हिज़्बुल्ला चीफ हसन नसरल्लाह की मौत पर क्यों मुस्लिम ही मना रहे जश्न, असद-ईरान कनेक्शन में छिपा है राज़

अरब जगत भी हुआ दो फाड़

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सीरिया के इदलिब में हसन नसरल्लाह की मौत का जश्न मनाते लोग

इजरायल ने लेबनान के आतंकी संगठन हिज़्बुल्ला के मुखिया हसन नसरुल्ला को मार गिराया। इसके बाद अरब जगत में भी दो फाड़ नज़र आ रहा है। जहाँ एक तरफ सऊदी अरब और UAE जैसे शक्तिशाली इस्लामी देश हैं जिन्होंने हिबजुल्ला चीफ की मौत पर चुप्पी साध रखी है, वहीं दूसरी तरफ सीरिया और ईरान जैसे देश हैं जो खुल कर इजरायल की निंदा कर रहे हैं। सुन्नी मुल्कों ने खासकर के इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। इससे पता चलता है कि मुस्लिम जगत में भी इस मुद्दे को लेकर एकता नहीं है। असल में इसका भी कारण है।

कारण ये है कि हिज़्बुल्ला को ईरान का खुला समर्थन प्राप्त था, ईरान एक शिया मुल्क है। इस घटना के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामनेई भी अंडरग्राउंड हो गए हैं। ईरान के विरोध में जितने भी देश हैं उन सबने इस पर चुप रहना ही बेहतर समझा है। हाँ, सऊदी अरब ने ज़रूर इस पर बयान दिया लेकिन उसने सिर्फ कहा कि वो लेबनान में स्थितियों को लेकर चिंतित है और मुल्क की संप्रभुता को बनाए रखना होगा। इस बयान न तो कहीं हिज़्बुल्ला का जिक्र था और न ही कहीं इसका मुखिया रहा हसन नसरल्लाह का।

असल में 2016 में खाली देशों और अरब लीग ने हिज़्बुल्ला को आतंकी संगठन घोषित कर रखा था, लेकिन पिछले वर्ष दबाव के कारण उन्होंने ये फैसला हटा दिया। क़तर, UAE और बहरीन ने भी अब तक इस पर कुछ नहीं कहा है। बहरीन में तो एक शिया मौलवी को सिर्फ इसीलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने हसन नसरल्लाह की मौत पर शोक जता दिया था। इजिप्ट के पीएम ने ज़रूर लेबनान के अपने समकक्ष से बातचीत की, लेकिन उन्होंने भी न तो हिज़्बुल्ला का नाम लिया और न ही हसन नसरल्लाह का। यानी, इस्लामी मुल्कों में विभाजन साफ़ दिख रहा है।

हसन नसरल्लाह की मौत का सबसे अधिक जश्न मनाया गया सीरिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित इदलिब शहर में। ये शहर फ़िलहाल बागियों के नियंत्रण में है। इस जश्न के पीछे का परिदृश्य समझने के लिए हमें सीरिया की राजनीति को समझना पड़ेगा। बशर अल असद सीरिया के राष्ट्रपति हैं। वो जुलाई 2000 से ही इस पद पर हैं। उससे पहले 29 वर्षों तक उनके अब्बा जनरल हाफ़िज़ अल असद इस पद पर थे। इस तरह से सीरिया में पिछले 52 वर्षों से बाप-बेटे की ही सत्ता रही है। अरब स्प्रिंग में लीबिया सहित कई मुल्कों में तख्तापलट हुआ लेकिन सीरिया बचा रहा।

इसका कारण है – सीरिया को ईरान और रूस का समर्थन। ऐसा नहीं है कि बशर अल असद के खिलाफ बगावत नहीं हुई, बल्कि अरब स्प्रिंग के दौरान वहाँ भी गृह युद्ध हुआ। 2011 में शुरू हुए इस गृह युद्ध में रूस और ईरान ने बशर अल असद को सैन्य समर्थन भी मुहैया कराया। इसके बाद सीरिया के बागी और आम लोग ईरान को अपना दुश्मन मानने लगे। ईरान से ही हिज़्बुल्ला को ही हथियारों की सप्लाई होती थी। ईरान का सहयोगी हिज़्बुल्ला भी सीरिया के युद्ध में कूद गया और ईरान की सेना के साथ मिल कर बागियों से लड़ने लगा।

