‘महाराष्ट्र के मुखिया’: आंखों के सामने दुनिया छोड़ गए बेटा-बेटी, ऑटो चलाने वाले शिंदे ऐसे बने मुख्यमंत्री

2004 में शिंदे ने पहली बार ठाणे विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वे पहली ही कोशिश में चुनाव जीते में सफल भी रहे

शिंदे के बेटा और बेटी उनकी आंखों के सामने सतारा में डूबकर मर गए थे जिसके बाद वे एकांतप्रिय हो गए थे और राजनीति छोड़ने का मन बना लिया था।

शिंदे के बेटा और बेटी उनकी आंखों के सामने सतारा में डूबकर मर गए थे जिसके बाद वे एकांतप्रिय हो गए थे और राजनीति छोड़ने का मन बना लिया था।

उद्धव ठाकरे ने अक्टूबर 2019 में अपनी विचारधारा से अलग जाकर कांग्रेस व एनसीपी के साथ सरकार बना ली थी और खुद ठाकरे परिवार के पहले मुख्यमंत्री बन गए थे। इसके बाद सरकार चलाते हुए उद्धव के सामने कोविड-19 और सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के बाद बने माहौल से चुनौती सामने आईं लेकिन असल समस्या उनकी पार्टी के भीतर चल रही थी। पार्टी के कई नेता बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा छोड़ने का आरोप लगाते हुए अंदर ही अंदर धधक रहे थे और उद्धव को शायद इसका अंदाजा भी नहीं था।

जून 2022 आते-आते नेताओं की नाराजगी का यह ज्वालामुखी फूट गया। 20 जून को शिवसेना के दूसरे सबसे बड़े नेता माने जाने वाले एकनाथ शिंदे कई विधायकों के साथ सरकार के संपर्क से बाहर हो गए थे। कभी ऑटो ड्राइवर रहे शिंदे इस बगावत के बाद बीजेपी के साथ मिल गए और 30 जून 2022 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। महाराष्ट्र के मुखिया में आज कहानी एकनाथ शिंदे की।

पढ़ाई छोड़कर ऑटो चलाने लगे थे शिंदे

महाराष्ट्र में 9 फरवरी 1964 को जन्मे एकनाथ शिंदे सतारा जिले के जवाली तालुका के एक गांव से आते हैं और मराठी समुदाय से हैं। शिंदे का परिवार मुंबई के बाहरी इलाके में ठाणे चला गया था। उन्होंने 11वीं कक्षा तक ठाणे में ही पढ़ाई की, इसके बाद उन्होंने परिवार की मदद करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी थी। इसके बाद वागले एस्टेट इलाके में रहकर ऑटो रिक्शा चलाने लगे थे। हालांकि, 2014 के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू की और 2020 में यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र मुक्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। ऑटो चलाते-चलाते शिंदे अस्सी के दशक में शिवसेना से जुड़े गए थे और उन्होंने पार्टी के एक आम कार्यकर्ता के तौर पर सियासी सफर शुरू किया था। शिंदे को मार्च 2023 में डी.वाई. पाटिल विश्वविद्यालय ने डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान की थी।

पार्षद से मंत्री तक का सफर

शिवसेना में शामिल होने के बाद शिंदे को पार्टी के मजबूत नेता आनंद दिघे का मार्गदर्शक मिला और वे बालासाहेब ठाकरे के संपर्क में भी आए। ठाणे क्षेत्र के शिवसेना के बड़े नेता आनंद दिघे को उनका गुरु माना जाता है। शिवसेना में करीब डेढ दशक तक काम करने के बाद 1997 में आनंद दिघे ने शिंदे को ठाणे नगर निगम के चुनाव में पार्षद का टिकट दिया उन्होंने ना केवल यह चुनाव जीता बल्कि वे ठाणे नगर निगम के हाउस लीडर भी बन गए।

शिंदे के बेटा और बेटी उनकी आंखों के सामने सतारा में डूबकर मर गए थे जिसके बाद वे एकांतप्रिय हो गए थे और राजनीति छोड़ने का मन बना लिया था। उस दौरान वे पार्षद थे लेकिन आनंद दिघे उन्हें फिर से सार्वजनिक जीवन में वापस लेकर आए थे। इसके बाद दोबारा साल 2002 में दूसरी बार निगम पार्षद बने और इसके अलावा वे 3 वर्षों तक स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य भी रहे।

