किन्तु, कौन नर तपोनिष्ठ है यहाँ धनुष धरनेवाला?
एक साथ यज्ञाग्नि और असि की पूजा करनेवाला?
कहता है इतिहास, जगत् में हुआ एक ही नर ऐसा,
रण में कुटिल काल-सम क्रोधी तप में महासूर्य-जैसा!
ये पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर रचित ‘रश्मिरथी’ की हैं। बात हो रही है भगवान परशुराम की। इन पंक्तियों के जरिए कवि पूछ रहा है कि आखिर वो कौन सा व्यक्ति है जो तपस्या भी करता है और धनुष से युद्ध भी, जो यज्ञ की अग्नि में हविष्य भी डालता है और तलवार से दुश्मन का गला भी काटता है, जो शांतचित्त हो घोर तपस्या भी करता है और युद्ध में क्रोधित होकर अस्त्र-शस्त्र से भी वार करता है। फिर कवि इसका उत्तर देते हुए बताता है कि दुनिया के इतिहास में एक ही व्यक्ति ऐसा हुआ है और वो हैं भगवान परशुराम। उन्हें ‘जामदग्नेय राम’ भी कहा गया है – जमदग्नि के पुत्र राम।
बॉलीवुड ने राष्ट्रवाद-हिंदुत्व की होड़ में बनाई घटिया फ़िल्में
आखिर हम अभी भगवान परशुराम की बात क्यों कर रहे हैं। आइए, बताते हैं। असल में विक्की कौशल अभिनीत फिल्म ‘महावतार’ का फर्स्ट लुक जारी किया गया है। इसमें दावा किया गया है कि विक्की कौशल ‘चिरंजीवी भगवान परशुराम’ के किरदार में दिख रहे हैं। इस फिल्म का निर्देशन अमर कौशिक कर रहे हैं, जिन्होंने ‘स्त्री’ (2018), ‘बाला’ (2019), ‘भेड़िया’ (2022), और ‘स्त्री 2’ (2024) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है। उनकी अधिकतर फिल्मों के निर्माता Maddock Films के दिनेश विजन रहे हैं, ‘महावतार’ को भी वही प्रोड्यूस कर रहे हैं।
लोगों ने ‘स्त्री’ सीरीज की तारीफ की थी। मेरा भी मानना यही है कि भारत के गाँव-गाँव में आपको कोई न कोई ऐसी स्थानीय कहानी मिल जाएगी, जिसे फिल्म में परिवर्तित कर के बड़े पर्दे पर दिखाया जा सकता है। ‘स्त्री’ सीरीज या फिर ‘तुम्बाड़’ (2018) ऐसी ही कहानियाँ थीं। हमारे देश में हर छोटे-बड़े पहाड़, नदी, पेड़-पौधे, जंगल और यहाँ तक कि मिट्टी के ढेले और पत्थर का टुकड़े तक से सैकड़ों वर्षों पुरानी कोई न कोई रहस्यमयी कहानियाँ जुड़ी होती हैं। लेकिन, आजकल देखा गया है कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के पुनर्जागरण के दौर में अच्छा शोधपरक कंटेंट पेश करने की बजाए ‘बहती गंगा में हाथ धोने’ वाला काम हो रहा है।
इस चक्कर में कई विषयों पर फिल्म बना कर उन्हें इस कदर बर्बाद कर दिया जा रहा है कि फिल्म भी नहीं चल रहे और दोबारा कोई उस पर हाथ भी नहीं डाल रहा। ‘द कश्मीर फाइल्स’ (2019) और ‘द केरल स्टोरी’ (2023) जैसी अच्छी फ़िल्में खूब चलीं, लेकिन इस होड़ में नब्बे के दशक के अजमेर रेपकांड पर फिल्म बना कर इस विषय को बर्बाद किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बायोपिक फ़िल्में बनीं, लेकिन बेकार। 2022 में आई ‘हिंदुत्व’ फिल्म भी फ्लॉप हुई। ‘द केरल स्टोरी’ की टीम ने ही बस्तर में नक्सलवाद पर फिल्म बनाई लेकिन वो भी फ्लॉप। ‘द कन्वर्जन’ नाम की फिल्म आई 2022 में धर्मांतरण पर, लेकिन फिल्म महा-बेकार थी।
इस होड़ में अक्षय कुमार ने भी रामसेतु से लेकर कई राष्ट्रवादी विश्वों पर फिल्म बनाईं जो औसत से नीचे थी। कंगना रनौत ने ‘तेजस’ बनाई जो फ्लॉप हुई। अब विक्की कौशल की ‘महावतार’ आ रही है। वैसे इस तरह के रियल लाइफ किरदार उनके लिए नए नहीं हैं। विक्की कौशल क्रांतिकरी उधम सिंह और पूर्व सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ का किरदार निभा चुके हैं। उनकी एक्टिंग को लेकर किसी को संदेह नहीं है, हालाँकि, सैम मानेकशॉ के किरदार में वो कुछ अधिक झुक गए थे जबकि फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के साथ काम कर चुके लोग कहते हैं कि वो बुढ़ापे में भी एकदम सीधा चलते थे।
‘महावतार’: विक्की कौशल के फर्स्ट लुक के साथ समस्या
खैर, ‘महावतार’ के फर्स्ट लुक के साथ सीधी दिक्कत ये है कि हाथ में फरसा लिए हर व्यक्ति परशुराम नहीं होता। भगवान परशुराम जैसे तपस्वी योद्धा को आप दिखा रहे हैं, लेकिन न उनके ललाट पर तिलक दिख रहा है और न कंधे पर जनेऊ। बिना त्रिपुण्ड और यज्ञोपवीत के भगवान परशुराम को दिखाना ठीक वैसा ही है, जैसे किसी चर्च से क्रॉस हटा दिया जाना। भगवान परशुराम भृगुवंशी ब्राह्मण थे, उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार कहा गया, उनके पिता जमदग्नि भी बड़े ऋषि थे – ऐसे में उन्हें हिन्दू प्रतीक चिह्नों से दूर करना कहाँ तक उचित है? क्या सिर्फ ‘कूल’ बनने के लिए बॉलीवुड ये सब कर रहा है?
