कैसे असाधारण है अमेरिकी चुनाव परिणाम?

अमेरिकी इतिहास में 1892 में ग्रोवर क्लीवलैंड ही ऐसे राष्ट्रपति हुए जो 4 वर्ष के बाद फिर से चुने गए थे, ट्रंप ऐसे दूसरे व्यक्ति बने हैं

ट्रंप ने अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाया और कमला हैरिस पिछले चुनाव में जो बाइडन के मत की भी बराबरी नहीं कर पाईं।

ट्रंप ने अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाया और कमला हैरिस पिछले चुनाव में जो बाइडन के मत की भी बराबरी नहीं कर पाईं।

डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US Presidential Election) जीतने का विश्लेषण अभी लंबे समय तक जारी रहेगा। डोनाल्ड ट्रंप और उनके साथ अमेरिका ने भी इतिहास निर्माण कर दिया। हर चुनाव में एक पक्ष जीतता और दूसरा हारता है लेकिन इसके मायने होते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की विजय और डेमोक्रेट कमला हैरिस (Kamala Harris) की पराजय के साथ अमेरिकी इतिहास में एक नए दौर की शुरुआत हुई है। जिस डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका में केवल डेमोक्रेट ही नहीं उनकी अपनी पार्टी, मीडिया, पूंजीपतियों, थिंक टैंक, विश्वविद्यालयों आदि का एक बड़ा समूह समाप्त करने के लिए पूरी शक्ति लगा चुका हो वह वापस आकर इन सबको चुनौती दे और जीत का झंडा गाड़ दे तो इसे किसी दृष्टि से साधारण घटना नहीं माना जा सकता।

मतदान समाप्त होने के साथ ही ट्रंप ने लिखा कि आज रात अमेरिका के लोगों ने बदलाव के लिए स्पष्ट जनादेश दिया। ट्रंप और कमला हैरिस के बीच माना जा रहा था कि कांटे की टक्कर है। परिणाम ने इसे गलत साबित कर दिया। ट्रंप ने अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाया और कमला हैरिस पिछले चुनाव में जो बाइडन के मत की भी बराबरी नहीं कर पाईं। 2020 में जिस जॉर्जिया से ट्रंप अत्यंत कम अंतर से हारे थे जब वहां का परिणाम उसके पक्ष में गया, फिर नॉर्थ कैरोलिना से उनके समर्थन का परिणाम आया तो लग गया कि अमेरिकी जनता का राजनीति और देश को लेकर मनोविज्ञान बदला है। स्विंग माने जाने वाले अन्य राज्यों पेंसिलवेनिया, एरीजोना, मिशीगन, विस्कॉन्सिन और नेवाडा में भी हैरिस को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला है। ट्रंप ने इलेक्टोरल के अलावा पॉपुलर मतों के मामले में भी सफलता पाई जो उनके 2016 की जीत से अलग कहानी बताती है। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी ने 1992 के बाद ऐसा प्रदर्शन कभी नहीं किया था। अमेरिकी इतिहास में केवल 1892 में ग्रोवर क्लीवलैंड ही ऐसे राष्ट्रपति हुए जो 4 वर्ष के बाद फिर से चुने गए हैं। इस तरह ट्रंप अमेरिकी इतिहास के ऐसे दूसरे व्यक्ति बन गए हैं।

वास्तव में अनेक दृष्टियों से यह असाधारण परिणाम है। ट्रंप पर दो बार जानलेवा हमले हुए, राष्ट्रपति काल में उन्हें दो बार महाभियोग का सामना करना पड़ा। जब वह व्हाइट हाउस से विदा हुए थे उस समय की स्थिति को याद करिए। 7 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद पर ऐसा पहला हमला हुआ था जिसमें पुलिस को डंडे के अलावा गोली तक चलानी पड़ी। ट्रंप को लोकतंत्र विरोधी, फासिस्ट साबित करने के लिए विरोधियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। आपराधिक आरोप के मुकदमे भी चले। अमेरिकी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब डेमोक्रेटिक पार्टी ने अंतिम दौर में जो बाइडन को उम्मीदवारी के दौर से हटाकर कमला हैरिस को सामने लाया। धन के मामले में भी कमला हैरिस, ट्रंप से बहुत आगे निकल गईं। मीडिया ने ऐसा वातावरण बनाया मानो ट्रंप पिछड़ चुके हैं। परिणाम क्या आया? राष्ट्रपति चुनाव ही नहीं सीनेट में भी रिपब्लिकन को बहुमत मिला तथा प्रतिनिधि सभा में बेहतर स्थिति में आए।