बशर अल असद ने सीरिया के आम लोगों का कत्लेआम कराया। उन्हें उठा लिया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है और मार डाला जाता है। यही कारण है कि सीरिया के इस हिस्से लोग सिर्फ हसन नसरल्लाह की मौत का ही जश्न नहीं मना रहे, बल्कि ये भी कह रहे हैं कि बशर अल असद भी एक दिन इसी तरह मारे जाएँगे। सीरिया के लोगों को इस बात का अफ़सोस है कि हिज़्बुल्ला के मुखिया को इजरायल ने मारा, उन्होंने नहीं। इदलिब में लोग हॉर्न बजा रहे हैं, चॉकलेट बाँट रहे हैं, पटाखे फोड़ रहे हैं और फायरिंग कर रहे हैं।

एक शख्स ने तो बताया कि वो इस घटना के बाद ख़ुशी के मारे रोने लगा। ऊपर से इदलिब जैसे शहरों की स्थिति भी तो देखिए। वहाँ न इंफ़्रास्ट्रक्चर है और न ही किसी योजना का लाभ वहाँ तक पहुँचता है। इसके लिए लोग सत्ताधीश को ही दोषी मानते हैं। अलेप्पो समेत कई शहरों का नियंत्रण बशर अल असद को वापस दिलाने में हिज़्बुल्ला का भी हाथ था। पहले हिज़्बुल्ला ने शिया मजहबी स्थलों की सुरक्षा के लिए अपनी उपस्थिति का दावा किया, लेकिन फिर सुन्नी लोगों का अत्याचार शुरू हो गया। इसीलिए, आज झंडा लिए सीरिया के लोग खुश होकर सड़कों पर हैं।

इदलिब में अधिकतर ऐसे लोग हैं जो पलायन कर के आए हैं। ये लोग केवल आज ही जश्न नहीं मना रहे, बल्कि कुछ दिनों पहले जब हजारों पेजरों में एक साथ इजरायल ने ब्लास्ट कराया था और हिज़्बुल्ला के कई सदस्य घायल हुए थे और कई मारे गए थे – तब भी सीरिया के इस हिस्से में लोग जश्न मनाने के लिए उतरे थे। सीरिया में कई ऐसे लोग हैं जो बशर अल असद के नियंत्रण वाले इलाक़ों में होने के कारण खुल कर ख़ुशी नहीं मना सकते, लेकिन वो इस घटना से खुश हैं।

भारत, जिसका इस घटना से कुछ लेना-देना नहीं है – वहाँ जम्मू कश्मीर से लेकर लखनऊ तक मुस्लिम भीड़ सड़कों पर हसन नसरल्लाह की तस्वीरों के साथ उतर कर शोक मना रही है और नारे लगा रही है। जबकि सीरिया जैसे इस्लामी मुल्कों में अलग नज़ारा है। अगर लेबनान की ही बात करें तो वहाँ शिया और सुन्नी समुदाय की जनसंख्या 30-30 प्रतिशत है, वहाँ के सुन्नी भी इस घटना पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं, शांत हैं। दुनिया भर के मुस्लिम समाज की बात करें तो अनुमानों के हिसाब से सुन्नी जहाँ 87% हैं वहीं शिया 13% – शिया बहुल कुछ ही मुल्क हैं।

ये चीजें बताती हैं कि ये मामला सिर्फ इस्लाम का नहीं बल्कि पॉलिटिकल इस्लाम का है, जहाँ स्वार्थ पहले है। बशर अल असद भी शिया समुदाय से हैं, और उनके समाज की जनसंख्या सीरिया में काफी कम है। जहाँ सुन्नी 75% से भी अधिक हैं, शिया 15% से भी कम। हालाँकि, फिर भी ये मुस्लिम इजरायल की निंदा करने के लिए समय-समय पर एक हो जाते हैं। लेकिन, इस बार जो विभाजन इनमें दिख रहा है आगे इसमें अभी बहुत कुछ घटनाक्रम बाकी है। सऊदी अरब और UAE जैसे अमीर मुल्कों के रुख पर नज़र है।

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