सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी, हाथ में तलवार नहीं संविधान, CJI चंद्रचूड़ की ऐतिहासिक पहल

भारत में अंग्रेजों के समय से न्याय की देवी की यह मूर्ति प्रचलन में थी। यूनान की न्याय की देवी जस्टिया से इसे लिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की आंखों से हटी पट्टी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऐतिहासिक पहल की है। अब न्याय की देवी की नई प्रतिमा में आंखों पर लगी पट्टी हट गई है। वहीं हाथों में तलवार की जगह संविधान की किताब है। इस निर्णय और तस्वीर के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट ट्रेंड करने लगा। बहुत से यूजर्स ने सीजेआई चंद्रचूड़ के इस कदम का तहेदिल से स्वागत किया है। न्याय की देवी की नई मूर्ति के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश को प्रतीकात्मक संदेश दिया है। सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल अगले महीने पूरा हो रहा है। वह 10 नवंबर 2024 को पद से रिटायर हो रहे हैं। सीजेआई की इस अनूठी पहल को जमकर सराहा जा रहा है।

चंद्रचूड़ ने दिया प्रतीकात्मक संदेश

न्याय की देवी की मूर्ति को बदलकर चीफ जस्टिस ने प्रतीकात्मक संदेश दिया है। नई मूर्ति की आंखों से पट्टी हटाने का अर्थ कहीं न कहीं यह भी है कि कानून अंधा नहीं है। पुरानी मूर्ति में अंधा कानून और सजा को दर्शाने के लिए जो प्रतीक था, वह समय के मुताबिक फिट नहीं बैठ रहा था। नई मूर्ति से न्यायिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ने का भी संकेत है। न्याय की देवी की नई मूर्ति को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में रखा गया है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने इसे बनाने का आदेश स्वयं दिया था।

न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में रखी गई नई मूर्ति

मूर्ति में तराजू अब भी मौजूद

न्याय की देवी की मूर्ति में तराजू अब भी मौजूद है। वहीं तलवार की जगह संविधान की किताब ने ली है। तलवार का संदेश था कि कानून के पास अपराध करने वालों को सजा देने की शक्ति है। मूर्ति के एक हाथ में तराजू पहले जैसे है। तराजू न्याय में संतुलन का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि किसी भी अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले अदालत दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का मौका देती है और उसे ध्यान से सुना जाता है।

कहां से ली गई न्याय की देवी की मूर्ति?

न्याय की देवी असल में यूनान की देवी हैं। उनका नाम जस्टिया है। यूनान की इसी न्याय की देवी के नाम से ‘जस्टिस’ शब्द आया है। उनकी आंखों पर बंधी पट्टी का अर्थ है कि न्याय हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए। अंग्रेजों के शासन के दौरान 17वीं शताब्दी में पहली बार यह मूर्ति भारत लाई गई थी। इसे लाने वाले अंग्रेज अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे। धीरे-धीरे 18वीं शताब्दी आने तक न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से प्रयोग किया जाने लगा। भारत ने भी 1947 में आजादी हासिल करने के बाद न्याय के इसी प्रतीक को अपनाया।

आंखों पर पट्टी क्यों बंधी थी?

अब सवाल उठता है कि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी क्यों थी? इसका तात्पर्य किसी को देखकर न्याय करने पर एक पक्ष के साथ जाना हो सकता है। वहीं आंखों पर पट्टी बंधे होने का अर्थ है कि इंसाफ की देवी सदैव निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी। जस्टिया की मूर्ति के जरिए दिखाया गया था कि सच्चा न्याय निष्पक्ष और बिना किसी भेदभाव के होना चाहिए।

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