लखनऊ: कहां तो यूपी उपचुनाव में कांग्रेस पांच सीटों की मांग कर रही थी और अब तकनीकी रूप से वह एक भी सीट नहीं लड़ेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि समाजवादी पार्टी ने घोषणा की है कि उपचुनाव की सभी 9 सीटों पर साइकिल सिंबल पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी लड़ेंगे। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ जब राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी के साथ वायनाड में व्यस्त थे। एक ओर प्रियंका वायनाड लोकसभा सीट पर अपना पर्चा दाखिल कर रही थीं, दूसरी ओर अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया कि सभी 9 सीटों पर सपा सिंबल के साथ चुनाव लड़ा जाएगा। माना जा रहा है कि अखिलेश ने कांग्रेस के साथ खेल कर दिया है। हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस को क्षेत्रीय दल आईना दिखाने का काम कर रहे हैं। यूपी उपचुनाव का ताजा घटनाक्रम उसी का नतीजा माना जा रहा है।
कांग्रेस की तारीफ, वहीं 1 सीट लायक भी नहीं समझा
सवाल यह उठ रहा है कि जो अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें दे सकते हैं, वही उपचुनाव में क्यों राहुल गांधी की पार्टी की अपरोक्ष रूप से अनदेखी करते हैं। एक तरफ तो अखिलेश यादव कांग्रेस की तारीफ करते हैं, कहते हैं कि कांग्रेस के साथ आने से सपा की ताकत कई गुना बढ़ गई, वहीं दूसरी ओर उसको एक सीट लायक भी नहीं समझ रहे हैं। अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘बात सीट की नहीं जीत की है। इस रणनीति के तहत इंडिया गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल के निशान पर चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक बड़ी जीत के लिए एकजुट होकर, कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी है। इंडिया गठबंधन इस उपचुनाव में, जीत का एक नया अध्याय लिखने जा रहा है।‘
‘बात सीट की नहीं जीत की है’ इस रणनीति के तहत ‘इंडिया गठबंधन’ के संयुक्त प्रत्याशी सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ के निशान पर चुनाव लड़ेंगे।
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक बड़ी जीत के लिए एकजुट होकर, कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ी है। इंडिया गठबंधन इस…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) October 23, 2024
अखिलेश यादव ने एक्स पर आगे लिखा, ‘कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ आने से समाजवादी पार्टी की शक्ति कई गुना बढ़ गई है। इस अभूतपूर्व सहयोग और समर्थन से सभी 9 विधानसभा सीटों पर इंडिया गठबंधन का एक-एक कार्यकर्ता जीत का संकल्प लेकर नयी ऊर्जा से भर गया है। ये देश का संविधान, सौहार्द और PDA का मान-सम्मान बचाने का चुनाव है। इसीलिए हमारी सबसे अपील है: एक भी वोट न घटने पाए, एक भी वोट न बंटने पाए। देशहित में इंडिया गठबंधन की सद्भाव भरी ये एकता और एकजुटता आज भी नया इतिहास लिखेगी और कल भी।‘
2027 तक चल पाएगी कांग्रेस-सपा की दोस्ती?
अब एक सवाल उठता है कि जो समाजवादी पार्टी 2027 में जीत का दावा कर रही है, उसके साथ क्या कांग्रेस की दोस्ती चल पाएगी? अखिलेश ने जिस तरह सभी सीटों पर सपा सिंबल के साथ जाने का ऐलान किया है, कहीं वह हरियाणा विधानसभा चुनाव का साइड इफेक्ट तो नहीं है। इंडिया अलायंस की कई पार्टियों ने हरियाणा में हार के बाद कहा था कि कांग्रेस ने अपने अहंकार में क्षेत्रीय पार्टियों को वहां साथ नहीं लिया। शिवसेना यूबीटी के संजय राउत ने कहा था कि अगर आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया होता तो नतीजे कुछ और रहते। अब चूंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत है, ऐसे में उसने उपचुनाव में ‘खेला’ कर दिया। उमर अब्दुल्ला के शपथग्रहण में श्रीनगर गए अखिलेश यादव ने कहा था, ‘हरियाणा में कांग्रेस की हार हम सबके लिए एक सबक है। वहां जीत रही कांग्रेस हार गई और हार रही बीजेपी जीत गई। झारखंड में हमारा संगठन बहुत मजबूत नहीं है। महाराष्ट्र में हमारे दो विधायक हैं और हम वहां अधिक सीटों पर लड़ना चाहते हैं।’
यूपी में नाम के लिए इंडिया गठबंधन
जमीन पर देखा जाए तो अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की बात करते हैं। नाम के लिए इंडिया गठबंधन है और चुनावी मैदान में सपा के उम्मीदवार खड़े हैं। अखिलेश यादव भले संदेश दे रहे हैं कि कांग्रेस और सपा कंधे के साथ कंधा मिलाकर खड़े हैं लेकिन क्या यह हकीकत में है? कोई भी गठबंधन तभी तक जमीन पर काम करता है, जब तक दोनों में सीटों के बंटवारे को लेकर बातें साफ होती हैं। अगर लोकसभा चुनाव के मुताबिक भी देखें तो करीब 25 प्रतिशत सीटें कांग्रेस को मिलनी चाहिए। उस हिसाब से दो सीटों पर तो कांग्रेस का उम्मीदवार उतरना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है।
गठबंधन की गांठ ऐसे ही खुलती है
जब इतनी कम सीटों पर सपा-कांग्रेस में बात नहीं बन पाई, तो इस बात की क्या गारंटी है कि 403 सीटों पर दोनों दलों की दोस्ती कायम रह पाएगी? 2027 के विधानसभा चुनाव में भले ही दो साल है लेकिन गठबंधन की गांठ इसी तरह की अनबन से खुलती है। 2027 से पहले अखिलेश यादव के सामने उपचुनाव में अच्छे प्रदर्शन की चुनौती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा यूपी में सबसे ज्यादा 37 सीटों पर जीती थी। वहीं बीजेपी को 33 सीटों पर कामयाबी मिली थी। कांग्रेस को सपा के साथ गठबंधन में 6 सीटें मिली थीं। वहीं बीजेपी की सहयोगी आरएलडी को 2 और अपना दल (एस) को एक सीट मिली थी।
यूपी में किन सीटों पर उपचुनाव?
यूपी में विधानसभा की 9 सीटों पर उपचुनाव का ऐलान हुआ है। 13 नवंबर को इन सीटों पर मतदान होना है, वहीं चुनाव का नतीजा 23 नवंबर को घोषित होगा। फूलपुर, गाजियाबाद, मझवां, खैर, मीरापुर, सीसामऊ, कटेहरी, करहल और कुंदरकी विधानसभा सीटों उपचुनाव है। कानपुर की सीसामऊ सीट के अलावा बाकी सीटें विधायकों के सांसद बन जाने की वजह से खाली हुई हैं। सीसामऊ से सपा नेता इरफान सोलंकी के सजायाफ्ता हो जाने की वजह से उपचुनाव हो रहा है। अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर अभी कोई ऐलान नहीं हुआ है। यहां से विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने सपा के टिकट से फैजाबाद लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी।