सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस देश में मुंबई हमलों के आतंकी अजमल कसाब को फेयर ट्रायल (निष्पक्ष सुनवाई) मिल सकता है तो फिर यासीन मलिक को क्यों नहीं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी सीबीआई की उस दलील की बात सामने आई, जिसमें कहा गया था कि यासीन मलिक कोई आम आतंकी नहीं है, उसके हाफिज सईद जैसे आतंकियों से संबंध हैं इसलिए उसको दिल्ली से जम्मू लेकर जाना रिस्की हो सकता है।
दरअसल, वायुसेना अधिकारियों व मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण मामले में जम्मू की ट्रायल कोर्ट ने क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए यासीन मलिक को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के लिए कहा था। जम्मू ट्रायल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सुनवाई की।
इस दौरान सीबीआई की ओर से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुरक्षा मुद्दों के कारण यासीन मलिक को सुनवाई के लिए जम्मू ले जाने के पक्ष में नहीं हैं। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि मलिक ‘सिर्फ एक और आतंकवादी’ नहीं है। साथ ही लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हाफ़िज सईद के साथ उसके संबंधों का जिक्र किया। साथ ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ऑनलाइन पेशी की मांग की।
इस पर कोर्ट ने कहा कि जम्मू में इंटरनेट कनेक्टिविटी अच्छी नहीं है, ऐसे में वहां कैसे ट्रायल हो पाएगा। हमारे देश में, अजमल कसाब को भी निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिया गया था उसे हाईकोर्ट में कानूनी सहायता दी गई थी। हालांकि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के लिए जेल के अंदर ही कोर्ट बनाया जा सकता है।
साथ ही कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि वो इस मामले के बचे हुए गवाहों और यासीन के साथ सह आरोपी बनाए गए लोगों के बारे में जानकारी कोर्ट को सौंपे। कोर्ट ने कितने गवाहो को सुरक्षा की आवशकता है, इस पर भी सीबीआई से रिपोर्ट मांगी है। इस मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।