लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ पहले से कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जातिवाद की पिच पर खुलकर बैटिंग कर रहे हैं। कभी वे ‘मिस इंडिया’ की लिस्ट में जाति खोजते हैं, कभी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में दलित, आदिवासी और OBC समुदाय के लोगों के ना होने का ज़िक्र करते हैं और कभी जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आक्रामक रूख अपना लेते हैं।
जातिवाद की राजनीति की इस कड़ी में राहुल गांधी का एक और बयान चर्चा में हैं। मौका था महाराष्ट्र के कोल्हापुर में संविधान सम्मान सम्मेलन का। राहुल गांधी ने इस सम्मेलन में कहा, “मैंने स्कूलों में ना दलितों का इतिहास नहीं पढ़ा और ना पिछड़ों का इतिहास पढ़ा।” उन्होंने मौजूदा सरकार पर हमला करते हुए कहा, “आज तो उलटा हो रहा है, जो थोड़ा बहुत इतिहास बचा है, उसे भी मिटाया जा रहा है।”
क्या कांग्रेस की शिक्षा नीतियों को गलत मानते हैं राहुल!
राहुल गांधी के इस बयान के बाद जो सबसे वाजिब सवाल उठता है वो ये कि उन्होंने अगर स्कूलों में दलितों और पिछड़ों का इतिहास नहीं पढ़ा तो इसका ज़िम्मेदार कौन है? राहुल गांधी की स्कूल शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबस और देहरादून के दून स्कूल से हुई है।
उनके चुनावी हलफनामे के मुताबिक, राहुल ने 1989 में 12वीं कक्षा की परीक्षा पास की है। मोटे तौर पर देखें तो 1980-90 के दशक में राहुल गांधी अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर रहे थे। इस दौरान केंद्र की सत्ता उनकी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी के पास थी। तो क्या राहुल गांधी मानते हैं कि उस समय जो स्कूलों में पढ़ाया जा रहा था उससे दलितों और पिछड़ों को गायब कर दिया गया था।
‘यह अपराध इंदिरा और राजीव गांधी का है’
दलित चिंतक दिलीप मंडल ने इसे लेकर राहुल गांधी की जातिवादी नीतियों पर कड़े सवाल उठाए हैं। मंडल ने एक्स पर राहुल के बयान को लेकर लिखा, “राहुल गांधी जब सेंट कोलंबा और दून स्कूल में पढ़ रहे थे तो (1980-1990) इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार थी। उनके स्कूल की किताबों में दलित और पिछड़े के बारे में कुछ भी न होने का अपराध उनकी दादी और पिता का है।
‘राहुल जी, झूठ बोलना पाप है’
मंडल ने एक अन्य पोस्ट में 1977 से 1990 के बीच दलितों से जुड़े बड़े कार्यक्रमों और घटनाक्रमों को ज़िक्र कर राहुल को ‘झूठा’ बताया है। मंडल ने लिखा, “राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं कि जब वे पढ़ रहे थे तब उनको दलितों और पिछड़ो के बारे में कुछ नहीं मालूम था।” उन्होंने लिखा है, “जिस समय राहुल गांधी बड़े हो रहे थे तब भारत में, 1977 मे मंडल कमीशन का गठन हुआ, 1978 में यूपी व बिहार में ओबीसी आरक्षण लागू हुआ और बड़ी हिंसा हुई।”
उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू ना करने को लेकर भी सवाल किए हैं। दिलीप मंडल लिखते हैं, “1980 से लेकर 1989 तक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी मंडल कमीशन पर फन काढ़कर बैठ रहे।” राहुल गांधी जब स्कूल में थे तब वेल्लुपुरम और करमचेडु में दलित नरसंहार हुए। अखबार तो राहुल गांधी के घर में आता ही होगा!” मंडल ने इसके अलावा कई और बिंदुओं का जिक्र अपने पोस्ट में किया है।
‘जातियों के प्रति राहुल का लगाव मूर्खतापूर्ण’
वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में ‘लोगों की जातियों के प्रति राहुल गांधी का लगाव न केवल चौंकाने वाला है बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है’ शीर्षक से एक लेख लिखा है।
तवलीन ने राहुल गांधी द्वारा मिस इंडिया और राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान जाति से जुड़े सवाल उठाए जाने का विश्लेषण किया है। तवलीन लिखती हैं, “राहुल गांधी को ध्यान देने की जरूरत है कि वह कभी-कभी बहुत कपटी लगते हैं। यदि उन्हें जातिगत असमानताओं के बारे में इतनी चिंता थी तो वे दशकों पहले निचली जातियों का उत्थान कर सकते थे जब उनका परिवार भारत पर शासन कर रहा था।”
जाति की राजनीति के सहारे क्या हासिल करना चाहते हैं राहुल
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत ना मिलने के पीछे राजनीति विश्लेषक बीजेपी नेताओं द्वारा संविधान में फेरबदल से जुड़े बयान और विपक्ष के ‘बीजेपी सत्ता में आने पर आरक्षण खत्म कर देगी’ जैसे नैरेटिव को मानते हैं। दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षण के मायने क्या हैं यह किसी से छिपा नहीं है। बीजेपी की राजनीति की धुरी हिंदुत्व है, बीजेपी लाभार्थी वर्ग के अलावा सभी जातियों को एकसाथ लाने के लिए हिंदुत्व की राजनीतिक पिच पर आती है और यह उसके लिए पिछले कुछ चुनावों में फायदा का सौदा साबित होते रहा है।
वहीं, राहुल गांधी समेत अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेता पिछड़ी जातियों और मुस्लिमों के वोटों को एकजुट कर सत्ता में आने का फॉर्मूला अपनाते हैं। राहुल का लक्ष्य भी ऐसा ही नज़र आ रहा है। मोटे तौर पर माना जा रहा है कि राम मंदिर के बाद पैदा हुई हिंदुत्व की लहर की काट के लिए कांग्रेस ने जातियों का सहारा लिया है। बीजेपी को छिटपुट के अलावा मुस्लिमों का वोट नहीं मिलता है और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस लंबे समय तक उनकी चहेती पार्टी रही है।
ऐसे में आने वाले समय में कांग्रेस मुस्लिमों के अलावा, दलितों और पिछड़ों को अपने पक्ष में एकजुट कर देश की सत्ता पर काबिज होना चाहती है।