मतदान से ठीक पहले भूपेंद्र यादव बने निशाना, ये संयोग नहीं! महाराष्ट्र में किराए का घर लेकर रहे, रोज करते थे बूथ स्तर की बैठक

अचानक से शरद पवार का प्रभावहीन हो जाना, उद्धव ठाकरे की जगह एकनाथ शिंदे को जनता द्वारा बाल ठाकरे का असली वारिस माना जाना और भाजपा का स्ट्राइक रेट 90% के करीब पहुँच जाना - ये किसी चमत्कार से कम नहीं है।

भूपेंद्र यादव, भाजपा

2024 में अलवर से सांसद बने भूपेंद्र यादव संगठन प्रबंधन के लिए जाने जाते हैं

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव नज़दीक थे। दिल्ली में हर साल की भाँति इस बार भी प्रदूषण के कारण लोगों के नाक में दम हुआ। दीवाली पर हंगामा मचाने वाले पराली जलाने वालों को लेकर चुप्पी साध कर बैठे रहे। तभी अचानक से एक लॉबी सक्रिय होती है और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के खिलाफ सोशल मीडिया में एक नैरेटिव चलाया जाने लगता है। दिल्ली की AAP सरकार, जो यमुना नदी को साफ़ करने से लेकर प्रदूषण खत्म करने तक जैसे तमाम वादे कर चुकी है, उसकी नाकामी का ठीकरा देश के पर्यावरण मंत्री पर फोड़ा जाने लगता है।

अचानक से भूपेंद्र यादव निशाना, ये संयोग नहीं था

यानी, भूपेंद्र यादव पर। 20 नवंबर, 2024 को महाराष्ट्र में मतदान हुआ। इसके 2 दिन पहले ‘गालीबाज’ कही जाने वाली कांग्रेस के सोशल मीडिया एवं डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की अध्यक्ष सुप्रिया श्रीनेत भूपेंद्र यादव की तस्वीर लगा कर दावा करती हैं कि उन्होंने भाजपा और पीएम मोदी को लेकर कई ट्वीट्स किए हैं लेकिन ‘X’ पर दिल्ली के वायु प्रदूषण को लेकर उन्होंने कुछ नहीं लिखा। AAP और कांग्रेस के हैंडल्स इसके बाद उनकी तस्वीर लगा कर ‘गुमशुदा की तलाश’ लिख कर चलाने लगते हैं। क्या भूपेंद्र यादव को इस तरह अचानक से निशाना बनाया जाना कोई संयोग था?

कहते हैं, राजनीति में कुछ भी संयोग नहीं होता। खासकर तब, जब पूरा का पूरा समूह एक ही सुर में हुआँ-हुआँ कर रहा हो। जी हाँ, भूपेंद्र यादव को टारगेट पर लिए जाने का कारण उनका केंद्रीय मंत्री होना है ही नहीं। इसका कारण था – महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनका भाजपा का प्रभारी होना। उनका आत्मविश्वास गिराने के लिए और ध्यान भटकाने के लिए तमाम सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को दिल्ली के प्रदूषण से उनका नाम जोड़ कर चलाने का ठेका दे दिया। फिर भी महाराष्ट्र में MVA, यानी कांग्रेस-शिवसेना (UBT)-NCP (शरदचंद्र पवार) गठबंधन को मुँह की खानी पड़ी।

कौन हैं भूपेंद्र यादव, कैसा रहा है राजनीतिक सफर

हरियाणा और उसके बाद महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद कुछ ऐसे चेहरों पर सबकी नज़र है, जिन्हें पार्टी की दूसरी पंक्ति में रख कर भविष्य के नेतृत्वकर्ताओं के रूप में तैयार किया जा रहा है। हमने पिछले लेख में उन नेताओं पर बात की थी। अब अलग-अलग लेखों में हम विस्तार से आपको उन सबके बारे में बताएँगे। इस लेख में बात भूपेंद्र यादव की, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा सरकार में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री हैं। जुलाई 2021 में ‘मोदी 2.0’ में उन्हें केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बना कर लाया गया था। तभी से वो सरकार का हिस्सा हैं।

राजस्थान के अजमेर में जन्मे भूपेंद्र यादव ने वहीं के सरकारी कॉलेज से वकालत की पढ़ाई की। सन् 2000 में उन्हें ‘अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद’ का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया, वो 2009 तक इस पद पर रहे। इस दौरान वो सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस भी करते रहे। 2010 में उन्हें भाजपा ने पार्टी का नेशनल सेक्रेटरी बनाया। अप्रैल 2012 में उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया। 2014 में उन्हें नेशनल जनरल सेक्रेटरी के पद पर प्रमोट किया गया। वो विभिन्न संसदीय समितियों में भी रहे। 2013 में राजस्थान-झारखंड, 2017 में गुजरात-उत्तर प्रदेश और 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी गई।

