महाराष्ट्र के नासिक जिले की एक अदालत ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर के खिलाफ ‘अपमानजनक टिप्पणी’ करने को लेकर समन जारी किया है। कोर्ट ने अगली तारीख पर राहुल गांधी को निजी तौर पर या प्रतिनिधि के ज़रिए पेश होने को कहा है। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (नासिक) दीपाली परिमल केडुस्कर द्वारा जारी किए गए नोटिस में कहा गया है, “एक देशभक्त व्यक्ति के खिलाफ दिया गया बयान प्रथम दृष्टया अपमानजनक प्रतीत होता है।”
शिकायतकर्ता की दलील
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी ने हिंगोली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में और नवंबर 2022 में वीर सावरकर की प्रतिष्ठा को जानबूझकर नुकसान पहुंचाया और समाज में उनकी छवि को धूमिल करने की भी कोशिश की। शिकायतकर्ता के मुताबिक, राहुल ने कहा कि ‘सावरकर भाजपा और आरएसएस के जिन्न हैं’ और यह अपमानजनक था। शिकायतकर्ता ने कहा कि राहुल ने आगे आरोप लगाया कि ‘सावरकर ने हाथ जोड़कर रिहाई की प्रार्थना की और बाद में ब्रिटिश सरकार के लिए काम करने का वादा किया’।
अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने सभी दलीलों पर विचार करने के बाद कहा, “रिकॉर्ड को देखकर लगता है कि आरोपित (राहुल गांधी) द्वारा एक देशभक्त व्यक्ति के खिलाफ दिए गए बयान प्रथम दृष्टया अपमानजनक हैं।” मजिस्ट्रेट ने कहा कि मामले में कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आधार हैं। अदालत ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि और जानबूझकर अपमानित करने से संबंधित धाराओं के तहत नोटिस जारी किया है।
इंदिरा गांधी ने की थी सावरकर की तारीफ
पूर्व प्रधानमंत्री और राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने सावरकर को लेकर कहा था कि वह समकालीन भारत के महान नेता थे जिनका नाम साहस और देशभक्ति का प्रेरणास्त्रोत है। इंदिरा गांधी ने एक अन्य पत्र में लिखा था, “वीर सावरकर का ब्रिटिश सरकार का खुलेआम विरोध करना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अहम स्थान रखता है।” इतना ही नहीं, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में वीर सावरकर के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था।
आजादी के लिए कोल्हू में ‘जुतने’ वाले सावरकर
28 मई, 1883 को नासिक में जन्मे सावरकर ने 16 वर्ष की आयु में ‘मित्र मेला’ नामक संगठन बनाकर भारत की संपूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रण ले लिया था और आगे चलकर इसी संगठन का नाम अभिनव भारत हुआ। 1906 में सावरकर लंद चले गए और वहां से भी भारत की स्वतंत्रता के प्रयास जारी रखते हुए ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ की शुरुआत की। वे संभवत: पहले ऐसे भारतीय नेता थे जिन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की ज़रूरत को महसूस किया और ‘अभिनव भारत’ के क्रांतिकारियों ने रूस, आयरलैंड, मिस्र और चीन जैसे देशों में क्रांतिकारी ताकतों से लगातार संपर्क बनाए रखा था। 27 वर्षों की उम्र में सावरकर को दो बार काले पानी की सज़ा सुनाई गई और उन्हें अंडमान में कारागार में रखा गया।
सावरकर आजीवन जेल में यातनाओं से भरा हुआ था और वहां उन्हें कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था। 1924 में जेल से बाहर आने के बाद उन्हें जातिवाद व अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों के खिलाफ जमकर आंदोलन किए और अस्पृश्य बच्चों के लिए न्यायसंगत और वैध नागरिकों को सुनिश्चित किया। 1937 में सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और उन्होंने विभाजन का भी पुरज़ोर विरोध किया था। 26 फरवरी 1966 को 83 वर्ष की आयु में सावरकर का निधन हुआ था।