‘महाराष्ट्र के मुखिया’: ‘स्ट्रीट फाइटर’ रहे नारायण राणे जो शिवसेना से बने CM, उद्धव से मतभेद के चलते छोड़नी पड़ी थी पार्टी

नारायण राणे पर बचपन से ही बाला साहेब ठाकरे का प्रभाव था और वे सिर्फ 16 वर्ष की उम्र में ही शिवसेना में शामिल हो गए थे

राणे पर बचपन से ही बालासाहेब ठाकरे का प्रभाव था

राणे पर बचपन से ही बालासाहेब ठाकरे का प्रभाव था

महाराष्ट्र में जब पहली बार शिवसेना-बीजेपी के गठबंधन की सरकार बनी तो 4 वर्षों से पहले ही ऐसी स्थितियां बन गईं कि उन्हें अपने मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को बदलना पड़ा। जोशी पर अपने दामाद को गलत तरीके से सरकारी स्कूल की जमीन देने के आरोप थे और शिवसेना के तत्कालीन प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के कहने पर जोशी ने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बालासाहेब ने आक्रामक मराठा चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले नारायण राणे को राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। ‘महाराष्ट्र के मुखिया’ की इस सीरीज में आज देखेंगे नारायण राणे का राजनीतिक सफर।

‘स्ट्रीट फाइटर’ हुआ करते थे राणे

नारायण राणे का जन्म 10 अप्रैल 1952 को मुंबई के चेंबूर में हुआ था राणे ने 11वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। बताया जाता है कि अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने से पहले राणे परिवार के भरण-पोषण के लिए चिकन की दुकान चलाते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 60 के दशक में नारायण राणे मुंबई के चेंबूर इलाके में सक्रिय ‘हरया-नरया’ गैंग से जुड़े हुए थे और वे एक ‘स्ट्रीट फाइटर’ भी हुआ करते थे। उनके खिलाफ मुंबई के घाटला पुलिस स्टेशन में केस भी दर्ज किया गया था। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, जब नारायण राणे 14 साल के थे, तब गिरोह के एक और सदस्य माधव ठाकुर ने उनकी बेरहमी से पिटाई की थी

16 वर्ष की उम्र में शिवसेना से जुड़े

नारायण राणे पर बचपन से ही बाला साहेब ठाकरे का प्रभाव रहा था। शिवसेना की स्थापना के कुछ समय बाद वे सिर्फ 16 वर्ष की उम्र में ही शिवसेना में शामिल हो गए थे। राणे को चेंबूर में शिवसेना का शाखा प्रमुख बना दिया और वे बाद में शिवसेना से पार्षद भी बने। राणे ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कोंकण के इलाके से की थी और इसे राणे का गढ़ माना जाता है। कोंकण में शिवसेना को स्थापित करने में राणे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इसी के चलते वे बालासाहेब ठाकरे के करीब आए थे।

जब सीएम बने राणे

1995 में जब महाराष्ट्र में पहली बार शिवसेना-बीजेपी की पहली सरकार बनी तो मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री बनाया गया और राणे उनकी सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल हुए। मनोहर जोशी पर अपने दामाद को गलत तरीके से जमीन देने के आरोप लगे और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बताया जाता है कि ब्राह्मण मुख्यमंत्री के मुद्दे को लेकर राणे ने जोशी के खिलाफ अभियान चला दिया था। जोशी के इस्तीफे के बाद बालासाहेब ठाकरे ने राणे को मुख्यमंत्री बना दिया। राणे ने 1 फरवरी 1999 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 17 अक्टूबर 1999 तक अपने पद पर रहे।

शिवसेन में उद्धव VS राणे

शिवसेना में रहते हुए भी राणे को विरोध का सामना करना पड़ा था। उद्धव ठाकरे, सुभाष देसाई और मनोहर जोशी हमेशा से राणे की आक्रामकता के विरोधी थे और वे राणे को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही चुनाव में जाने का फैसला लिया और उसमें इस गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। राणे ने इस हार के लिए उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया था। राणे ने दावा किया कि उस चुनाव में 15 उम्मीदवारों के नाम को उद्धव ने खुद ही बदल दिया था और उनमें से अधिकतर उम्मीदवारों ने दूसरी पार्टी से या बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत दर्ज की थी।

उद्धव ठाकरे से मतभेदों के चलते राणे ने 2005 में शिवसेना से इस्तीफा दे दिया। 2005 में राणे को पार्टी से बाल ठाकरे ने यह कहते हुए निकाल दिया कि, “नेता हटाने और चुनने का अधिकार शिवसेना में मुझे ही है।” राणे के साथ-साथ उनके कट्टर समर्थक माने जाने वाले कई विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी थी और ये सभी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। नारायण राणे के मुताबिक कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सका।

कांग्रेस की सरकारों में वे विभिन्न विभागों में मंत्री रहे लेकिन कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सके। इसके कुछ समय बाद राणे ने महाराष्ट्र स्वाभिमान पार्टी बनाई और वे बीजेपी के समर्थन से राज्यसभा पहुंचे। राणे ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया और वे केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री पद के लिए चुने गए।

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