वो राजा जिसने अरब के खलीफा को ही बंदी बना कर रखा, भील समाज मानता था अभिभावक: इस्लामी आक्रांताओं की तोड़ी रीढ़

रावल खुमाण ने महमूद को बंदी बनाकर कई महीनों तक रखा। आखिर में क्षमा-याचना और भारत की ओर दोबारा मुँह नहीं करने का वचन लेने के बाद उन्होंने उसे आजाद किया।

रावल खुमाण, एकलिंग मंदिर

छींक आने पर राजस्थान में कहते हैं - 'थनै खुमाण राखै' (बाएँ: अरवल खुमाण, दाएँ: एकलिंग जी मंदिर)

भारत के महान सपूत एवं पराक्रमी योद्धा बप्पा रावल उर्फ कालभोज, जिन्हें कलियुग का भीष्म पितामह कहा जाता है, उन्होंने अपनी वृद्धावस्था में मेवाड़ की बागडोर अपने बेटे खुमाण को सौंप दी और स्वयं वन की ओर प्रस्थान कर गए। वहाँ उन्होंने भगवान के चिंतन-मनन में बाकी समय गुजारा और लगभग 100 वर्ष की अवस्था में अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। मेवाड़ का शासन अब महाराजा खुमाण के अधीन था। खुमाण भी अपने पिता बप्पा रावल की तरह पराक्रमी और प्रजा पालक थे।

रावल खुमाण का वर्णन ‘खुमाण रासो’ नाम के ग्रंथ में मिलता है। खुमाण नाम से उसी वंश में तीन अलग-अलग महाराजा हुए हैं। रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है कि शिवसिंह सरोज के कथानुसार एक अज्ञात नामाभाट ने खुमाण रासो नामक ग्रन्थ लिखा था, जिसमें श्रीरामचंद्र से लेकर खुमाण तक के युद्धों का वर्णन किया गया है। रामचंद्र शुक्ल ही नहीं, अंग्रेज इतिहासकार कर्नल टॉड ने भी खुमाण के बारे में विस्तार से लिखा।

बप्पा रावल ने सन 753 ईस्वी में राजकाज से संन्यास ले लिया था। इसका जिक्र ‘एकलिंग महात्म्य’ में भी किया गया है। इस तरह रावल खुमाण ने 753 ईस्वी से 773 ईस्वी तक शासन किया था। खुमाण की मृत्यु सन 773 ईस्वी में हो गई थी। हालाँकि, किन वजहों से उनकी मृत्यु हुई थी, इसके बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। इतिहासकारों का कहना है कि खुमाण नाम के तीन शासक हुए। खुमाण प्रथम, खुमाण द्वितीय एवं खुमाण तृतीय। बप्पा रावल ने अपने बेटे खुमाण प्रथम को सत्ता सौंपी थी। हालाँकि, कर्नल टॉड ने एक ही खुमाण का जिक्र किया है।

रावल के खुमाण के बारे में कर्नल टॉड ने लिखा है कि कालभोज के बाद खुमाण नामक शासक राजसिंहासन पर बैठा। यह शासक मेवाड़ के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हुआ। रावल खुमाण ने बगदाद में रहने वाले अरब के खलीफा अल मामून को भयानक पराजय दी थी। इसके पहले बप्पा रावल भी अरबों को ईरान-तूरान तक खदेड़ चुके थे। जिस समय खलीफा अल मामून हुआ, उस समय खुमाण द्वितीय का शासन माना जाता है। यह शासनकाल 820 से 860 ईस्वी तक था।

अरब आक्रमणकारी हाशिम का किया वध

रावल खुमाण के समय अरबी फौज ने एक बार फिर इस्लाम का झंडा बुलंद करते हुए भारत पर चढ़ाई की। उन्हें लगा कि बप्पा रावल ने शासन त्याग दिया तो भारत में प्रवेश करना आसान होगा, लेकिन यह अरबों की भूल थी। खुमाण चट्टान बनकर खड़े थे। ओमेंद्र रत्नू ने अपनी पुस्तक ‘महाराणा: सहस्त्र वर्षों का धर्मयुद्ध’ में लिखा है कि अरब के खलीफा ने भारत पर आक्रमण करने के लिए अपने सेनापति हाशिम को समुद्री मार्ग से भारत भेजा। हाशिम गुजरात के रास्ते राजस्थान आया।

हाशिम के बारे में भीनमाल के राजा नागभट्ट को जानकारी मिल गई और उन्होंने रावल खुमाण के साथ मिलकर हाशिम की सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया। खुमाण के नेतृत्व में लड़ी गई यह लड़ाई इतनी भयानक थी कि अरब आक्रमणकारियों को गाजर-मूली की तरह काट दिया गया। इसके बाद कुछ दशक तक भारत में शांति रही, लेकिन खुमाण अरब आक्रमणकारियों की दुर्बुद्धि से अवगत हो चुके थे। आने वाले समय के लिए उन्होंने तैयारी जारी रखी।

