‘महाराष्ट्र के मुखिया’: कभी ढाबों का बचा खाना खाने को थे मजबूर, फिर बने महाराष्ट्र के पहले दलित CM; कहानी सुशील शिंदे की

शिंदे ने चपरासी की नौकरी भी की और आगे चलकर वे 150 रुपए महीने के वेतन पर एक कोर्ट में बेंच क्लर्क हो गए थे।

शिंदे ने वित्त मंत्री के रूप में महाराष्ट्र विधानसभा में लगातार 9 बजट पेश किए थे

शिंदे ने वित्त मंत्री के रूप में महाराष्ट्र विधानसभा में लगातार 9 बजट पेश किए थे

1999 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार बनी और 2003 आते-आते कांग्रेस में आंतरिक मतभेद शुरु हो गए। कांग्रेस में गुटबाजी बड़े स्तर तक पहुंच गई और विलासराव देशमुख को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जनवरी 2003 में दलित समुदाय से आने वाले और सोनिया गांधी के वफादार सुशील कुमार शिंदे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। शिंदे राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। महाराष्ट्र के मुखिया में आज जानेंगे कैसा रहा शिंदे का सियासी सफर…

ढाबों पर बचा हुआ खाना खाते थे शिंदे

4 सितंबर 1941 को महाराष्ट्र के सोलापुर में एक दलित परिवार में जन्में शिंदे के पास आर्ट्स की ऑनर्स डिग्री और कानून की डिग्री है। शिंदे का जीवन गरीबी में बीता और बचपन में वे अच्छा खाना खाने के लिए चीजों को चुराकर बेच देते थे। एक घटना के बाद उन्होंने भगवान की मूर्ति के सामने चोरी ना करने का प्रण ले लिया था। उनके पास अच्छा खाना खाने के लिए पैसे नहीं होते थे तो उन्होंने छोटे ढाबों पर छोड़े गए खाने को खाना शुरू कर दिया था।

शिंदे ने चपरासी की नौकरी भी की और आगे चलकर वे 150 रुपए महीने के वेतन पर एक कोर्ट में बेंच क्लर्क हो गए थे। इस बीच उन्होंने अपने एक दोस्त के कहने पर पुलिस में सब-इंस्पेक्टर पद के लिए आवेदन किया और 350 रुपए वेतन के साथ उनका चयन इस पद के लिए हो गया। इसी कड़ी में उनकी मुलाकात शरद पवार से हुई थी। पवार ने ‘सुशील कुमार शिंदे: राजनीतिक सफर के 5 दशक’ के आलेख में लिखा है कि खाकी पहने पुलिस अधिकारी सुशील कुमार पहली बार मुंबई में मुझसे लेले के घर पर मिले थे। मैंने उनकी आंखों में एक चिंगारी देखी जिनमें पुलिसकर्मी से बड़ा काम करने की आकांक्षा थी।

नौकरी से इस्तीफा और राजनीति की शुरुआत

इस मुलाकात के बाद वे शरद पवार के करीब आ गए और उन्होंने राजनीति में उतरने का मन बनाते हुए पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 1972 के चुनावों में कर्मला विधानसभा से उनके नाम का प्रस्ताव दिया गया और माना जा रहा था कि उन्हें टिकट मिलना तय है लेकिन उनकी जगह कांग्रेस ने तैयप्पा सोनावने को उम्मीदवार बना दिया। हालांकि, 1973 के आखिर में सोनावने का निधन हो गया और कुछ ही समय बाद इस सीट पर हुए उप-चुनाव में शिंदे को कांग्रेस ने उम्मीदवार बना दिया।

इसके बाद शिंदे ने सोलापुर से लगातार 1977, 1980, 1985 और 1990 में महाराष्ट्र विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1974 में वह पहली बार महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे और विभिन्न विभागों के मंत्री रहे। वे मई 1992 तक महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहे। शिंदे ने वित्त मंत्री के रूप में महाराष्ट्र विधानसभा में लगातार 9 बजट पेश किए थे।

महाराष्ट्र के पहले दलित CM बने शिंदे

नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने शिंदे को कांग्रेस महासचिव बना कर दिल्ली लाया गया और वे 1992 में राज्य सभा के लिए चुन लिए गए। उन्हें कांग्रेस में विभिन्न दायित्वों पर काम किया और 2002 में वे कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से उप-राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाए गए लेकिन एनडीए के उम्मीदवार भैरो सिंह शेखावत ने उन्हें हरा दिया। जनवरी 2003 में जब आंतरिक मतभेदों के चलते विलासराव देशमुख ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो सुशील कुमार शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे महाराष्ट्र के पहले दलित मुख्यमंत्री बने थे।

हालांकि, अगले विधानसभा चुनाव के बाद 2004 में उन्हें पद से हटा दिया गया और फिर से विलासराव देशमुख को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2004 में महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन से सरकार बनी थी और तर्क दिया गया था कि देशमुख सहयोगी दल NCP से बेहतर तरह से निपट पाएंगे। बताया जाता है कि 2004 के चुनाव के बाद शिंदे ने खुद ऐलान किया कि विलासराव देशमुख अगले मुख्यमंत्री होंगे। उस वक्त भी उन्हें कोई नाराजगी नहीं थी बल्कि वे खुश थे कि उनका दोस्त मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा।

इसके बाद सुशील कुमार शिंद को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया और उन्होंने नवंबर 2004 से जनवरी 2006 तक राज्यपाल के तौर पर काम किया। आंध्र प्रदेश से वे वापस केंद्र सरकार में लौटे और 2006 में उन्हें मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में ऊर्जा मंत्री बनाया गया। यूपीए II के दौरान वे जुलाई 2012 से मई 2014 तक केंद्रीय गृह मंत्री रहे। केंद्रीय गृह मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान अजमल कसाब और अफजल गुरु जैसे आतंकवादियों को फांसी दी गई थी। शिंदे ने गृह मंत्री रहते हुए श्रीनगर के लाल चौक का दौरा किया था।

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