सीता परित्याग प्रक्षिप्त या वास्तविक? – युद्धकाण्ड तक ही थी वाल्मीकि जी की रामायण! पढ़ें किन-किन ग्रंथों में क्या-क्या वर्णन

लंका विजय के बाद 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने पर राम का राज्याभिषेक हुआ, और उनके साथ ही रानी सीता का भी राज्याभिषेक किया गया था। राज्याभिषेक के आधार पर राज्य पर राजा और रानी दोनों का समान अधिकार माना जाता था।

सीता परित्याग, रामायण

वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि-नारद संवाद है जिसमें न तो सीता की अग्निपरीक्षा का उल्लेख है और न ही सीता परित्याग का (फोटो साभार: AKINCANA GOCARA/Itehas_Com)

सीता परित्याग की कथा राम के जीवन से संबंधित अत्यंत विवादास्पद मानी जाती है। जिस सीता को प्राप्त करने के लिए राम ने स्वयंवर में तमाम राजाओं को पीछे छोड़ते हुए अपने आराध्य भगवान शंकर का धनुष तोड़ दिया, लंका पर चढ़ाई करने के लिए सागर पर पुल बाँध दिया और रावण सहित उसकी सम्पूर्ण सेना को पराजित कर दिया, उसी सीता का राम ने परित्याग कर दिया—यह समुचित प्रतीत नहीं होता। राम का यह आचरण उनके मर्यादा पुरुषोत्तम रूपी स्वरूप के विपरीत दिखाई पड़ता है। राम ने सदैव दूसरों का सम्मान किया, उन्हें साथ लेकर चले, और जाति-पाति, ऊँच-नीच जैसे भेदभाव से ऊपर उठकर प्रेम, सौहार्द, सम्मान एवं समरसता से आगे बढ़े।

लंका विजय के बाद 14 वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने पर राम का राज्याभिषेक हुआ, और उनके साथ ही रानी सीता का भी राज्याभिषेक किया गया था। राज्याभिषेक के आधार पर राज्य पर राजा और रानी दोनों का समान अधिकार माना जाता था। परंतु वनवास के उपरांत अयोध्या में राम द्वारा शासन करने के संदर्भ और अन्य घटनाएं विवादास्पद प्रतीत होती हैं। वाल्मीकि रामायण में युद्धोपरांत जोड़ा गया संपूर्ण उत्तरकांड प्रक्षिप्त माना जाता है।

वास्तव में, आदि कवि वाल्मीकि के रामायण में उत्तरकांड के रूप में सीता परित्याग और लव-कुश की कहानी मौजूद है, परंतु इसकी कुछ प्रतियों में लव-कुश की कहानी नहीं मिलती है। पुराने पुराणों जैसे हरिवंश, वायु पुराण, विष्णु पुराण और नरसिंह पुराण में भी यह कथा नहीं है। बौद्धों और जैनों की रामकथा में भी अनामत जातक और गुणभद्र कृत उत्तर पुराण में सीता परित्याग का उल्लेख नहीं है। सीता की अग्नि परीक्षा भी विवादास्पद है; यद्यपि कुछ ग्रंथों में इसे छाया सीता का संदर्भ मानकर समर्पित किया गया है:

सुनहु प्रिया व्रत रुचिर सुशीला। मैं कछु करब ललित नर लीला।
तुम पावक महु करहु निवासा। जो लगि करौ निशाचर नाशा।।

परंतु सीता परित्याग में इस प्रकार की कोई बात नहीं मिलती। ऐसा माना जाता है कि राम से संबंधित प्रथम ग्रंथ वाल्मीकि रचित रामायण है, परंतु इसमें लिखी गई सारी बातें महर्षि वाल्मीकि द्वारा ही लिखित नहीं मानी जातीं। इसमें कई चीजें प्रक्षिप्त मानी जाती हैं।

सीता परित्याग को प्रक्षिप्त मानने के आधार

प्रश्न यह है कि रामायण के उत्तरकांड को प्रक्षिप्त मानने का आधार क्या है? किसी भी धर्मग्रंथ में प्रक्षिप्त होने के दो प्रमुख आधार होते हैं:

संदर्भ सूची में असंगतता – प्रायः ग्रंथ के आरंभ में सूत, नारद, व्यास, या स्वयं भगवान के कथाकथन में सभी विषयों की सूची दी जाती है। यदि ग्रंथ में कोई विषय सूची से भिन्न हो तो वह प्रक्षिप्त माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि-नारद संवाद है जिसमें न तो सीता की अग्निपरीक्षा का उल्लेख है और न ही सीता परित्याग का।

