‘महाराष्ट्र के मुखिया’: ‘जल क्रांति’ के जनक सुधाकरराव जिन्हें मुंबई के दंगे ना रोक पाने पर देना पड़ा था इस्तीफा

सुधाकरराव नाईक महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक के भतीजे थे

सुधाकरराव नाईक को मुंबई के माफिया की कमर तोड़ने के लिए भी याद किया जाता है

सुधाकरराव नाईक को मुंबई के माफिया की कमर तोड़ने के लिए भी याद किया जाता है

चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 1991 में लोकसभा चुनाव हो रहे थे और चुनावी अभियान के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। उस समय महाराष्ट्र में शरद पवार सत्ता में थे। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद शरद पवार का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आया लेकिन सोनिया गांधी के समर्थन वाले पीवी नरसिम्हा राव ने बाजी मार ली। इसके बाद शरद पवार रक्षा मंत्री के तौर पर नरसिम्हा राव की सरकार में शामिल हो गए। पवार के केंद्र सरकार में शामिल होने के बाद सुधाकरराव राजूसिंह नाईक को महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री घोषित किया गया। सुधाकरराव महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक के भतीजे थे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों की सीरीज में आज कहानी सुधाकरराव नाईक की।

मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने का सफर

महाराष्ट्र के यवतमाल क्षेत्र के गहुली गांव में 21 अगस्त 1934 को एक बंजारा आदिवासी परिवार में सुधाकरराव नाईक का जन्म हुआ था। महाराष्ट्र के अमरावती में विदर्भ महाविद्यालय से नाईक ने अपनी शिक्षा पूरी की। सुधाकरराव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत सरपंच के रूप में की और वे गहुली गांव के सरपंच चुने गए थे इसके बाद वे जिला परिषद अध्यक्ष, राज्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री जैसे पदों पर होते हुए राज्य के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। 1976 में वह कांग्रेस के टिकट पर महाराष्ट्र विधान परिषद के लिए चुने गए और 2 वर्ष बाद 1978 के चुनाव में पुसद विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।

इससे पहले उनके चाचा और पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक पुसद सीट से कई बार विधायक रहे थे। सुधाकरराव महाराष्ट्र में अलग-अलग सरकारों में आवास, पशुपालन व मत्स्य पालन, उद्योग, राजस्व व सामाजिक कल्याण और ऊर्जा जैसे विभागों के मंत्री रहे और 1990-91 में वे शरद पवार के नेतृत्व वाली सरकार में राजस्व और संसदीय मामलों के मंत्री थे। शरद पवार के केंद्र सरकार में शामिल होने के बाद 25 जून 1991 को सुधाकरराव ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

मुंबई में माफिया की कमर तोड़ दी

सुधाकरराव ने अपने कार्यकाल के दौरान किसानों की फसल ऋण की ब्याज दरों में कटौती करने, महिला एवं बाल कल्याण विभाग और महिला आयोग की स्थापना करने, लड़कियों की शिक्षा फीस माफ करने जैसे बड़े फैसले लिए और आधुनिक इंजीनियरिंग शिक्षा की नींव भी रखी। सुधाकरराव को अपने कार्यकाल के दौरान मुंबई से माफिया राज खत्म करने के लिए भी जाना जाता है।

सुधाकरराव ने गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम से जुड़े अलग-अलग माफिया डॉन पर नकेल कसी थी। गैंगस्टर प्रवृत्ति वाले राजनेताओं के खिलाफ भी उन्होंने कड़ी कार्रवाई की थी। सुधाकरराव ने पप्पू कालानी को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया और उनके खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों की जांच के आदेश दिए। माना जाता था कि कालानी के दाऊद इब्राहिम से संबंध थे। 1992 में कालानी को टाडा के तहत जेल में डाल दिया गया था। इससे उनकी छवि लोगों के बीच एक सख्त प्रशासक की भी बन गई थी।

महाराष्ट्र में ‘जल क्रांति के जनक’ सुधाकरराव

सुधाकरराव को महाराष्ट्र में ‘जल क्रांति के जनक’ के रूप में जाना जाता है उन्होंने राज्य में सूखे को हमेशा के लिए खत्म करने के उद्देश्य से एक स्वतंत्र जल संरक्षण विभाग बनाया था। सुधाकरराव ने एक बार चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर जल संरक्षण का काम नहीं किया गया तो आने वाले समय में महाराष्ट्र रेगिस्तान बन जाएगा। 2016 में केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने भी उनके जल संरक्षण के कार्यों की तारीफ की थी। गडकरी ने कहा था, “मैं हमेशा सुधाकरराव नाईक का जल संरक्षण पर उनके काम के लिए बहुत सम्मान करता हूं।” तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने जल संरक्षण के क्षेत्र में ऐतिहासिक कार्यों की याद में सुधाकरराव के स्मृति दिवस को ‘जल संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। उन्होंने राज्य में छोटे तालाबों और बांधों के निर्माण को बल दिया और वे जीवन के आखिरी दौर तक जल संरक्षण के कार्यों में लगे रहे।

मुंबई दंगों को लेकर दिया इस्तीफा

सुधाकरराव के कार्यकाल के दौरान मुंबई दंगों हुए थे और उन्हें ना संभाल पाने को लेकर उनकी आलोचना की जाती है। अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद मुंबई में दंगे भड़क उठे थे और दिसंबर 1992 व जनवरी 1993 के दौरान दो अलग-अलग चरणों में हुए दंगों में 900 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। 1998 में जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्णा रिपोर्ट में कहा गया था कि दंगों के दौरान सुधाकरराव का नेतृत्व ‘अशक्त’ था। दंगों के बाद बनी गंभीर स्थिति को नियंत्रण में ना ला पाने और शरद पवार से बढ़ते मतभेदों के चलते उन्हें फरवरी 1993 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।

जुलाई 1994 से सितंबर 1995 के बीच सुधाकरराव ने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया और 1998 के लोकसभा चुनावों में वे कांग्रेस के टिकट पर वाशिम से सांसद चुने गए थे। 1999 में सुधाकरराव कांग्रेस से इस्तीफा देकर शरद पवार द्वारा बनाई गई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल हो गए थे। सुधाकरराव का 10 मई 2001 को दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में निधन हो गया था।

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