वो 2 दर्जन से भी अधिक संसदीय कमिटियों के सदस्य व अध्यक्ष रह चुके हैं, ऐसे में उन्हें कभी ‘कमिटी मैन’ भी कहा जाने लगा था। भूपेंद्र यादव को 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया जाना भी अचानक नहीं था, 2019 में वो इसी जिम्मेदारी को निभा चुके हैं और तब भी NDA को वहाँ बहुमत मिला था, लेकिन उद्धव ठाकरे के धोखे के कारण सरकार नहीं बन पाई। 2020 में उन्हें ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनावों की जिम्मेदारी दी गई और वहाँ भाजपा की सीटों की संख्या 4 से सीधा 48 पहुँच गई। 2022 में उन्हें मणिपुर की जिम्मेदारी दी गई, वहाँ भाजपा ने 21 से 32 सीटों पर पहुँचते हुए अपने दम पर बहुमत प्राप्त किया।

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की चुनौतियों को किया पार

2023 में उनकी असली परीक्षा तब हुई जब मध्य प्रदेश में उन्हें चुनावी इंचार्ज बना कर भेजा गया। राज्य में बीच के 1 साल को छोड़ दें तो दिसंबर 2003 से भाजपा ही सत्ता में है। 2023 में मध्य प्रदेश में पार्टी ने पिछली बार से 54 सीटें अधिक जीत कर 163 सीटें अपने नाम की। 2024 में भूपेंद्र यादव को अलवर से लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और उन्होंने कांग्रेस के ललित यादव को 48,000 से भी अधिक वोटों से हराया। वो पहली बार लोकसभा सांसद बने।

महाराष्ट्र का हालिया चुनाव भाजपा के लिए बहुत कठिन था, क्योंकि 7 महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में ही MVA (महा विकास अघाड़ी) को बंपर जीत मिली थी और महायुति को 48 में मात्र 17 सीटों से संतोष करना पड़ा था। अचानक से शरद पवार का प्रभावहीन हो जाना, उद्धव ठाकरे की जगह एकनाथ शिंदे को जनता द्वारा बाल ठाकरे का असली वारिस माना जाने लग्न और भाजपा का स्ट्राइक रेट 90% के करीब पहुँच जाना – ये किसी चमत्कार से कम नहीं है। और, इस चमत्कार के लिए मन्त्र मोदी-शाह ने दिया तो उस मन्त्र को इस चुनाव में सही तरीके से फूँकने का काम भूपेंद्र यादव ने किया।

महाराष्ट्र में किराए के घर में रहे, रोज बूथ लेवल की बैठकें की

मात्र 7 वर्ष की उम्र में ही RSS से जुड़ने वाले भूपेंद्र यादव ने संगठनात्मक बारीकियाँ वहीं सीखीं। उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि उन्हें सरकारी नौकरी नहीं करनी है। ये दिखाता है कि उनके लक्ष्य हमेशा से स्पष्ट रहे हैं। पिता कदम सिंह यादव रेलवे में थे, सेवानिवृत्ति के बाद परिवार गाँव में ही रहता था। ताज़ा चुनावों में भूपेंद्र यादव ने अगस्त में ही महाराष्ट्र में डेरा डाल दिया था और वहाँ किराए के मकान में रहने लगे थे। वो रोज क्षेत्र व बूथ प्रभारियों के साथ ऑनलाइन बैठकें करते थे। उन्होंने मराठा समुदाय के 49, ओबीसी के 122, एससी के 124 और एसटी समुदाय के 26 नेताओं की टीम बनाई। वो खुद भी OBC समाज से आते हैं।

भूपेंद्र यादव के साथ केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव को महाराष्ट्र में सह-प्रभारी बनाया गया था, यानी मध्य प्रदेश की 2023 वाली जोड़ी को ही दोहराया गया था और वो फिर सफल रहे। मध्य प्रदेश में तो Exit Polls में भाजपा को कई एजेंसियों ने 60 सीटें भी नहीं दी थीं। खैर, अब भूपेंद्र यादव ने कई चुनौतियों को पार कर लिया है। भाजपा के भविष्य के नेताओं में वो पहली पंक्ति में होंगे, इसमें कोई शक नहीं है।

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