महात्म्य और फलश्रुति के उपरांत जुड़ा हुआ प्रसंग – किसी भी ग्रंथ के अंत में उसका महात्म्य और फलश्रुति होती है। यदि इसके उपरांत कुछ जोड़ा गया है तो वह प्रक्षिप्त माना जाता है। रामायण के युद्धकांड के उपरांत ही उसकी फलश्रुति और महात्म्य वर्णित हैं, जो राम के राज्याभिषेक पर समाप्त होती है। उत्तरकांड में असंबद्ध घटनाएं जैसे रावण की, वेदवती की, नलकुबेर की, आदि के वर्णन मिलते हैं जिनका कोई स्पष्ट औचित्य वहां दिखाई नहीं देता। इस आधार पर माना जाता है कि रामायण के उत्तरकांड में कई नई बातें बाद में जोड़ी गई हैं।

रामायण के इस अंश के प्रक्षिप्त होने के अन्य संकेत

प्रक्षिप्तता की संभावना निम्नलिखित आधारों पर भी बनती है:

घटना में विसंगति – यदि किसी घटना के पूर्व और पर संदर्भों में उस घटना के विवरण में विसंगति हो, तो वह घटना प्रक्षिप्त मानी जाती है।
लेखन शैली का बदलाव – यदि किसी घटना के वर्णन में लेखन की भाव-भंगिमा, भाषा, दर्शन और किरदार की प्रकृति मूल धारा से विसंगत लगें, तो वह घटना प्रक्षिप्त मानी जाती है।

रामकथा के प्रमाणित शोधकर्ता फादर कामिल बुल्के ने अग्नि परीक्षा और सीता परित्याग पर शोध के आधार पर विभिन्न मत प्रस्तुत किए हैं। हालांकि यहाँ केवल सीता परित्याग से संबंधित विचारों की विवेचना की जा रही है। वाल्मीकि रामायण में स्वयं उत्तरकांड परवर्ती और प्रक्षिप्त माना गया है जिसमें अनेकों कहानियां जोड़ी गई प्रतीत होती हैं। प्रारंभ के कुल 36 सर्ग रावण के जन्म से संबंधित हैं, जिसका रावण के वध के पश्चात कोई औचित्य समझ में नहीं आता। इसी प्रकार हनुमान के जन्म की कहानी भी वहां अनुपयुक्त प्रतीत होती है। अनेक कहानियों के साथ-साथ व्याकरणिक त्रुटियों का भी बाहुल्य पाया गया है जो इसे बाल्मीकि के स्तर का नहीं दर्शाता।

सीता परित्याग के विभिन्न मत

फादर कामिल बुल्के ने विभिन्न रामकथाओं में सीता परित्याग के कारणों का संकलन किया है:

सीता परित्याग का अभाव

आदि रामायण
महाभारत का रामोपाख्यान
प्राचीन पुराण – हरिवंश पुराण, वायु पुराण, विष्णु पुराण, नरसिंह पुराण
अनामक जातक, गुणभद्र कृत उत्तर पुराण

सीता त्याग के भिन्न-भिन्न कारण

वाल्मीकि रामायण का उत्तरकांड, रघुवंश, उत्तररामचरित, कुंदमाला
पउमचरियम्, पद्मचरित्
धोबी की कथा

कथासरित्सागर, भागवत पुराण
जैमिनीय अश्वमेध, पद्मपुराण
तिब्बती रामायण
रावण का चित्रण

उपदेशपद, कहावली, हेमचंद्र कृत जैन रामायण, कृतिवास और चंद्रावती की बंगाली रामायण
कश्मीरी रामायण, रामायण मसीही, गुजराती रामायण
सेरत कांड, हिकायत महाराज रावण, आनंद रामायण

परोक्ष कारण

भृगु का शाप – वाल्मीकि रामायण
तारा का शाप – वाल्मीकि रामायण
शुक्र का शाप – पद्मपुराण
लक्ष्मण का अपमान, लोमस का शाप, सुदर्शन मुनि की निंदा
वाल्मीकि को प्रदत्त वरदान

अवास्तविक सीता त्याग

गीतावली
अध्यात्म रामायण
आनंद रामायण
मधुराचार्य
इस प्रकार, सीता परित्याग के संदर्भ में विभिन्न ग्रंथों में अलग-अलग धारणाएं हैं, और इसके प्रक्षिप्त होने की संभावना का आधार इन तथ्यों पर रखा जा सकता है।

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