छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राज्य के सभी मस्जिदों को जुमे की नमाज के दौरान होने वाले ख़ुतबों या तकरीर (भाषण) से पहले बोर्ड से स्वीकृति लेने का निर्देश दिया है। वक्फ बोर्ड ने यह फैसला मस्जिदों में होने वाली राजनीतिक बातों को रोकने के लिए लिया है।
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड द्वारा मुतवल्ली (मस्जिद की देखरेख करने वाले) व इमामों को एक लेटर जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि वे बोर्ड की अनुमति के बिना कोई भी ख़ुतबा (भाषण) न दें। वक्फ बोर्ड का कहना है कि मस्जिदें धार्मिक शिक्षा की जगह राजनीतिक विषयों की ओर बढ़ रही हैं।
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के नए चेयरमैन और बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख सलिम राज ने मस्जिदों को राजनीति से दूर रखने के महत्व पर जोर दिया है। एक बयान में उन्होंने मस्जिदों में होने वाले ‘सरकार विरोधी’ भाषणों की रिपोर्टों को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा कि धार्मिक स्थानों को राजनीतिक मंच नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा, “मस्जिदों में इस्लाम, उसकी शिक्षाओं और अल्लाह के संदेश पर बात की जानी चाहिए। राजनीति तो नेताओं के लिए छोड़ देनी चाहिए।”
वक्फ बोर्ड का यह निर्देश इस शुक्रवार से छत्तीसगढ़ के 3,800 से अधिक मस्जिदों में लागू होगा। हालांकि कांग्रेस और AIMIM ने इस फैसले को गलत बताया है। AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा, “अब भाजपाई हमें बताएंगे कि दीन क्या है? क्या हमें अपने दीन पर चलने के लिए अब इनसे इजाज़त लेनी होगी?” उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड के पास ऐसी कोई कानूनी ताकत नहीं है और यदि ऐसा होता भी तो यह संविधान के अनुच्छेद 25 के खिलाफ होता।”
वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड के पास इस बात का अधिकार नहीं है कि वह यह तय करे कि ख़ुतबे में क्या बोला जाए और क्या नहीं।
भाजपा प्रवक्ता ने वक्फ बोर्ड के इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि मस्जिदों का राजनीतिक या देशविरोधी गतिविधियों के लिए दुरुपयोग रोकने के लिए यह कदम जरूरी था।
गौरतलब है कि मस्जिदों से कई बार राजनीतिक बातें होती हैं, इनमें से कुछ उकसावे वाली भी होती हैं। कट्टरपंथी मौलाना युवाओं को बरगलाकर भी कई बार गलत रास्तों में भेज देते हैं। ऐसे में यह फैसला देश भर के वक्फ बोर्डों के लिए नजीर बन सकता है और वह भी आगे आकर इस तरह की तकरीर पर रोक लगाएं।