2004 में शिंदे ने पहली बार ठाणे विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वे पहली ही कोशिश में चुनाव जीते में सफल भी रहे। इस बीच 2005 में शिवसेना के बड़े नेता नारायण राणे ने शिवसेना छोड़ दी जिसके बाद शिंदे का पार्टी में कद और बढ़ गया। वहीं, राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने के बाद वे ठाकरे परिवार के करीबी बन गए और उद्धव के साथ खड़े थे। 2009 में वे कोपरी-पचपाखड़ी विधानसभा क्षेत्र के विधायक चुने गए और लगातार वहीं से विधायक हैं। 2014 में वे पहली बार मंत्रिमंडल में शामिल हुए और उन्हें लोक निर्माण विभाग का प्रभार दिया गया। वहीं, 2019 में उन्हें लोक निर्माण के साथ शहरी विकास मंत्रालय का प्रभार भी दिया गया था।

2022 की बगावत की पूरी कहानी

एकनाथ शिंदे और शिवसेना के बीच दूरी बनने की सबसे बड़ी वजह उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को माना जाता है। महाविकास अघाड़ी की सरकार में जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने तो कुछ अहम मंत्रालय ही शिवसेना को मिले थे। इनमें से एक नगर विकास मंत्रालय था जो शिंदे को दिया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आदित्य ठाकरे पर्यावरण मंत्री थे लेकिन शिंदे के मंत्रालय पर भी उन्होंने अधिकार कर लिया था। मुंबई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट सोसाइटी अथॉरिटी की जिन बैठकों को लेने का जिम्मा शिंदे के पास था उन्हें आदित्य ठाकरे लेने लगे थे। मंत्रालय के कई फैसले आदित्य लेते और शिंदे के पास साइन करवाने के लिए सिर्फ फाइल भेज दी जाती थी।

इसकी भी चर्चा थी कि शरद पवार रिमोट कंट्रोल से सरकार चला रहे हैं और यह बात शिवसेना विधायकों को रास नहीं आ रही थी। विधायकों को लगने लगा कि पार्टी को कमजोर किया जा रहा है और यहीं से शिवसेना में बगावत का बीज पड़ गया। यह अंदरूनी कलह धीरे-धीरे बढ़ती गई। महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव के बाद 20 जून 2022 की शाम शिंदे कुछ विधायकों के साथ संपर्क से बाहर हो गया था। बताया जाता है कि इससे पहले उन्हें शिवसेना की एक मीटिंग में शामिल नहीं होने दिया गया था और इसके बाद उन्होंने देवेंद्र फडणवीस को फोन कर खुद पार्टी छोड़ने की बात बताई थी जिसके बाद फडणवीस ने गृह मंत्री से संपर्क किया था।

उद्धव का इस्तीफा और CM बने शिंदे

21 जून को शिंदे को शिवसेना के विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया और 22 जून को उन्होंने गुवाहाटी के एक होटल से 40 से अधिक शिवसेना और 7 निर्दलीय विधायकों के साथ फोटो जारी कर शक्ति प्रदर्शन किया था। 23 जून को बागी खेमे ने शिंदे को विधायक दल का नेता घोषित किया और 29 जून उद्धव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उद्धव के इस्तीफा देने के 24 घंटों के भीतर एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और देवेंद्र फडणवीस उनकी सरकार में उप-मुख्यमंत्री के तौर पर शामिल हुए। 4 जुलाई को शिंदे ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया। अक्टूबर 2022 में असली शिवसेना से जुड़ा विवाद चुनाव आयोग के पास पहुंचा और फरवरी 2023 में चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को पार्टी का नाम ‘शिवसेना’ और चुनाव चिह्न ‘घनुष और तीर’ रखने का आदेश दिया।

2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिंदे गुट के पास बालासाहेब ठाकरे की विरासत को संभालने की चुनौती है, लोकसभा चुनावों में उन्होंने उद्धव गुट को कड़ी चुनौती दी और उस गुट से बेहतर प्रदर्शन किया था। इस बार वे बीजेपी और एनसीपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है।

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