महायुति की ‘महाजीत’ का वो ‘महानायक’ जो TV और सोशल मीडिया में दिखा ही नहीं: विदेशी कंपनी में नौकरी छोड़ बने RSS प्रचारक

इंजीनियर की नौकरी छोड़ अतुल लिमये बने थे संघ के प्रचारक

अतुल लिमये संघ महाराष्ट्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अतुल लिमये

बीते कुछ वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिली है। उद्धव ठाकरे के सीएम बनने और फिर शिवसेना और एनसीपी के दो फाड़ होने से लेकर महायुति के सत्ता में वापस आने तक का क्रम बड़ा ही रोचक रहा। विधानसभा चुनाव में अब एक बार फिर महायुति को बड़ी जीत मिली है। इस चुनाव में महायुति को 231 सीटें मिली थीं। इसमें से 132 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है। इस चुनाव में भाजपा की जीत के यूं तो कई फैक्टर रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने महाराष्ट्र में ताबड़तोड़ रैलियां कीं। इस दौरान ‘बटेंगे तो कटेंगे’ से लेकर ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों ने भाजपा के पक्ष में एकतरफा माहौल बनाने का काम किया और इन पर लगातार चर्चा भी जारी है। हालांकि इन सबके बीच पर्दे के पीछे काम करने वालों और रणनीति बनाने वाले चेहरों के बारे में बात न के बराबर हो रही है।

दरअसल, राजनीति सिर्फ नेताओं नहीं बल्कि रणनीति बनाने वाले लोगों और रणनीतियों को जमीनी स्तर तक पहुंचाने वालों का खेल है। दुनिया के सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को दोनों ही स्तर पर बेहतरीन काम करने के लिए जाना जाता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी संघ का ही जादू चला है। महा विकास अघाड़ी (MVA) के नेताओं द्वारा दिए गए बयानों को सही तरीके से भुनाने और उसे आम जनता तक पहुंचाने के काम को आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने बखूबी अंजाम दिया। आरएसएस की इस ‘विशेष टीम’ के ‘ध्वज वाहक’ रहे RSS पश्चिम प्रांत के प्रमुख एवं सह सरकार्यवाह अतुल लिमये।

अतुल लिमये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सबसे युवा सह सरकार्यवाह हैं। 54 वर्षीय अतुल लिमये महाराष्ट्र के नासिक से आते हैं। महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार के अतुल लिमये ने इंजीनियरिंग करने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनी में बतौर इंजीनियर काम कर रहे थे। लेकिन संघ से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और महज 24 साल की उम्र में ही संघ के प्रचारक बन गए। इस तरह से वह सीधे तौर पर आम जनता से मिलकर संगठन को खड़ा करने का काम के लिए काम करने लगे। शुरुआत में उन्होंने रायगढ़ और कोंकण जैसे पश्चिमी महाराष्ट्र के क्षेत्रों में काम किया इसके बाद उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए उन्हें मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र को शामिल करते हुए देवगिरि प्रांत का सह प्रांत प्रचारक नियुक्त कर दिया गया।

गौरतलब है कि साल 2014 में जब प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में आई थी, तब अतुल लिमये महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा के प्रभारी थे। इसके अलावा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उन्होंने पश्चिम महाराष्ट्र में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इसका परिणाम ही था कि जीन सीटों में भाजपा हमेशा से कमजोर थी, वहां भी भाजपा को जीत मिली थी। महाराष्ट्र समेत देश के अन्य राज्यों में काम करने के चलते अतुल लिमये आम जनता की समस्याओं और भावनाओं को अच्छी तरह समझने लग गए थे। इसलिए उन्हें संघ ने प्रमोट करते हुए जल्द ही क्षेत्र प्रचारक का दायित्व भी दे दिया था।

महाराष्ट्र में लगातार काम करने और संगठन में नए लोगों को शामिल करने के दौरान उन्हें राजनीति की अच्छी और गहरी समझ हो गई थी। इस दौरान उन्हें भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता तक की ताकत और कमजोरियां ही नहीं बल्कि विपक्षी नेताओं को भी हर स्तर तक समझने लगे थे। इस समझने ने उन्हें रिसर्च सेंटर और थिंक टैंक की स्थापना करने में मदद की। इसके अलावा उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बढ़ती जनसंख्या के चलते समाज पर पढ़ रहे प्रभावों को आम जनता तक सफलता पूर्वक पहुंचाया।

यही नहीं, मराठा नेताओं को विश्वास में लेकर उन्होंने सीधे तौर पर ओबीसी वोट बैंक को साधने का काम किया। इतना ही नहीं जाति जनगणना के मुद्दे को काटने के लिए हिन्दुत्व को आधार बनाया। सीएम योगी के नारे ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का विपक्ष जितना अधिक विरोध कर रहा था, अतुल लिमये की टीम इस मुद्दे को उतना ही तेजी से उपयोग कर महायुति के पक्ष में माहौल बना रही थी।

इन सब रणनीतियों के चलते ही एक्ट्रेस स्वरा भास्कर के शौहर और शरद पवार की एनसीपी के उम्मीदवार फहाद अहमद तक चुनाव हार गए। इतना ही नहीं चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे 420 मुस्लिम उम्मीदवारों में महज 13 ही जीते हैं। वहीं हारने वालों में कई बड़े चेहरे शामिल हैं। यूं तो भाजपा की रणनीति के चलते एक के बाद कई राज्यों में एंटी इनकम्बेंसी लगभग फेल होती हुई नजर आ रही है। लेकिन राजनीतिक पंडित महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा या महायुती को इतनी बड़ी जीत का दावेदार नहीं मान रहे थे।

यहां तक कि ज्यादातर ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में भी भाजपा को 100 के आसपास और महायुती को 150 के आसपास सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा था। लेकिन जब रिजल्ट सामने आया तो एग्जिट पोल की पोल एक बार फिर खुल गई और महायुती ने रणनीति के दम पर प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी की है। अब महाराष्ट्र में अगले सीएम एकनाथ शिंदे हों या देवेन्द्र फडणवीस या कोई और लेकिन एक बात तो साफ है कि रणनीतिकारों की रणनीति और उसे सफलता पूर्वक अंजाम देने में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई सानी है।

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