Dinesh Vijan brings to life the story of the eternal warrior of dharma!
Vicky Kaushal stars as Chiranjeevi Parashurama in #Mahavatar, directed by Amar Kaushik.Coming to cinemas – Christmas 2026! pic.twitter.com/H1PcAQPGry
— Maddockfilms (@MaddockFilms) November 13, 2024
जब आप किसी वास्तविक विषय पर फिल्म बना रहे हैं तो आपको रिसर्च तो कर ही लेना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि भगवान परशुराम को लेकर शास्त्रों में कुछ खोजना दुर्लभ है। शास्त्रों में उन्हें ‘महादेव प्रधानशिष्य’ कहा गया है, यानी वो भगवान शिव के प्रमुख शिष्य थे। हिन्दू धर्म में अलग-अलग गुरु परंपराएँ व पंथ हैं और उनके तिलक के तरीके अलग-अलग हैं। जैसे, शैव संप्रदाय के लोग त्रिपुण्ड वाला तिलक लगाते हैं, मस्तक पर तीन रेखाएँ और बीच में एक सीधी लकीर। शाक्त परंपरा के लोग सिंदूर से तिलक लगाते हैं। वैष्णव संप्रदाय में तो तिलक के 64 प्रकार होते हैं। जैसे, ‘श्री तिलक’ में कुमकुम से रेखा बनाई जाती है वहीं ‘श्याम तिलक’ में काले रंग की मोटी रेखा बनाई जाती है। कुमकुम, केसर, हल्दी और भस्म इत्यादि में किसका किस तिलक में कैसे इस्तेमाल करना है, इसके अलग-अलग नियम हैं। यहाँ तक कि तिलक के हर विधान में उँगलियों के इस्तेमाल को लेकर भी अलग-अलग नियम हैं।
भगवान परशुराम धारण करते थे त्रिपुण्ड तिलक
सोचिए, जानने-पढ़ने के लिए कितना कुछ है। ऐसे में जब बिना रिसर्च के फिल्म बना कर हिन्दुओं की अपेक्षाओं को नीचा दिखाया जाता है, तो इसका विरोध स्वाभाविक है। भगवान परशुराम को तिलक या यज्ञोपवीत के बिना दिखा कर केवल गुस्से में दाढ़ी वाले शख्स को दिखा दिया गया है। आखिर कुछ तो ऐसा हो जिससे पता चले कि ये भगवान परशुराम हैं या फिर ग्रीक गॉड Zeus? और भगवान परशुराम, कोई दुर्वासा मुनि नहीं थे कि उन्हें जल्दी क्रोध आता हो। वेदों के ज्ञाता थे, उन्हें पता था कहाँ क्या और किस तरीके से बोलना है। उनके लिए रामचरितमानस में कहा गया है:
“गौरि सरीर भूति भल भ्राजा। भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा।।”
गोस्वामी तुलसीदास भगवान परशुराम का वर्णन करते हुए कहते हैं – “उनका शरीर देवी गौरी (पार्वती) के समान पवित्र और तेजस्वी है, जो एक दिव्य आभा से दमकता है। उनके विशाल और भव्य माथे पर त्रिपुंड सजा हुआ है, जो भगवान शिव के प्रति उनकी गहरी भक्ति का प्रतीक है।” बाकी आप खुद समझ जाइए। क्या विक्की कौशल के लुक में आपको इन सबमें से कुछ भी नज़र आ रहा है? केवल क्रोधाग्नि से जलते हुए बड़े बालों वाले एक पुरुष को भयंकर रूप में दिखा कर आप ये नहीं कह सकते कि अपने भगवान परशुराम को दिखाया है। खैर, फिल्म की शूटिंग अभी शुरू होगी और आशा है कि इस प्रतिक्रिया को सकारात्मक रूप से लिया जाएगा, क्योंकि हिन्दू समाज ‘सर तन से जुदा’ नहीं करता। सुधार की गुंजाइश हो तो करना चाहिए और हम सब चाहते हैं कि फिल्म अच्छी निकल के आए, शास्त्र-विरुद्ध न जाए।
अक्सर परशुराम जी को संपूर्ण क्षत्रिय समाज का विरोधी बता कर भी चित्रित किया जाता रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसा होता तो वो युधिष्ठिर के राज्याभिषेक समारोह में आकर उन्हें आशीर्वाद न देते। शरशैय्या पर पड़े भीष्म पितामह से मिलने के लिए नहीं आते। परशुराम के पिता जमदग्नि की हत्या हो गई थी और उसी क्रोध में उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन नामक राजा से लड़ाई ठानी और आततायी शासकों से अनेक युद्ध लड़े। सप्त चिरंजीवियों में शामिल भगवान परशुराम अमर हैं, महेंद्र पर्वत को उनकी तपोस्थली बताया जाता है। भगवान परशुराम ने सिखाया कि केवल शास्त्र पढ़ने से ही काम नहीं चलता, आपको शस्त्र भी सीखना पड़ता है।