इसका निष्कर्ष यह है कि अमेरिका के लोगों ने ऐसा जनादेश दिया ताकि ट्रंप अपनी घोषणाओं या एजेंडे में किसी तरह के बड़े अवरोध का सामना करने से बचे रहे। अमेरिकी इतिहास में यह सबसे अधिक मतदान वाला चुनाव हुआ है। समाज के जिस वर्ग का समर्थन डेमोक्रेट को मिलने की परंपरा रही है उनमें भी ट्रंप प्रवेश कर चुके हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार, महिलाओं का मत कमला हैरिस के पक्ष में झुका रहा लेकिन बाइडन को प्राप्त मतों से वह पीछे ही रहीं। अश्वेतों, लैटिन अमेरिकियों, एशियाई समूहों में से भी लगभग एक तिहाई मतदाताओं ने ट्रंप के लिए वोट किया। हां, श्वेत मतदाताओं के समर्थन में थोड़ी कमी आई। ये सारे तथ्य बताते हैं कि अमेरिकी जनमानस ट्रंप को लेकर कितना बदला है।

वास्तव में ट्रंप ने 2020 के चुनाव परिणाम को स्वीकार नहीं किया तथा कहा कि उन्हें धांधली से हराया गया है। यद्यपि उन्होंने 20 जनवरी, 2021 को चुपचाप व्हाइट हाउस से विदा ले ली और बाइडन के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए। उन्होंने बयान दिया कि आज से संघर्ष की शुरुआत हुई है और अमेरिका के भविष्य के लिए वे इसे जारी रखेंगे। पूरे देश में रिपब्लिकनों के अंदर और बाहर भी ऐसे लोगों की बड़ी संख्या थी जिन्होंने माना कि सत्ता प्रतिष्ठान के प्रभावी तत्वों ने ट्रंप को हराने में भूमिका निभाई है। इसके विरुद्ध तब जगह-जगह प्रदर्शन हुए और अनेक स्थानों पर पुलिस से लोगों की झड़पें हुईं। संसद पर हमले के आरोप लगे। साबित नहीं किया जा सका कि उसमें ट्रंप की भूमिका थी। ऐसा हो जाता तो वह राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से वंचित रह जाते जिनकी पूरी कोशिश की गई।

सच कहें तो ट्रंप ने रिपब्लिकनों के साथ देश की सोच बदलने तथा राजनीति में नए चेहरों को खड़ा करके जीत सुनिश्चित की। डेमोक्रेट स्वयं को अति वामपंथी या लिबरल साबित करने के लिए जो कुछ करते रहे उसे आम लोगों ने सहजता से स्वीकार नहीं किया। आश्चर्यजनक रूप से शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिकों तथा निम्न आय वर्ग के लोगों का समर्थन रिपब्लिकन में बढ़ा है। डेमोक्रेट एलिट व शिक्षित वर्ग के एक समूह तथा हॉलीवुड एवं थिंक टैंक के बीच अपनी पहचान की व नीति के लिए सिमटती गई है। लोगों ने माना कि वे जो आवाज उठा रहे हैं वह अमेरिका की सामूहिक भावना नहीं है।