महान क्षत्रिय सपूत, जिन्होंने खलीफा को ही बंदी बना लिया

कुछ समय के बाद बगदाद के खलीफा अल मामून, जिसे महमूद भी कहा जाता है, ने एक बड़ी फौज लेकर चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी। कहा जाता है कि यह आक्रमण बहुत भयंकर था। अरबी फौज के रास्ते में जो भी पड़ता उसे वे गाजर-मूली की तरह काटते आ रहे थे। हिंदुओँ के खेतों और मकानों में आग लगाते जा रहे थे। जो लोग इस्लाम कबूल करने से मना करते, उन्हें मार दिया जाता या दास बना लिया जाता। महिलाओं को यौन दासी के रूप में उठा लिया जाता था। लूट, हत्या, बलात्कार इन आक्रमण के एक आवश्यक भाग थे।

इसकी जानकारी रावल खुमाण को मिली तो उन्होंने अपनी फौज को संगठित करना शुरू कर दिया। हिन्दू परंपरा के अनुरूप उन्होंने महिलाओं का सम्मान, लूटपाट और उत्पात को खत्म करने का प्रण लिया। उन्होंने अपने पूर्वजों के समय से आराध्य एकलिंगजी महाराज और माँ भवानी का स्मरण करते हुए तैयारी शुरू कर दी। रावल खुमाण ने अल मामून की सेना का सामना किया और इस युद्ध में उसे बंदी बना लिया।

रावल खुमाण ने महमूद को बंदी बनाकर कई महीनों तक रखा। आखिर में क्षमा-याचना और भारत की ओर दोबारा मुँह नहीं करने का वचन लेने के बाद उन्होंने उसे आजाद किया। हालाँकि, खुमाण नहीं जानते थे कि महमूद क्षत्रिय नहीं है, जो मरते दम तक अपने वचन का पालन करेगा। वह एक धूर्त और हत्यारा था। अरब के एक खलीफा की ऐसी दुर्गति किसी ने नहीं की थी, लेकिन रावल खुमाण ने अरब आक्रमणकारियों को बता दिया कि वे भारत में उन्हें जीत का उत्सव मनाने को नहीं मिलेगा।

इस युद्ध में पूरे भारत के 40 से अधिक शासकों ने रावल खुमाण के नेतृत्व में युद्ध में भाग लिया। इससे पहले हिंदू राजाओं को संगठित करने का काम बप्पा रावल कर चुके थे। अपने पूर्वज की इस परंपरा को रावल खुमाण ने भी जारी रखा। ‘खुमाण रासो’ में इस युद्ध का विस्तार का वर्णन है। इसके साथ ही इस युद्ध में भाग लेने वाले सभी राजाओं के बारे में बताया गया है।

अरब आक्रांताओं की सैन्य रीढ़ तोड़ी

बप्पा रावल की तरह ही खुमाण द्वितीय ने भी अपने जीवन में एक युद्ध नहीं हारे। उन्होंने अपने जीवन में कुल 24 भीषण लड़ाइयाँ लड़ीं और सबमें विजयी रहे। उन्होंने बप्पा रावल की तरह ईरान और अफगानिस्तान तक चढ़ाई करके दुश्मनों को खदेड़ा और बुरी तरह परास्त किया। ‘अमरकाव्यम’ में रावल खुमाण की सेना के बारे में कहा गया है कि उनकी सेना में 1 लाख रावल (क्षत्रिय सैनिक), 30 लाख अश्वारोही सैनिक, 7 लाख पैदल सैनिक, 9 लाख हाथी सवार सैनिक और एक हजार नगाड़ों की सेना थी। हालाँकि, यह संख्या अधिक लग सकती है, लेकिन जिस तरह पूरे भारत के 40 से अधिक राजाओं ने हाथ मिलाया था, उसमें यह अधिक प्रतीत नहीं होता।

इतिहासकार ईवान ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक ‘मेवाड़: दुनिया का प्राचीनतम राजवंश’ (जी हाँ, लगभग 100 ईसा पूर्व में गुहा सिंह प्रथम ने स्थापना की थी, जो आज भी जारी है) में लिखा है कि अगर बप्पा रावल और रावल खुमाण जैसे क्षत्रिय महावीर नहीं होते तो विश्व का मुस्लिमों की इस्लामी खिलाफत नहीं बच पाता। इन दोनों शूरवीरों अरब के खलीफाओं की सैन्य क्षमता की रीढ़ तोड़ दी। इसके कारण पश्चिम में अरब का इस्लामी विस्तारवाद रूक गया।

राजस्थान के जन-जन में लोकप्रिय थे रावल खुमाण

मेवाड़ के शासक अपनी प्रजा में शुरू से प्रिय रहे हैं। बप्पा जैसी उपाधि, मेवाड़ की प्रजा ने ही कालभोज को दी थी, जिसके कारण वे बप्पा रावल हो गए। क्षत्रिय कुल में ऊँच-नीच का भेदभाव कभी नहीं रहा। मेवाड़ के राजकुमार भीलों के साथ हिल-मिल कर रहते थे। रावल खुमाण को भी भीलों से बहुत प्रेम था। भील समाज भी उन्हें अपने पिता के समान मानता था। खुमाण राजस्थान के जन-जन के बीच लोकप्रिय थे।

कहा जाता है कि ‘खम्मा घणी’ जैसे शब्द में ‘खम्मा’ खुमाण से ही आया है। यही नहीं छींक आने पर जय सियाराम कहते हैं, उसी तरह राजस्थान में ‘थनै खुमाण राखै’ (यानी खुमाण आपकी रक्षा करें) कहा जाता है।

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