मानव जाति के लिए भगवान परशुराम ने बहुत कुछ किया
शस्त्र और शास्त्र के अलावा भगवान परशुराम ने संपूर्ण मानव जाति के लिए काफी कुछ और भी किया है जो जानने लायक है। आज जिसे हम मार्शल आर्ट्स कहते हैं, वो केरल से जन्मा कलरिपयट्टु है जिसे युद्धकलाओं की जननी कहा जाता है। इसका प्रशिक्षण सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने ही दिया था। कहा जाता है कि उन्हें इसकी शिक्षा स्वयं महादेव से मिली थी। इसके अलावा भूमि-सुधार को लेकर भी उनके द्वारा महान कार्य किए गए। जैसे, उन्होंने आततायी शासकों से जमीनें लेकर उसे उन निर्दोष लोगों को दी, जिनके पास संपत्ति नहीं थी। केरल, कोंकण, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र ‘परशुराम क्षेत्र’ के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने काफी मेहनत कर के समुद्र के किनारे की जमीनों को रहने लायक बनाया।
दंतकथाओं में भले ही इसे चमत्कार बता कर पेश किया गया हो और कहा गया कि उन्होंने फरसा फेंका और उससे समुद्र का रास्ता रोका, लेकिन इस तरह के मैराथन प्रयास करने में ऊर्जा लगती है, बल लगता है, आपके पास संगठनात्मक क्षमता होनी चाहिए, बुद्धि होनी चाहिए, अध्ययन भी और नेतृत्व के गुण भी। सीमांतों में भगवान परशुराम बार-बार मिलते हैं। केरल के तिरुवल्लुर ही नहीं, आप हिमाचल प्रदेश के कुल्लू चले जाइए, निरमंड में उनका मंदिर मिलेगा। इस क्षेत्र के बारे में कहा जाता है कि इसे भी उन्होंने ही बसाया।
कई जनजातीय समाज भी भगवान परशुराम को आराध्य मानते हैं, इसीलिए उन्हें केवल ब्राह्मणों तक सीमित कर दिया जाना उनके महान जीवन और योगदानों के खिलाफ अन्याय होगा। झारखंड के ‘छऊ नृत्य’ में आपको जनजातीय कलाकार परशुराम जी का मुखौटा लगा कर नृत्य करते हुए मिल जाएँगे। आप राजस्थान के पाली स्थित देसूरी में चले जाइए, एक गुफा में परशुराम महादेव विराजते हैं। यहाँ गुफा का निर्माण कर के भगवान परशुराम ने अपने आराध्य का लिंग स्थापित किया था। आज भी प्रतिवर्ष श्रवण के शुक्ल पक्ष में परशुराम जयंती के अवसर पर यहाँ भव्य मेला लगता है।
सुदूर केरल में समुद्र किनारे आवासीय क्षेत्रों को बसाने वाले भगवान परशुराम का कुंड जब सुदूर पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश के लोहित में मिलता है, तो ये बताता है कि भारतवर्ष के भूगोल को बेहतर बनाने में उन्होंने कितनी मेहनत की है। कर्नाटक की जो टुलु जनजाति है, वो भी खुद को ‘परशुराम सृष्टि’ के क्षेत्र में रहने वाला मानती है। मान्यता है कि कदलीवनम को उन्होंने ही समुद्र के चंगुल से निकाला और यहाँ टुलु लोगों को बसाया। 2022 में आई ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘कांतारा’ में इन्हीं जनजातीय समाज की कहानी है।
आशा है, ‘महावतार’ में भगवान परशुराम को एक सनातनी ऋषि और योद्धा के रूप में प्रस्तुत करने वक्त इसमें सेक्युलरिज्म का छौंक नहीं लगाया जाएगा और भूल-सुधार की जाएगी, क्योंकि करोड़ों लोगों की आस्था उनसे जुड़ी है। वरना, बॉलीवुड का हिन्दू विरोधी इतिहास हमने देखा ही है। एक ऋषि को ऋषि की तरह ही दिखाया जाना चाहिए, किसी डकैत की तरह नहीं।