पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों की खस्ता हालत की खबरें लगातार आती रही हैं। हालांकि कई मंदिर ऐसे भी हैं जिनकी कोई खोज-खबर लेने वाला भी नहीं है। ऐसा ही एक मंदिर है प्रह्लादपुरी। पाकिस्तान में स्थित इस मंदिर की हालत बेहद दयनीय हो गई है। स्थनीय हिंदू अल्पससंख्यक हैं। ऐसे में वे मंदिर के सुधार को लेकर कोई कदम भी नहीं उठा सकते हैं।
मंदिर का इतिहास
प्रह्लादपुरी मंदिर भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नरसिंह को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि सतयुग कालीन इस मंदिर का निर्माण हिरण्यकश्यप के पुत्र और भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद ने कराया था। प्रह्लाद के नाम पर इस मंदिर का नाम पर प्रह्लादपुरी रखा गया। यह वही स्थान है, जहां प्रह्लाद को हिरण्यकशिप से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया था।
पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि कश्यप के दो पुत्र थे। पहला हरिण्याक्ष और दूसरा हिरण्यकश्यप। भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा के लिए वराह अवतार लेकर हरिण्याक्ष का वध कर दिया था। इस वध से दुखी होकर कश्यप राज्य के राजा हिरण्यकश्यप ने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए अजेय बनने का प्रण लिया और कठोर तपस्या में लग गया।
कहिरण्यकश्यप की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उसे वरदान दिया। वरदान यह था कि कहिरण्यकश्यप को न कोई घर में मार सकता है और न घर के बाहर, न अस्त्र से उसका वध होगा और न ही शस्त्र से, न वो दिन में मरेगा और न रात में, न मनुष्य से मरेगा और न पशु से, न आकाश में मरेगा और न ही पृथ्वी में।
ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यप खुद को अजेय समझ रहा था। वह इतना अधिक अंहकारी हो गया था कि उसने राज्य की प्रजा से खुद को भगवान की तरह पूजने का आदेश दे दिया था और आदेश न मानने वालों को सजा देता था। लेकिन उसका खुद का बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। यह बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी, जिसके चलते उसने कई बार प्रह्लाद का वध करने की कोशिश की। लेकिन हर बार वह किसी न किसी प्रकार से बच जाते थे।
विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद पर हिरण्यकश्यप का अत्याचार जब हद से अधिक बढ़ गया तब भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में अवतार लिया। भगवान नरसिंह का यह अवतार गौधूलि के समय आधे मनुष्य और आधे शेर का रूप में हुआ था। भगवान नरसिंह ने खंभा फाड़कर अवतार लिया और हिरण्यकश्यप को दरवाजे के बीच अपने पैर पर लिटाकर नाखुनों से पेट फाड़कर उसका वध कर दिया। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वरदान और प्रह्लाद दोनों की रक्षा हो गई। ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रह्लाद की हत्या के लिए इसी मंदिर के आसपास के स्थान पर आग जलवाई थी। इस आग में प्रह्लाद तो बच गए थे, लेकिन होलिका जलकर मर गई थी। हिरण्यकश्यप के वध के बाद पहली होलिका इसी प्रह्लादपूरी मंदिर परिसर में खेली गई थी।
सोने का मंदिर
मंदिर के निर्माण के विषय में ऐसा कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण सोने से किया गया था, छत से लेकर खंभे तक सब सोने से बने हुए थे और यह मंदिर 15वीं शताब्दी तक सुरक्षित अवस्था में था। लेकिन इसके बाद शेरशाह सूरी ने 15वीं शताब्दी के अंत में यहां आक्रमणकर मंदिर गिरा दिया और इसकी जगह पर बारा थुम्बा नामक मस्जिद बनवा दी। ऐसा कहा जाता है कि जब सिख शासकों ने मुल्तान पर जीत हासिल कर यहां शासन किया तब साल 1810 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। इस दौरान मंदिर का ऊंचाई मस्जिद से अधिक कर दी गई थी। इसको लेकर इस्लामवादियों और हिंदुओं के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी।
हालांकि इसके बाद भी मंदिर सुरक्षित रखा था। लेकिन साल 1848 में अंग्रेजी सेना ने मुल्तान पर आक्रमण किया तब एक बारूद का गोला मंदिर पर भी गिरा, जिससे मंदिर ढह गया था। अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1853 की अपनी यात्रा में लिखा है कि यह मंदिर ईंट के चबूतरे पर बना हुआ था। इसमें, नक्काशीदार खंभे लगे हुए थे। इसी दौरान साल 1861 में बाबा बावलराम दास ने 11000 रुपए का चंदा जुटाकर मंदिर का पूर्णनिर्माण कराया था। इसके बाद साल 1872 में प्रह्लादपूरी के महंत ने ठाकुर फतेहचंद टकसालिया और स्थानीय हिंदुओं की मदद से मंदिर की मरम्मत कराई थी। मंदिर में हिंदू शांति पूर्वक पूजा-पाठ करते थे। कई बार मुस्लिमों ने मंदिर को लेकर विवाद करने की कोशिश भी की। लेकिन चीजें शांति पूर्वक चल रहीं थीं। इसी दौरान 20 सितंबर 1881 को मुल्तान में दंगे भड़क उठे। दंगे में मुस्लिमों ने प्रह्लादपूरी मंदिर में आग लगा दी, जिससे मंदिर को काफी नुकसान हुआ। लेकिन हिंदुओं ने एक महीने के भीतर ही मंदिर फिर से बना लिया।
1992 में तोड़ दिया गया मंदिर
भारत के बंटवारे यानी 1947 के बाद से इस मंदिर की हालत लगातार खराब होती जा रही थी। मुल्तान में हिंदुओं की संख्या भी न के बराबर थी, ऐसे मे पाकिस्तान सरकार ने इस पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया। साल 1991 तक ही मंदिर की हालत खराब हो गई थी। लेकिन साल 1992 में आयोध्या में रामलला जन्मभूमि पर बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद पाकिस्तान में सैकड़ों मंदिर तोड़े गए थे। इसमें प्रह्लादपूरी मंदिर भी शामिल था। इसके बाद से इस मंदिर के हाल लगातार खराब होते चले गए और यह खंडहर में तब्दील हो गया। साल 2009 में पाकिस्तानी सरकार ने इस मंदिर के पुनः निर्माण के लिए करीब 42 करोड़ (भारतीय) रुपए का फंड जारी किया था। लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इस्लामिक कट्टरपंथियों के डर से मंदिर निर्माण की अनुमति नहीं दी। इसके बाद साल 2021 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने भी हिंदू मंदिरों के उत्थान के लिए आदेश दिया था। लेकिन आज मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो सका है और आज यह मंदिर वीरान खंडहर में बदल चुका है।