बाइडन के कार्यकाल में आंतरिक रूप से अमेरिका कमजोर हुआ, वैश्विक स्तर पर भी उसकी छवि धूमिल हुई। हालांकि, सर्वेक्षणों में अधिकतर मतदाताओं की चिंता वैश्विक या विदेश नीति नहीं थी। यानी अमेरिकी लोगों की प्राथमिकताएं बदली हैं। ट्रंप का ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन‘ यानी ‘मागा‘ लोगों के दिलों में गया। अवैध घुसपैठ, बढ़ती महंगाई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध एवं अस्थिरता को उन्होंने बड़ा मुद्दा बनाया और लोगों को अपील कर गया। वस्तुतः 2021 में ही दिखा था कि अमेरिका में ट्रंपवाद का नया दौर शुरू हो चुका है जिसका व्यापक समर्थन है, परंपरागत डेमोक्रेट, एलिट, अति लेफ्ट लिबरल राजनीति का समर्थन घट रहा है। संपूर्ण विश्व में धीरे-धीरे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान या उसके बाद बनाई गई राष्ट्रवाद को संकुचित एवं युद्धजनित सोच को लोगों ने त्यागना आरंभ कर दिया है और वे अपने देश की सभ्यता – संस्कृति, जीवन मूल्य के साथ राष्ट्र के प्रति गर्व का सामूहिक भाव व्याप्त हो रहा है। लोगों को लगने लगा कि उनके नेता व थिंक टैंक द्वारा उठाए मुद्दे व विचार उनकी स्वाभाविक सोच के करीब नहीं थे।

ट्रंप ने 2016 में इसको आवाज दी और व्हाइट हाउस से बाहर निकालने के बाद उन्होंने इसे जारी रखा। इससे अमेरिकी राजनीति का वर्णक्रम काफी हद तक बदलने में सफलता पाई। डेमोक्रेट के काल में पारिवारिक मूल्यों का विघटन भी मुद्दा था । आम लोग यह अंदर से स्वीकार कर नहीं पा रहे थे कि उनके बच्चों को स्कूल जाने के साथ यह अधिकार प्राप्त हो कि वे स्त्री या पुरुष में से कुछ भी बने या फिर दोनों के बीच का बन जाएं। इस तरह कह सकते हैं कि 2016 में दिखी अमेरिकी मतदाताओं की सोच 2024 में ज्यादा सुदृढ़ हुई है और आगे इसके और सशक्त होने की संभावना है।

अमेरिकी चुनाव अभियान में ट्रंप केंद्रित ठीक वैसे ही परिदृश्य, आरोप-प्रत्यारोप एवं मुद्दे थे जो हम भारत में देखते हैं। यानी ट्रंप का आना लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-धार्मिक स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी, अल्पसंख्यकों के अधिकार समाप्त कर दिए जाएंगे, संविधान कमजोर होगा और वैश्विक स्तर पर युद्ध एवं तनाव का खतरा ज्यादा बढ़ेगा। अमेरिका के बदले मनोविज्ञान में इनको पहले की तरह समर्थन मिलने की संभावना नहीं है।

ट्रंप ने इसके विपरीत कहा कि मेरे 4 वर्ष के कार्यकाल में कोई युद्ध नहीं हुआ, मैं युद्ध का नहीं शांति का समर्थक हूं लेकिन पीस विद स्ट्रेंथ। ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था सुधारी, विदेश नीति में आश्चर्यजनक सफलताएं प्राप्त की। पश्चिम एशिया में इजरायल के साथ सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात के राजनीतिक संबंध स्थापित होंगे इसकी कल्पना नहीं थी जो उन्होंने कर दिखाया। इस तरह ट्रंप अमेरिका की घरेलू नीति के साथ वैश्विक व्यवहारों पर भी बदलाव दिखायेंगे।

भारत के लिए इससे बेहतर परिणाम अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कुछ नहीं आ सकता। बांग्लादेश को लेकर उन्होंने बाइडन प्रशासन की कड़ी आलोचना की। इसका असर दिखेगा। उन्होंने वोट के लिए ही सही अगर हिंदुओं के पक्ष में बयान दिए तथा उनकी रक्षा और साथ देने का संकल्प दिखाया तो वह इससे पीछे हटेंगे ऐसा तत्काल मानने का कोई कारण नहीं है। वस्तुओं पर कर और व्यापार के कुछ मुद्दों को छोड़कर उनका भारत से किसी बिंदु पर कोई मतभेद नहीं रहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन्होंने अपने साक्षात्कारों में प्रशंसा करते हुए व्यक्तिगत मित्र बताया। इस तरह मानकर चलना चाहिए कि उनके कार्यकाल में अमेरिकी भारत संबंध सशक्त होंगे और वैश्विक स्तरों पर दोनों देश अनेक मुद्दों पर उसी तरह सहयोग की भूमिका में दिखेंगे जैसा 2016 से 2020 के बीच था।

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