के साथ ‘निहोन हिडानक्यो’ को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है और इसके प्रयासों की सराहना की गई है। नोबेल समिति के अध्यक्ष जोर्गेन वाटने फ्राइडनेस ने कहा कि समिति सभी जीवित लोगों को सम्मान देना चाहती है।
‘निहोन हिडानक्यो’, जिसे जापानी काउंसिल अगेंस्ट एटॉमिक एंड हाइड्रोजन बम्स के नाम से भी जाना जाता है, 1956 में स्थापित हुआ था। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों से बचे लोगों की आवाज़ को दुनिया के सामने लाना था। इन हमलों ने जापान में लाखों लोगों की जान ली और इसके दुष्प्रभाव पीढ़ियों तक महसूस किए गए।
संगठन का कार्य ‘हिबाकुशा’ (परमाणु हमले से बचे लोग) के अनुभवों को साझा करना और परमाणु हथियारों के खतरों के प्रति जागरूकता फैलाना है। ‘निहोन हिडानक्यो’ का संघर्ष केवल जापान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा किया है।
नोबेल शांति पुरस्कार विश्व शांति, मानवाधिकारों, और शांति के लिए किए गए प्रयासों को मान्यता देने वाला सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। यह पुरस्कार उन लाखों लोगों की आवाज़ है जो शांति और सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ‘निहोन हिडानक्यो’ ने इस मुद्दे पर कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बात की और इसे वैश्विक चर्चा का हिस्सा बनाया।
परमाणु हथियारों का उपयोग 20वीं सदी के सबसे बड़े त्रासदियों में से एक था। 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर किए गए हमलों ने पूरी दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि परमाणु हथियार मानवता के लिए कितना बड़ा खतरा हैं। ‘निहोन हिडानक्यो’ ने इन हमलों के दुष्प्रभावों को दुनिया के सामने लाने का काम किया है।
संगठन ने विभिन्न देशों की सरकारों से अपील की है कि वे परमाणु हथियारों को नष्ट करने के लिए ठोस कदम उठाएं।
‘निहोन हिडानक्यो’ को 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार मिलना न केवल संगठन की जीत है, बल्कि परमाणु हथियारों के खिलाफ वैश्विक संघर्ष की भी मान्यता है।